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This Article is From Dec 05, 2021

विनोद दुआ पंचतत्व में विलीन; सहयोगी पत्रकारों और नेताओं ने नम आंखों से दी श्रद्धांजलि...

देश के जाने माने पत्रकार विनोद दुआ रविवार (आज) को पंचतत्व में विलीन हो गए. शनिवार को दिल्ली के अपोलो अस्पताल में उन्होंने आखिरी सांस ली थी. वो लंबे समय से बीमार चल रहे थे. दिल्ली के लोधी क्रिमेटोरियम में उनका अंतिम संस्कार हुआ.

विनोद दुआ, नौजवान पत्रकारों के लिए स्तंभ: पवन खेड़ा

नई दिल्ली:

देश के जाने माने पत्रकार विनोद दुआ रविवार (आज) पंचतत्व में विलीन हो गए. शनिवार को दिल्ली के अपोलो अस्पताल में उन्होंने आखिरी सांस ली थी. वो लंबे समय से बीमार चल रहे थे. दिल्ली के लोधी क्रिमेटोरियम में उनका अंतिम संस्कार हुआ. इस मौके पर उनके परिजनों के अलावा वरिष्ठ पत्रकार, दोस्त और विभिन्न दलों के नेता शामिल हुए. हर किसी ने उन्हें अपनी तरह से याद कर श्रद्धाजलि दी. विनोद दुआ इस साल की शुरुआत में कोविड-19 से ग्रस्त हुए थे, जिसके बाद उन्हें कई बार अस्पताल में भर्ती कराया गया था. अस्पताल में भर्ती होने के बाद और इलाज के बाद भी उनके स्वास्थ्य में खास सुधार नहीं आ रहा था.

भाजपा नेता विजय गोयल (Vijay Goyal) ने विनोद दुआ के योगदान को याद करते हुए कहा, ''विनोद दुआ और हम रूप नगर में एक ही स्कूल में पढ़ते थे. विनोद बचपन से ही प्रतिभाशाली थे. चाहे संगीत हो, डिबेट हो, क्लास के अंदर सक्रियता हो, वो हर चीज़ में हिस्सा लेते थे. धीरे-धीरे वो पत्रकारिता के क्षेत्र में आ गए. एक पत्रकार के तौर पर वे बेबाक और बोल्ड थे.'' उन्होंने कहा कि ''मैंने न सिर्फ एक अच्छा पत्रकार बल्कि अपना एक अच्छा दोस्त खोया है. उन्होंने अलग-अलग चैनलों के माध्यम से जनता की बातों को मुखर किया, चाहे लोग उनसे समहत थे या नहीं थे.''

'द वायर' के एडिटर वेणुगोपाल (Venugopal) ने उनके पत्रकारिता करने के तरीके को याद करते हुए कहा कि उनका पत्रकारिता का जो विचार है वो तो रहेगा. हालांकि, ज़मीन पर, नए पत्रकार इस विचार को पता नहीं कैसे अडॉप्ट करेंगे, लेकिन उनका पत्रकारिता का जो तरीका था, जैसे सरकार से सवाल पूछना आदि वह नहीं मरेगा और यही उनके लिए सबसे बड़ी श्रद्धाजलि होगी.

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एनडीटीवी के वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार ने कहा कि सवाल पूछने का वो सिलसिला तो खत्म ही हो गया है. टेलीविज़न में वो अपनी ज़िंदगी में देखकर गए कि जिस तरह के अनुशासन को इस मीडियम में बनाने की कोशिश कर रहे थे, पिछले सात सालों में वो पूरी तरीके से ध्वस्त है. पता नहीं, उन्हें कैसा लगता होगा कि जो लोग उसे ध्वस्त कर रहे हैं उनमें से कई लोग विनोद दुआ को मानने वाले लोग भी होंगे, उनके साथ काम कर चुके लोग भी होंगे, उठने बैठने वाले लोग भी होंगे, उनको तो दुख होता ही होगा. और वो चीज़ अब टेलीविजन में वापस नहीं आनी है. उसे आने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ेगी, फिर भी जो भी उनकी विरासत है, उसे हम किताबों की शक्ल में पढ़ सकते हैं.

कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने कहा कि 2014 के बाद का काल पत्रकारिता के लिए एक कठिन समय है. ऐसे में दुआ साहब नौजवान पत्रकारों के लिए एक स्तंभ की तरह निकले जो प्रेरणा का स्रोत थे. उनकी पत्रकारिता की मुख्य ताकत यह थी कि सवाल पूछे जाने चाहिये और पूछे भी जा सकते हैं, उन्हें कोई दबा नहीं सकता.

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वरिष्ठ पत्रकार विजय त्रिवेदी ने विनोद दुआ को विचारों का अंश बताते हुए कहा -  ''एक मित्र ने ट्वीट किया कि विनोद मरा नहीं है विनोद मरते नहीं हैं, बस यही सच है, विनोद मर नहीं सकता वो एक विचार है, ये जो आप देख रहे हैं वो उस विचार का अंश है जो हिन्दुस्तान की पत्रकारिता को हमेशा खड़ा रखने का जज़्बा देता है.'' 

एनडीटीवी के वरिष्ठ पत्रकार मनोरंजन भारती ने विनोद दुआ के साथ काम करने को अपना सपना बताया और कहा - ''देखिये 1994 में आईआईएमसी से पास होने के बाद सपना था कि विनोद दुआ के साथ काम करूं. मेरी पहली नौकरी परख में थी, विनोद दुआ सर के साथ काम करने का मौका मिला. जीवन में उन्होंने एक ही बात सिखाई थी जो सीख आज तक मैं अपने साथ लेकर चलता हूं और उन्होंने कहा था कि बेटा एक बार कैमरा ऑन हो जाये और लाइट ऑन हो जाये तो कठिन से कठिन सवाल पूछने से मत घबराना. लेकिन सवाल मुस्कराते हुए पूछना, चिल्लाकर मत पूछना, ये सीख आज के सभी पत्रकारों और सभी एंकर के लिए है. दुआ साहब, मैं कठिन से कठिन सवाल पूछता रहूंगा और आपको याद करता हूं, मुझे लगता है एक शिष्य की तरफ से सबसे बड़ी श्रद्धांजलि यही होगी.''

वरिष्ठ पत्रकार दिबांग ने विनोद दुआ को उम्दा इंसान बताते हुए कहा - ''उनकी खास बात थी, बहुत गर्मजोशी से मिलते थे, खाने पर, पोएट्री पर, गाने पर बहुत बात किया करते थे. मुझे याद आया कि जब एनडीटीवी में आया तो पहले दिन से जब भी उनसे मुलाकात होती एक चुटकुला वो जरूर सुनाते थे, तो एक बड़ा कलेक्शन था उनके पास चुटकुलों का, उम्दा आदमी थे, उम्दा शब्द बहुत इस्तेमाल करते थे. मैं उनसे यही कहा करता था कि उम्दा के आगे भी कुछ है, कहते थे कि उम्दा के आगे उम्दा ही है तो ऐसे थे विनोद दुआ.

वरिष्ठ पत्रकार विनोद शर्मा ने विनोद दुआ को भारत के टेलीविज़न जगत का लोकतंत्र बताते हुए कहा - ''विनोद दुआ भारत के टेलीविज़न जगत के लोकतंत्र थे, वो रिपब्लिक जो उन्होंने मेहनत करके और लोगों के साथ खुद बनाया.'' उन्होंने कहा कि उस रिपब्लिक को ज़िंदा रखना हम सबका काम है. बदक़िस्मती ये थी कि उस रिपब्लिक को उन्होंने अपने सामने मिटते देखा. उन्होंने काफी कोशिश भी की उसे बचाने की.''

विनोद सिर्फ महान पत्रकारों में से एक नहीं बल्कि वे अपने दौर में महानतम हैंः डॉ. प्रणय रॉय

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