
पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह.(फाइल फोटो)
यूपी में बीजेपी ने प्रचंड जीत हासिल करने के बाद राजनीतिक पंडितों के सभी गणित को फेल कर दिया वहीं मुख्यमंत्री के रूप में योगी आदित्यनाथ का नाम चुनकर विश्लेषकों को हैरान कर दिया. दरअसल इतनी भारी जीत के बाद यह माना जा रहा था कि किसी ऐसे नेता को कमान दी जाएगी जो पीएम नरेंद्र मोदी के चुनावी वायदों को पूरा करते हुए राज्य को तेजी से विकास के पथ पर आगे ले जाए. संभवतया इसीलिए केंद्र सरकार में मंत्री मनोज सिन्हा का नाम अंतिम समय तक सबसे आगे रहा.
ऐन मौके पर लेकिन योगी आदित्यनाथ की एंट्री और उनके हाथ में कमान दिए जाने के बाद राजनीतिक विश्लेषक इसको बीजेपी के मास्टर स्ट्रोक के रूप में देख रहे हैं. दरअसल योगी आदित्यनाथ की ताजपोशी को 2019 के लोकसभा चुनावों के मद्देनजर पार्टी की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है. योगी आदित्यनाथ के चुनाव के पीछे आरएसएस की निर्णायक भूमिका मानी जा रही है और माना जा रहा है कि संघ ने इस चुनाव के माध्यम से यूपी में 2019 की तैयारियों की दिशा में सधी चाल से सियासी बिसात बिछा दी है.
गठबंधन का गणित
दरअसल राजनीति के जानकार 2019 से पहले यूपी में सपा, बसपा और कांग्रेस के संभावित महागठबंधन के कयास लगा रहे हैं. उसका एक बड़ा कारण यह है कि सपा-कांग्रेस का गठबंधन तो पहले से ही मौजूद है और बसपा के पास विकल्प सीमित होते जा रहे हैं. सिमटते जनाधार के बीच अपना सियासी अस्तित्व बचाने के लिए यह दल इस गठबंधन में शामिल हो सकता है. दूसरी अहम बात यह है कि कांग्रेस के मणिशंकर अय्यर जैसे नेता देश भर में बीजेपी की मुखालफत करने वाले दलों के एकजुट होकर महागठबंधन की वकालत करने लगे हैं.
बदलती राजनीतिक परिस्थितियों में सपा, बसपा और कांग्रेस के हाथ मिलाने और इसके नतीजतन बिहार की तर्ज पर यूपी में भी होने वाली जातिगत गोलबंदी की संभावना को भांपते हुए संघ ने इसकी काट के लिए अभी से हिंदुत्व का कार्ड खेल दिया है. फिलहाल ऐसा लगता है कि बीजेपी और संघ पीएम मोदी के विकास के नारे और योगी आदित्यनाथ के रूप में हिंदुत्व कार्ड के सहारे ही 2019 में यूपी के चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी कर रही है. यूपी बीजेपी के लिए सबसे अहम इसलिए है क्योंकि यहां से सर्वाधिक 80 सांसद चुने जाते हैं और केंद्र की सत्ता का रास्ता यूपी से ही होकर गुजरता है. पिछली बार बीजेपी ने यहां से अकेले दम पर 71 सीटें जीतकर रिकॉर्ड बनाया था.
ऐन मौके पर लेकिन योगी आदित्यनाथ की एंट्री और उनके हाथ में कमान दिए जाने के बाद राजनीतिक विश्लेषक इसको बीजेपी के मास्टर स्ट्रोक के रूप में देख रहे हैं. दरअसल योगी आदित्यनाथ की ताजपोशी को 2019 के लोकसभा चुनावों के मद्देनजर पार्टी की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है. योगी आदित्यनाथ के चुनाव के पीछे आरएसएस की निर्णायक भूमिका मानी जा रही है और माना जा रहा है कि संघ ने इस चुनाव के माध्यम से यूपी में 2019 की तैयारियों की दिशा में सधी चाल से सियासी बिसात बिछा दी है.
गठबंधन का गणित
दरअसल राजनीति के जानकार 2019 से पहले यूपी में सपा, बसपा और कांग्रेस के संभावित महागठबंधन के कयास लगा रहे हैं. उसका एक बड़ा कारण यह है कि सपा-कांग्रेस का गठबंधन तो पहले से ही मौजूद है और बसपा के पास विकल्प सीमित होते जा रहे हैं. सिमटते जनाधार के बीच अपना सियासी अस्तित्व बचाने के लिए यह दल इस गठबंधन में शामिल हो सकता है. दूसरी अहम बात यह है कि कांग्रेस के मणिशंकर अय्यर जैसे नेता देश भर में बीजेपी की मुखालफत करने वाले दलों के एकजुट होकर महागठबंधन की वकालत करने लगे हैं.
बदलती राजनीतिक परिस्थितियों में सपा, बसपा और कांग्रेस के हाथ मिलाने और इसके नतीजतन बिहार की तर्ज पर यूपी में भी होने वाली जातिगत गोलबंदी की संभावना को भांपते हुए संघ ने इसकी काट के लिए अभी से हिंदुत्व का कार्ड खेल दिया है. फिलहाल ऐसा लगता है कि बीजेपी और संघ पीएम मोदी के विकास के नारे और योगी आदित्यनाथ के रूप में हिंदुत्व कार्ड के सहारे ही 2019 में यूपी के चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी कर रही है. यूपी बीजेपी के लिए सबसे अहम इसलिए है क्योंकि यहां से सर्वाधिक 80 सांसद चुने जाते हैं और केंद्र की सत्ता का रास्ता यूपी से ही होकर गुजरता है. पिछली बार बीजेपी ने यहां से अकेले दम पर 71 सीटें जीतकर रिकॉर्ड बनाया था.
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