तीन तलाक के मुद्दे पर इंसाफ पाने सुप्रीम कोर्ट पहुंचीं शायरा बानो के चेहरे पर जीत की खुशी साफ देखी जा सकती है. उन्होंने तीन तलाक के दर्द को सहा, लेकिन इससे टूट जाने की जगह वह अपने साथ-साथ दूसरी मुस्लिम महिलाओं के लिए भी लड़ीं. वह सुप्रीम कोर्ट तक गईं. आज जब उन्हें इंसाफ मिला है, तो उन्होंने बताया कि पढ़ी-लिखी हो या अनपढ़, हर तबके की महिला इस दर्द से गुजर रही है. बेशक शायरा बानो को देश की सबसे बड़ी अदालत ने जो इंसाफ दिया है, वह हमेशा के लिए बरकरार रहने वाला है. शायरा की कहानी यह है कि वह अपने इलाज़ के लिए अपने मां-बाप के घर आई हुई थी, जबकि उनके पति ने स्पीड पोस्ट से उन्हें चिट्ठी भेजी, जिसमें मैं तुम्हें तलाक देता हूं. तीन बार लिखा हुआ था और बस एक झटके में 15 साल का रिश्ता ख़त्म हो गया.
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मुस्लिम महिलाओं के लिए खुशी मनाने का दिन
शायरा बानो ने इस बारे में NDTV से खास बातचीत की. फैसले पर प्रतिक्रिया के रूप में वह बोलीं कि जब यह फैसला आया, तो मुझे बहुत खुशी हुई. यह तमाम मुस्लिम महिलाओं के लिए है. सुप्रीम कोर्ट का फैसला ऐतिहासिक है. मुस्लिम महिलाओं के लिए यह खुशी मनाने का दिन है. हमें सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का स्वागत करना चाहिए.
मुझे कहते थे - तुम पसंद नहीं, तलाक देंगे
शायरा ने बताया कि 2002 में उनकी शादी इलाहाबाद के रिजवान से हुई थी. कुछ ही दिन बीते थे कि ससुराल वाले और पति दहेज के लिए परेशान करने लगे. मुझमें कोई न कोई कमी निकालते रहते थे. हमेशा कहते थे, तुम हमें पसंद नहीं थीं, जबकि मुझे देखने के लिए सभी लोग आए थे और पसंद के बाद ही शादी की गई थी. सास हमेशा कहती थीं कि हम तुम्हें तलाक देंगे और बेटे की दूसरी शादी करवाएंगे.
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मेरे 7 अबॉर्शन करवाए गए
खैर समय बीतता गया और मेरे पति और ससुराल वालों के बीच झगड़े के बाद वे अलग रहने लगे. मेरे दो बच्चे हुए, लेकिन उनकी मानसिकता नहीं बदली. मुझे शारीरिक और मानसिक रूप से परेशान करने के लिए 7 अबॉर्शन भी करवाए. अक्सर मेरे साथ मारपीट की जाती थी, लेकिन मैं अपने दो बच्चों के लिए सब सहती थी. मेरे बच्चों को तो पता भी नहीं था कि उनकी मां के साथ क्या हो रहा है. इसके बाद मैं बीमार रहने लगी. मेरा कोई इलाज नहीं करवाया गया. पति के दोस्त और रिश्तेदार भी मेरी खराब तबीयत देख कहने लगे थे कि इसे तलाक दे दो और दूसरी शादी करवा दो.
मुरादाबाद रेलवे स्टेशन पर पति ने अकेले छोड़ दिया
इसके बाद एक दिन मेरे पति ने मुझे मुरादाबाद रेलवे स्टेशन पर छोड़ दिया और मेरे पेरेंट्स को फोन कर दिया - तुम्हारी बेटी यहां है. मेरे पिता और भाई मुझे काशीपुर (उत्तराखंड) ले आए, मेरा इलाज करवाया और इसी बीच 10 अक्टूबर, 2015 को स्पीडपोस्ट के ज़रिये मुझे तलाकनामा भेजा गया.
परिवार न होता, तो लड़ाई न लड़ पाती
शायरा ने बताया, स्पीडपोस्ट देखकर मुझे बहुत दुख हुआ. मुस्लिम महिलाओं के लिए कोई कानून क्यों नहीं है, जिसका तलाक हो जाता है, उसका और उसके बच्चों का जीवन नष्ट हो जाता है. मेरे भाई और परिवार ने मुझे सपोर्ट किया. अगर वे न होते, तो मैं कुछ न कर पाती. लेकिन उनका क्या, जिनका परिवार भी उनकी मदद करने से इंकार कर देता है. वह औरत कहां जाएगी, इस सवाल ने मुझे झकझोरकर रख दिया.
एमबीए कर रही हूं, इसी लाइन में करियर बनाऊंगी
शायरा ने यह भी बताया, मुझे सरकार से पूरी उम्मीद है कि वह मुस्लिम महिलाओं के लिए कानून बनाएगी. फिलहाल मैं मुरादाबाद से एमबीए कर रही हूं. उसी को करियर के रूप में अपनाकर आगे बढ़ना चाहती हूं.
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