पश्चिम बंगाल (West Bengal) के नादिया जिले के हथकरघों की आवाज आज ‘बंद' हो चुकी है. हालांकि, दुर्गा पूजा अब दूर नहीं है. दुर्गा पूजा के सीजन के समय ये हथकरघे दिन रात चलते थे, लेकिन कोविड-19 (COVID-19) महामारी की वजह से आज सब कुछ बदल गया है. यहां के शांतिपुर, फुलिया और समुद्रगढ़ इलाकों के घर-घर में हथकरघा मशीन मिल जाएगी. इसे स्थानीय भाषा में ‘टैंट' कहा जाता है. इन इलाकों में बुनाई एक परंपरागत पेशा है. किसी समय यहां के बुनकरों के पास उत्तर बंगाल के 20,000 श्रमिक काम करते थे, लेकिन कोविड-19 महामारी की वजह से ये लोग बुरी तरह प्रभावित हुए हैं. यहां के बुनकर आज खुद रोजी-रोटी के जुगाड़ में देश के दूसरे राज्यों को निकल गए हैं.
फुलिया व्यवसायी समिति के दिलीप बसाक ने कहा, ‘‘इस सीजन में बुनकर काफी व्यस्त रहते थे. उन्हें कई-कई घंटे काम करना पड़ता था, लेकिन इस साल कोविड-19 की वजह से स्थिति काफी खराब है और बड़ी संख्या में बुनकर रोजगार के लिए अन्य राज्यों को ‘पलायन' कर गए हैं.'' उन्होंने बताया कि पिछले सप्ताह ही युवा लोगों से भरी तीन बसें दक्षिण भारत के लिए रवाना हुईं. सभी वहां रोजगार की तलाश में गए हैं. फुलिया व्यवसायी समिति क्षेत्र की सबसे पुरानी सहकारिताओं में से है। 665 बुनकर इसके सदस्य हैं.
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फुलिया तंगेल बुनकर सहकारी समिति के अश्विनी बसाक ने कहा, ‘‘हमारी सालाना आमदनी में से ज्यादातर हिस्सा दुर्गा पूजा के सीजन के दौरान आता था, लेकिन इस साल महामारी की वजह से न हमारे पास ऑर्डर हैं और न ही काम. कारोबार के लिए सबसे अच्छा समय हमने गंवा दिया है.'' उन्होंने बताया कि कुछ साल पहले तक इस क्षेत्र में उत्तर बंगाल के 20,000 लोगों को रोजगार मिला हुआ था. आज स्थिति यह है कि बुनकर खुद रोजी-रोटी के लिए कोई छोटी-मोटी नौकरी तलाश रहे हैं.
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उन्होंने कहा कि मुफ्त राशन तथा मनरेगा के तहत 100 दिन के काम की वजह से बुनकरों के परिवार भुखमरी से बच पाए हैं. उन्होंने कहा कि मशीनी करघों की वजह से अब हथकरघों की संख्या भी घट रही है. हालांकि, बहुत से उपभोक्ता आज भी हथकरघा उत्पादों की ही मांग करते हैं.
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