तमिलनाडु में मेडिकल दाखिलों में अखिल भारतीय कोटा में ओबीसी आरक्षण की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई से इनकार किया. सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक पार्टियों की याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पार्टियां इस मामले में हाईकोर्ट जाने को आजाद हैं. कोर्ट ने कहा कि आरक्षण का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है. जिनके मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है, अनुच्छेद 32 केवल उनके लिए उपलब्ध है. हम मानते हैं कि आप सभी तमिलनाडु के नागरिकों के मौलिक अधिकारों में रुचि रखते हैं.
ऑल इंडिया कोटा के तहत स्नातक, पीजी और डिप्लोमा मेडिकल सीटों में ओबीसी के लिए राज्य के कानून के अनुसार 50% कोटा लागू करने के लिए तमिलनाडु के राजनीतिक दलों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी. सत्तारूढ़ AIADMK, विपक्षी दल DMK, MDMK से वाइको, TN कांग्रेस समिति, CPI और CPM और PMK से अंबुमणि रामदास ने ये याचिका दाखिल की थी.
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि राज्य में आरक्षण देने से अखिल भारतीय कोटा के लिए सीटों को मंजूरी ना देना असंवैधानिक है. यह संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन करता है और संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 के खिलाफ है. याचिकाकर्ताओं का यह भी कहना है कि ऑल इंडिया कोटा में ओबीसी के लिए कोटा छोड़ने का कोई औचित्य नहीं हो सकता. केंद्र, मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया और मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया को निर्देश जारी करने के लिए सुप्रीम कोर्ट मामले में हस्तक्षेप करे.
अगले साल मई में तमिलनाडु में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और ओबीसी कोटा राज्य में एक राजनीतिक मुद्दा है. सभी राजनीतिक दल ओबीसी वोटों को हासिल करने के लिए आरक्षण के मुद्दे को उठाना चाहते हैं. पहले DMK ने शीर्ष अदालत का रुख किया और उसके बाद विपक्षी दल भी इसमें शामिल हुए. फिर सत्ताधारी AIADMK ने भी अपनी याचिका दायर की. जस्टिस एल नागेश्वर राव ने कहा, ''इस मामले में सभी राजनीतिक दल एक ही मंच पर एक साथ आए हैं, तमिलनाडु में कुछ असामान्य है.''
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