पूर्व प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई को राज्यसभा में नामित करने के फैसले पर सवाल उठ रहे हैं. इन सवालों के पीछे उनके अयोध्या और राफेल मामलों पर सुनाए गए फैसले हैं. आपको बता दें कि रंजन गोगोई सुप्रीम कोर्ट के उन चार जजों में शामिल रहे हैं जिन्होंने उस समय के प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ प्रेस कॉन्फ्रेंस कर उनके पर पक्षपात के आरोप लगाए थे. इसके बाद रंजन गोगोई एक तरह से नायक बनकर सामने आए क्योंकि माना जा रहा था कि इसके बाद वह देश का प्रधान न्यायाधीश बनने का मौका खो सकते हैं. इन चार जजों की प्रेस कॉन्फ्रेंस एक तरह से मोदी सरकार को भी लपेट रही थी और यह पीएम मोदी के आलोचकों के लिए एक तरह से हथियार साबित हुई. जस्टिस दीपक मिश्रा के रिटायर होते होने के बाद रंजन गोगोई ही देश के प्रधान न्यायाधीश बने. लेकिन अयोध्या और राफेल से जुड़े दो मामलों में उनकी अगुवाई में दिए गए फैसले विपक्ष को रास नहीं आए और उनके कार्यकाल के दौरान सुप्रीम कोर्ट बहुत ही कम या शायद ही किसी टिप्पणी या फैसले में मोदी सरकार के लिए परेशानी का सबब बना हो. ऐसे में उनका राज्यसभा में जाना लाजिमी है कि सवालों के घेरे में आएगा. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने कहा, 'उनको (रंजन गोगोई) ईमानदारी से समझौता करने के लिए याद किया जाएगा'. एआईएमआईएस प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने भी इस फैसले पर तीखा हमला बोला है. उन्होंने पूर्व CJI पर निशाना साधते हुए कहा कि वो खुद मना करें नहीं तो एक्सपोज हो जाएंगे. एनडीटीवी के संवाददाता से बात करते हुए ओवैसी ने कहा, ''जस्टिस लोकुर ने जो कहा मैं उससे सहमत हूं. मैं सवाल उठा रहा हूं. न्यायालय पर सवाल उठते है. उनके फैसले से सरकार को लाभ हुआ है. वो खुद मना करें नही तो एक्सपोज हो जाएंगे. जेटली साहेब ने यही कहा था. इनके खिलाफ महिला ने भी शिकायत की थी. संविधान और लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है.
सवाल इस बात का उठता है कि जब सरकार को पता था कि रंजन गोगोई को राज्यसभा भेजे जाने पर विवाद होना निश्चित है तो वह इस फैसले पर आगे क्यों बढ़ी. इस सवाल पर सरकारी के सूत्रों का का कहना है कि मनोनीत सांसदों में विभिन्न क्षेत्र के लोग हैं. लेकिन प्रसिद्ध न्यायविद नहीं था. जस्टिस गोगोई को इसीलिए लाया गया है क्योंकि वे मुख्य न्यायाधीश रहे हैं. देश के प्रसिद्ध न्यायविद हैं. कई महत्वपूर्ण निर्णय दिए हैं. उनके आने से राज्यभा में बहस को नई धार मिलेगी और 'हाउस ऑफ़ ऐल्डर्स' को उनके अनुभवों का लाभ मिलेगा.
हालांकि बीजेपी नेता मानते हैं कि इसके पीछे असम चुनाव भी एक कारण हो सकता है क्योंकि राज्य में अगले साल चुनाव है. जस्टिस गोगोई जिस समुदाय से आते हैं उसका वहां उनका ख़ासा प्रभाव है. बीजेपी इससे पहले भूपेन्द्र हज़ारिका को भारत रत्न भी दे चुकी है. रंजन गोगोई ने दशकों से लंबित अयोध्या विवाद में फैसला दिया है. वे उस पांच जजों की पीठ के अध्यक्ष थे जिसने राम मंदिर के हक़ में फैसला दिया है. इस फैसले के बाद पूरे देश में सांप्रदायिक सौहार्द बना रहा. यह इस फैसले की एक ख़ास बात है.
सरकारी सूत्रों की मानें तो कांग्रेस का ऐतराज़ गलत है. कांग्रेस ने बहरुल इस्लाम को पहले 1962-1972 दस साल तक राज्य सभा में रखा फिर हाईकोर्ट का जज बनाया. रिटायर होने पर सुप्रीम कोर्ट का जज भी बनाया. फिर उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने के लिए इस्तीफा दे दिया. इसी तरह पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंगनाथ मिश्रा को पहले राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का अध्यक्ष बनाया गया. फिर उन्हें राज्यसभा सांसद बनाया गया. सरकारी सूत्रों के मुताबिक उन्होंने ही चौरासी के दंगों में कांग्रेस नेताओं को क्लीन चिट दी थी.
कांग्रेस की कृपा दृष्टि चुनाव आयुक्तों पर भी रही. पार्टी ने मुख्य चुनाव आयुक्त रहे एमएस गिल को राज्यसभा भेजा और केंद्रीय मंत्री तक बनाया. विवादास्पद मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन को बाद में कांग्रेस ने गांधीनगर से लाल कृष्ण आडवाणी के खिलाफ लोकसभा का चुनाव भी लड़ाया था.
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