पूर्व प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई (Ranjan Gogoi) को राज्यसभा में नामित करने के फैसले पर सवाल उठ रहे हैं. इन सवालों के पीछे उनके अयोध्या और राफेल मामलों पर सुनाए गए फैसले हैं. आपको बता दें कि रंजन गोगोई सुप्रीम कोर्ट के उन चार जजों में शामिल रहे हैं जिन्होंने उस समय के प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ प्रेस कॉन्फ्रेंस कर उनके पर पक्षपात के आरोप लगाए थे. इसके बाद रंजन गोगोई एक तरह से नायक बनकर सामने आए क्योंकि माना जा रहा था कि इसके बाद वह देश का प्रधान न्यायाधीश बनने का मौका खो सकते हैं. इन चार जजों की प्रेस कॉन्फ्रेंस एक तरह से मोदी सरकार को भी लपेट रही थी और यह पीएम मोदी के आलोचकों के लिए एक तरह से हथियार साबित हुई.
जस्टिस गोगोई के राज्यसभा में नामित होने के लेकर उनके पूर्व सहयोगियों ने भी सवाल उठाए हैं. सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस कुरियन जोसेफ (Kurian Joseph) ने कहा है कि भारत के एक पूर्व मुख्य न्यायाधीश द्वारा राज्यसभा के सदस्य के रूप में नामांकन की स्वीकृति ने निश्चित रूप से न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर आम आदमी के विश्वास को हिला दिया है. जस्टिस गोगोई ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर नेक सिद्धांतों से समझौता किया है. जस्टिस रंजन के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस करने वाले जस्टिस कुरियन जोसेफ़ ने उनको राज्यसभा भेजे जाने पर एतराज़ किया है. उन्होंने एक बयान जारी कर कहा है कि इससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर आम आदमी के भरोसे को हिला दिया है. जस्टिस गोगोई ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता से समझौता किया है. हमने जस्टिस गोगोई के साथ बताया था कि न्यायपालिका ख़तरे में है इसलिए मैंने रिटायरमेंट के बाद कोई पद न लेने का फ़ैसला किया.
जस्टिस कुरियन का पूरा बयान...
"हमने राष्ट्र के लिए अपने ऋण का निर्वहन किया है." 12 जनवरी 2018 को हम तीनों के साथ न्यायमूर्ति रंजन गोगोई द्वारा दिया गया बयान था. मुझे आश्चर्य है कि कैसे न्यायमूर्ति रंजन गोगोई ने एक बार स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए दृढ़ विश्वास के ऐसे साहस का प्रदर्शन किया था न्यायपालिका ने, न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर नेक सिद्धांतों से समझौता किया है. हमारा महान राष्ट्र बुनियादी संरचनाओं और संवैधानिक मूल्यों पर दृढ़ता से आधारित है, मुख्य रूप से स्वतंत्र न्यायपालिका के लिए धन्यवाद. जिस पल लोगों का यह विश्वास हिल गया है, उस पल यह धारणा है कि न्यायाधीशों के बीच एक वर्ग अन्यथा पक्षपाती है या आगे देख रहा है, ठोस नींव पर निर्मित राष्ट्र का विवर्तनिक संरेखण हिल गया है. इस संरेखण को मजबूत करने के लिए, न्यायपालिका को पूरी तरह से स्वतंत्र और अन्योन्याश्रित बनाने के लिए 1993 में उच्चतम न्यायालय द्वारा कॉलेजियम प्रणाली पेश की गई थी. मैं न्यायमूर्ति चेलमेश्वर, न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर के साथ एक अभूतपूर्व कदम के साथ सार्वजनिक रूप से देश को यह बताने के लिए सामने आया कि इस आधार पर खतरा है और अब मुझे लगता है कि खतरा बड़े स्तर पर है. यही कारण था कि मैंने रिटायरमेंट के बाद कोई पद नहीं लेने का फैसला किया. मेरे अनुसार, भारत के एक पूर्व मुख्य न्यायाधीश द्वारा राज्यसभा के सदस्य के रूप में नामांकन की स्वीकृति ने निश्चित रूप से न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर आम आदमी के विश्वास को हिला दिया है, जो भारत के संविधान की बुनियादी संरचनाओं में से एक भी है."
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