नई दिल्ली:
मुंबई के 26/11 हमले के दोषी पाकिस्तानी आतंकी कसाब की अपील को ठुकराते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उसे सुनाई गई फांसी की सजा को बरकरार रखा है। कसाब ने इस हमले के मामले में उसे मौत की सजा दिए जाने के विशेष अदालत के निर्णय को चुनौती दी थी। इस हमले में 166 व्यक्ति मारे गए थे।
उच्चतम न्यायालय ने कसाब की अपील खारिज करने के साथ ही इस आतंकी वारदात में सबूतों के अभाव में दो अन्य अभियुक्तों को बरी करने के खिलाफ महाराष्ट्र सरकार की अपील भी खारिज कर दी। न्यायमूर्ति आफताब आलम और न्यायमूर्ति चंद्रमौलि कुमार प्रसाद की खंडपीठ ने कहा कि कसाब ने भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने की साजिश में शामिल होने का अपराध किया है।
न्यायाधीशों ने कहा कि मुंबई पर आतंकी हमले के तथ्यों, साक्ष्यों और परिस्थितियों के मद्देनजर मोहम्मद अजमल कसाब को मौत की सजा देने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है। न्यायाधीशों ने कसाब की इस दलील को ठुकरा दिया कि उसके मुकदमे की निष्पक्ष सुनवाई नहीं हुई। न्यायालय ने कसाब के इकबालिया बयान के बारे में कहा कि यह स्वेच्छा से दिया था। निचली अदालत में मुकदमे की सुनवाई के दौरान वह इससे मुकर गया था।
मुकदमे की सुनवाई के दौरान उसे वकील मुहैया नहीं कराने के कसाब की दलील अस्वीकार करते हुए न्यायालय ने कहा कि निचली अदालत ने सुनवाई के दौरान इस बारे में बार-बार आग्रह किया था, लेकिन उसने हर बार इसे ठुकरा दिया था। शीर्ष अदालत ने उच्चतम न्यायालय में कसाब का प्रतिनिधित्व करने की जिम्मेदारी वरिष्ठ अधिवक्ता राजू रामचंद्रन को सौंपी थी। राजू रामचंद्रन ने न्यायालय के फैसले पर संतोष व्यक्त किया है।
न्यायमूर्ति आफताब आलम और न्यायमूर्ति चंद्रमौलि कुमार प्रसाद की खंडपीठ ने कसाब की अपील पर 25 अप्रैल को सुनवाई पूरी की थी। न्यायालय ने कसाब की याचिका पर करीब ढाई महीने सुनवाई की और इस दौरान आतंकी हमले के सिलसिले में इस्तगासा और बचाव पक्ष की दलीलों को सुना। न्यायालय ने कसाब की मौत की सजा पर गत वर्ष 10 अक्टूबर को रोक लगा दी थी।
न्यायालय में सुनवाई के दौरान कसाब की ओर से दलील दी गई कि इस मामले में स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से सुनवाई नहीं हुई। उसका यह भी दावा था कि वह भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने की किसी बड़ी साजिश का हिस्सा नहीं था।
कसाब का यह भी तर्क था कि अभियोजन पक्ष उसके खिलाफ आरोपों को पूरी तरह संदेह से परे सिद्ध करने में विफल रहा है। यही नहीं, उसका यह भी आरोप था कि अदालत में सुनवाई के दौरान पर्याप्त तरीके से प्रतिनिधित्व के अधिकार से भी उसे वंचित किया गया है। बंबई उच्च न्यायालय के निर्णय के खिलाफ दायर याचिका में कसाब ने दावा किया था कि 'अल्लाह' के नाम पर उसे रोबोट की तरह यह अपराध करने के लिए सिखाया गया। उसका तर्क है कि उसकी उम्र को देखते हुए उसे मृत्युदंड नहीं दिया जाना चाहिए।
उच्च न्यायालय ने पिछले साल 21 फरवरी को अपने फैसले में कसाब को मृत्युदंड देने के निचली अदालत के 6 मई, 2010 के फैसले की पुष्टि कर दी थी। मुंबई की आर्थर रोड जेल में बंद कसाब ने जेल अधिकारियों के जरिये यह याचिका दायर की थी।
कसाब नौ अन्य पाकिस्तानी आतंकवादियों के साथ 26 नवंबर, 2008 को कराची से समुद्र के रास्ते दक्षिण मुंबई पहुंचा था। इसके बाद इन आतंकवादियों ने मुंबई के विभिन्न स्थानों पर अंधाधुंध फायरिंग की, जिसमें 166 व्यक्ति मारे गए। इस आतंकी हमले के दौरान सुरक्षा बलों के साथ हुई मुठभेड़ में नौ पाकिस्तानी आतंकी मारे गए थे, जबकि कसाब को जिंदा पकड़ लिया गया था।
उच्च न्यायालय ने आपराधिक साजिश रचने और राष्ट्र के खिलाफ युद्ध छेड़ने के जुर्म में भारतीय दंड संहिता तथा गैर-कानूनी गतिविधियां रोकथाम कानून, शस्त्र कानून, विस्फोटक सामग्री कानून, विदेशी कानून, पासपोर्ट कानून और रेलवे कानून के विभिन्न प्रावधानों के तहत कसाब को दोषी ठहराने और उसे मौत की सजा देने के निर्णय की पुष्टि की थी।
उच्चतम न्यायालय ने कसाब की अपील खारिज करने के साथ ही इस आतंकी वारदात में सबूतों के अभाव में दो अन्य अभियुक्तों को बरी करने के खिलाफ महाराष्ट्र सरकार की अपील भी खारिज कर दी। न्यायमूर्ति आफताब आलम और न्यायमूर्ति चंद्रमौलि कुमार प्रसाद की खंडपीठ ने कहा कि कसाब ने भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने की साजिश में शामिल होने का अपराध किया है।
न्यायाधीशों ने कहा कि मुंबई पर आतंकी हमले के तथ्यों, साक्ष्यों और परिस्थितियों के मद्देनजर मोहम्मद अजमल कसाब को मौत की सजा देने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है। न्यायाधीशों ने कसाब की इस दलील को ठुकरा दिया कि उसके मुकदमे की निष्पक्ष सुनवाई नहीं हुई। न्यायालय ने कसाब के इकबालिया बयान के बारे में कहा कि यह स्वेच्छा से दिया था। निचली अदालत में मुकदमे की सुनवाई के दौरान वह इससे मुकर गया था।
मुकदमे की सुनवाई के दौरान उसे वकील मुहैया नहीं कराने के कसाब की दलील अस्वीकार करते हुए न्यायालय ने कहा कि निचली अदालत ने सुनवाई के दौरान इस बारे में बार-बार आग्रह किया था, लेकिन उसने हर बार इसे ठुकरा दिया था। शीर्ष अदालत ने उच्चतम न्यायालय में कसाब का प्रतिनिधित्व करने की जिम्मेदारी वरिष्ठ अधिवक्ता राजू रामचंद्रन को सौंपी थी। राजू रामचंद्रन ने न्यायालय के फैसले पर संतोष व्यक्त किया है।
न्यायमूर्ति आफताब आलम और न्यायमूर्ति चंद्रमौलि कुमार प्रसाद की खंडपीठ ने कसाब की अपील पर 25 अप्रैल को सुनवाई पूरी की थी। न्यायालय ने कसाब की याचिका पर करीब ढाई महीने सुनवाई की और इस दौरान आतंकी हमले के सिलसिले में इस्तगासा और बचाव पक्ष की दलीलों को सुना। न्यायालय ने कसाब की मौत की सजा पर गत वर्ष 10 अक्टूबर को रोक लगा दी थी।
न्यायालय में सुनवाई के दौरान कसाब की ओर से दलील दी गई कि इस मामले में स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से सुनवाई नहीं हुई। उसका यह भी दावा था कि वह भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने की किसी बड़ी साजिश का हिस्सा नहीं था।
कसाब का यह भी तर्क था कि अभियोजन पक्ष उसके खिलाफ आरोपों को पूरी तरह संदेह से परे सिद्ध करने में विफल रहा है। यही नहीं, उसका यह भी आरोप था कि अदालत में सुनवाई के दौरान पर्याप्त तरीके से प्रतिनिधित्व के अधिकार से भी उसे वंचित किया गया है। बंबई उच्च न्यायालय के निर्णय के खिलाफ दायर याचिका में कसाब ने दावा किया था कि 'अल्लाह' के नाम पर उसे रोबोट की तरह यह अपराध करने के लिए सिखाया गया। उसका तर्क है कि उसकी उम्र को देखते हुए उसे मृत्युदंड नहीं दिया जाना चाहिए।
उच्च न्यायालय ने पिछले साल 21 फरवरी को अपने फैसले में कसाब को मृत्युदंड देने के निचली अदालत के 6 मई, 2010 के फैसले की पुष्टि कर दी थी। मुंबई की आर्थर रोड जेल में बंद कसाब ने जेल अधिकारियों के जरिये यह याचिका दायर की थी।
कसाब नौ अन्य पाकिस्तानी आतंकवादियों के साथ 26 नवंबर, 2008 को कराची से समुद्र के रास्ते दक्षिण मुंबई पहुंचा था। इसके बाद इन आतंकवादियों ने मुंबई के विभिन्न स्थानों पर अंधाधुंध फायरिंग की, जिसमें 166 व्यक्ति मारे गए। इस आतंकी हमले के दौरान सुरक्षा बलों के साथ हुई मुठभेड़ में नौ पाकिस्तानी आतंकी मारे गए थे, जबकि कसाब को जिंदा पकड़ लिया गया था।
उच्च न्यायालय ने आपराधिक साजिश रचने और राष्ट्र के खिलाफ युद्ध छेड़ने के जुर्म में भारतीय दंड संहिता तथा गैर-कानूनी गतिविधियां रोकथाम कानून, शस्त्र कानून, विस्फोटक सामग्री कानून, विदेशी कानून, पासपोर्ट कानून और रेलवे कानून के विभिन्न प्रावधानों के तहत कसाब को दोषी ठहराने और उसे मौत की सजा देने के निर्णय की पुष्टि की थी।
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