यह ख़बर 16 जून, 2014 को प्रकाशित हुई थी

तमिलनाडु में परिजनों और स्कूलों की मांग, 'हमें हिंदी चाहिए'

चेन्नई:

तमिलनाडु में हिंदी को अनिवार्य बनाए जाने के खिलाफ 60 के दशक में हिंसक विरोध प्रदर्शन देखने को मिले थे। हालांकि अब यह मामला उल्टा पड़ता दिख रहा, जहां राज्य में कई छात्र, उनके परिजन और स्कूलों ने तमिल के एकाधिकार के खिलाफ लड़ाई शुरू कर दी है। उनका कहना है कि उन्हें हिंदी चाहिए।

स्कूलों और परिजनों के एक समूह ने डीएमके की तत्कालीन सरकार की ओर से साल 2006 में पारित एक आदेश को चुनौती दी है, जिसमें कहा गया था कि दसवीं कक्षा तक के बच्चों को केवल तमिल पढ़ाई जाएगी।

इस संबंध में पांच जून को दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए मद्रास हाईकोर्ट ने राज्य की एआईएडीएमके सरकार से जवाब मांगा है।

इस मामले में चेन्नई के छात्रों का कहना है कि हिंदी या अन्य भाषाएं नहीं जानने से भारत में अन्य स्थानों पर और विदेश में उनके रोजगार के अवसरों को नुकसान पहुंचता है।

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नौंवी कक्षा में पढ़ने वाले अनिरुद्ध मरीन इंजीयरिंग की पढ़ाई करना चाहते हैं और उनका कहना है, 'अगर मैं उत्तर भारत में काम करना चाहता हूं तो मुझे हिंदी जाननी होगी।'