प्रकाश जावड़ेकर (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निपटने के लिए अगले पंद्रह साल के लिए पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने शुक्रवार को एक नया रोडमैप सार्वजनिक किया। सरकार ने 2030 तक कार्बन उत्सर्जन की तीव्रता में 33-35 फीसदी तक कमी का फैसला लिया है और यह तय किया है कि 2030 तक होने वाले कुल बिजली उत्पादन का 40 फीसदी हिस्सा कार्बन रहित ईंधन से होगा। साथ ही वातावरण में फैले ढाई-तीन खरब टन कार्बन को सोखने के लिए अतिरिक्त जंगल लगाने का लक्ष्य भी तय किया जा रहा है।
प्रधानमंत्री ने किया खतरे से आगाह
शुक्रवार को ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने झारखंड के खूंटी में देश के पहले सौर ऊर्जा से चलने वाले जिला कोर्ट के उद्घाटन कार्यक्रम में जलवायु परिवर्तन से होने वाले खतरे की ओर आगाह किया। नरेन्द्र मोदी ने कहा, "अभी मैं संयुक्त राष्ट्र की मीटिंग में गया था। पूरे समय दुनिया के सब देश एक ही विषय पर चर्चा कर रहे थे इस इनवायरांमेन्ट का क्या होगा। ग्लोबल वार्मिंग के कारण कैसी मुसीबत आएगी। बारिश अनिश्चित हो रही है...क्या होगा? समुद्र का स्तर बढ़ रहा है...क्या होगा? छोटे-छोटे देश डूब जाएंगे क्या...चारों तरफ पूरे विश्व को एक ही चिंता सता रही है।"
2.5 ट्रिलियन डॉलर के खर्च का अनुमान
इस साल के अंत में जलवायु परिवर्तन पर पेरिस में हो रहे महासम्मेलन से पहले जारी इस रोडमैप में साफ-सुथरी ऊर्जा पैदा करने पर जोर दिया गया है। जावड़ेकर ने दावा किया कि इस नए रोडमैप को कार्यान्वित करने पर 2030 तक 2.5 ट्रिलियन डॉलर खर्च का अनुमान है। जावड़ेकर ने कहा कि सरकार इसके लिए जरूरी वित्तीय संसाधन खुद जुटाएगी लेकिन कोई साफ रोडमैप पेश नहीं किया। इससे यह सवाल उठ रहा है कि क्या इतना फंड इकट्ठा करना संभव हो सकेगा?
विकसित देशों से मदद की उम्मीद नहीं
पर्यावरण विशेषज्ञ यह सवाल उठा रहे हैं कि अगले 15 साल में इस दिशा में आगे बढ़ाने के लिए जरूरी 2.5 ट्रिलियन डॉलर जुटाना काफी मुश्किल होगा। सेंटर फॉर साइंस एंड इनवायरांमेन्ट के डिप्टी डीजी, चंद्रभूषण ने एनडीटीवी से कहा कि इस कवायद में भारत को दुनिया के विकसित देशों से किसी भी तरह की वित्तीय मदद की उम्मीद नहीं करनी चाहिए क्योंकि वे यह बोझ उठाने को तैयार नहीं होंगे।
सौर ऊर्जा से बिजली उत्पादन क्रमशः हो रहा है सस्ता
सवाल यह भी है कि इस रोडमैप को लागू करने की वजह से आम आदमी पर कितना असर पड़ेगा। क्या साफ-सुथरी ऊर्जा पैदा करना मौजूदा व्यवस्था से महंगा होगा ? एनडीटीवी ने पर्यावरण मंत्री से जब यह सवाल पूछा तो उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि इसकी वजह से आम आदमी पर बुरा असर नहीं पड़ेगा। जावड़ेकर ने सोलर पॉवर प्रोजेक्ट्स का हवाला देते हुए कहा कि इससे पैदा होने वाली बिजली का खर्च धीरे-धीरे कम हो रहा है।
जाहिर है यह मामला संवेदनशील है और भारत सरीखे विकासशील देशों को पर्यावरण, विकास और उपलब्ध संसाधनों के बीच संतुलन बनाते हुए कदम उठाने होंगे।
प्रधानमंत्री ने किया खतरे से आगाह
शुक्रवार को ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने झारखंड के खूंटी में देश के पहले सौर ऊर्जा से चलने वाले जिला कोर्ट के उद्घाटन कार्यक्रम में जलवायु परिवर्तन से होने वाले खतरे की ओर आगाह किया। नरेन्द्र मोदी ने कहा, "अभी मैं संयुक्त राष्ट्र की मीटिंग में गया था। पूरे समय दुनिया के सब देश एक ही विषय पर चर्चा कर रहे थे इस इनवायरांमेन्ट का क्या होगा। ग्लोबल वार्मिंग के कारण कैसी मुसीबत आएगी। बारिश अनिश्चित हो रही है...क्या होगा? समुद्र का स्तर बढ़ रहा है...क्या होगा? छोटे-छोटे देश डूब जाएंगे क्या...चारों तरफ पूरे विश्व को एक ही चिंता सता रही है।"
2.5 ट्रिलियन डॉलर के खर्च का अनुमान
इस साल के अंत में जलवायु परिवर्तन पर पेरिस में हो रहे महासम्मेलन से पहले जारी इस रोडमैप में साफ-सुथरी ऊर्जा पैदा करने पर जोर दिया गया है। जावड़ेकर ने दावा किया कि इस नए रोडमैप को कार्यान्वित करने पर 2030 तक 2.5 ट्रिलियन डॉलर खर्च का अनुमान है। जावड़ेकर ने कहा कि सरकार इसके लिए जरूरी वित्तीय संसाधन खुद जुटाएगी लेकिन कोई साफ रोडमैप पेश नहीं किया। इससे यह सवाल उठ रहा है कि क्या इतना फंड इकट्ठा करना संभव हो सकेगा?
विकसित देशों से मदद की उम्मीद नहीं
पर्यावरण विशेषज्ञ यह सवाल उठा रहे हैं कि अगले 15 साल में इस दिशा में आगे बढ़ाने के लिए जरूरी 2.5 ट्रिलियन डॉलर जुटाना काफी मुश्किल होगा। सेंटर फॉर साइंस एंड इनवायरांमेन्ट के डिप्टी डीजी, चंद्रभूषण ने एनडीटीवी से कहा कि इस कवायद में भारत को दुनिया के विकसित देशों से किसी भी तरह की वित्तीय मदद की उम्मीद नहीं करनी चाहिए क्योंकि वे यह बोझ उठाने को तैयार नहीं होंगे।
सौर ऊर्जा से बिजली उत्पादन क्रमशः हो रहा है सस्ता
सवाल यह भी है कि इस रोडमैप को लागू करने की वजह से आम आदमी पर कितना असर पड़ेगा। क्या साफ-सुथरी ऊर्जा पैदा करना मौजूदा व्यवस्था से महंगा होगा ? एनडीटीवी ने पर्यावरण मंत्री से जब यह सवाल पूछा तो उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि इसकी वजह से आम आदमी पर बुरा असर नहीं पड़ेगा। जावड़ेकर ने सोलर पॉवर प्रोजेक्ट्स का हवाला देते हुए कहा कि इससे पैदा होने वाली बिजली का खर्च धीरे-धीरे कम हो रहा है।
जाहिर है यह मामला संवेदनशील है और भारत सरीखे विकासशील देशों को पर्यावरण, विकास और उपलब्ध संसाधनों के बीच संतुलन बनाते हुए कदम उठाने होंगे।
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