महाराष्ट्र में 22 अक्टूबर से सिनेमा हॉल और नाट्यगृह खुलने वाले हैं. पिछले डेढ़ साल से नाट्यगृह बंद हैं, इसका असर कलाकारों के साथ ही बैकस्टेज पर काम करने वालों पर पड़ा है. सालों से नाट्य गृह में टेक्निकल काम करने वाले लोग दर-दर काम के लिए भटक रहे हैं, कर्ज लेकर घर चल रहा है. सरकार से कोई राहत नहीं मिल पाई है. पिछले डेढ़ साल से महाराष्ट्र में नाट्यगृह बंद हैं. लेकिन अब महाराष्ट्र सरकार ने 22 अक्टूबर से इसे दोबारा खोलने के आदेश दिए हैं. मुंबई के सीपज इलाके में मौजूद एक गोदाम में प्रसिद्ध मराठी नाटक 'धनंजय माने इथेच राहतात' के सेट को बनाया जा रहा है. इतने समय से इस गोदाम में करीब 50 नाटकों के सेट के सामान इसी तरह पड़े हुए हैं. मजदूरों के पास काम नहीं है, सामान खराब हुए हैं, गोदाम के मालिकों को लाखों का नुकसान हुआ है.
गोदाम मालिक प्रवीण भोसले का कहना है, “सामान हिलाएंगे नहीं तो और ज्यादा खराब होने के चांस हैं. बारिश में पड़े रहने के वजह से 5 से 6 सेट खराब हो चुके हैं. सबकुछ मिलाकर डेढ़ साल में 45 लाख का नुकसान हुआ है.” नाट्यगृह के बंद होने का सबसे ज्यादा असर बैकस्टेज में काम करने वाले कर्मचारियों पर पड़ा है. अशोक डोईफोड़े पिछले 35 सालों से नाट्य गृह में लाइट और साउंड ऑपरेटिंग का काम कर रहे हैं. कई अभिनेताओं ने इनके काम की तारीफ कर इनका सम्मान भी किया है. अशोक पिछले डेढ़ साल से बेरोजगार हैं और इसी तरह इन तस्वीरों को देख अपने अतीत को याद करते हैं. यह अब 59 साल के हैं, कभी सोचा नहीं था कि नाट्य गृह छोड़ कहीं काम ढूंढना पड़ेगा.
लाइट और साउंड ऑपरेटर, अशोक डोईफोड़े ने कहा, “मैंने साउंड ऑपरेटर और लाइट ऑपरेटर का ही काम किया है. लेकिन उस समय वो काम शुरू नहीं था, तो मैं नौकरी ढूंढने गया. अब मेरे लायक सिक्योरिटी गार्ड का काम था, मैं 2-3 जगह जाकर आया, लेकिन उन्होंने कहा कि आपके उम्र के वजह से हम आपको नहीं रख सकते हैं. मैं कहां नौकरी ढूंढने जाऊं. जबतक यह काम शुरू नहीं होता, तब तक मेरे पास कोई दूसरा पर्याय नहीं है.” जब नाट्यगृह ही बंद हैं, तो मेकअप आर्टिस्ट भी घर बैठे हुए हैं. 17 सालों से राजेश परब मेकअप आर्टिस्ट का काम कर रहे हैं. लेकिन पिछले डेढ़ साल में इन्हें मास्क बेचने से लेकर छाता बेचने का काम करना पड़ा. राजेश ने नहीं सोचा था कि बड़े-बड़े कलाकारों के साथ काम करने के बाद उन्हें मास्क बेचना पड़ेगा.
मेकअप आर्टिस्ट राजेश परब का कहना है, “भाई और मैं मिलकर घर चलाता हूं. घर चलाने के लिए मैंने रोड पर ठेला लगाना शुरू किया और अलग अलग प्रोडक्ट बेचना शुरू किया. मैंने मास्क बेचा. बारिश में छाते बेचे. इसी तरह अलग-अलग काम करते हुए मैंने घर संभाला है. खर्च ज्यादा होने के कारण लोगों से पैसा मांगना पड़ा, दो बैंक से कर्ज लेना पड़ा. जब एक नाटक चलता है, तब बैकस्टेज पर लगभग 20 लोग मौजूद होते हैं जो अलग अलग काम करते हैं. पिछले डेढ़ साल से नाट्यगृह पर निर्भर रहने वाले सैंकड़ों लोग बेरोज़गार हुए हैं.” रंगमंच कामगार संघ के अध्यक्ष किशोर वेले बताते हैं कि केवल कुछ निजी संगठन के लोगों ने उनकी मदद की. कई बार अपनी परेशानी सरकार को बताने के बावजूद कोई राहत नहीं दी गई
रंगमंच कामगार संघ के अध्यक्ष किशोर वेले ने बताया, “हमने सरकार को बहुत सारे पत्र दिए, मुख्यमंत्री और सांस्कृतिक कार्यालय को भी. लेकिन कोई जवाब नहीं आया. हमने सरकार से दोबारा कहा कि कुछ तो करो. क्योंकि बाहर के लोग जो मदद कर रहे थे उनके पैसे खत्म हो गए. सरकार ने तो कुछ दिया ही नहीं.”
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं