मराठवाड़ा में प्राकृतिक नहीं, सरकारी सूखे से बिगड़े हालात

मराठवाड़ा में प्राकृतिक नहीं, सरकारी सूखे से बिगड़े हालात

मुंबई:

क्या सूखा सिर्फ प्राकृतिक होता है? या सरकारी भी, कम से कम मराठवाड़ा के पैंठणी तहसील में अगर आप आएं तो ये सवाल जरूर उठेंगे। 55 गांवों को पानी देने के लिए 220 करोड़ की बह्मगव्हणे लिफ्ट इरिगेशन योजना 6 साल में 100 करोड़ रुपये खर्च करने के बावजूद महज 50 फीसदी तक ही बन पाई है।

मराठवाड़ा के कई गांवों में पानी कै टैंकर पर लड़ती-भिड़ती महिलाओं की तस्वीरें आम हैं। लेकिन कम से कम पैंठणी तहसील के 55 गांवों में ये तस्वीर बदल सकती थी अगर बह्मगव्हणे लिफ्ट इरिगेशन योजना तय वक्त पर पूरी हो जाती। इस प्रोजेक्ट के लिए औरंगाबाद में स्थित जायकवाड़ी बांध से छोटी सी नहर निकालने की योजना थी, गोदावरी नासिक से होते हुए औरंगाबाद में आती है।

बम्हगव्हणे लिफ्ट इरिगेशन के तहत पानी पहुंचाने की योजना 2009 में शुरू हुई थी, चूंकि ये इलाके जायकवाड़ी के ऊपर है, इसलिए पानी को लिफ्ट करना था। योजना 2 चरणों में पूरी होनी थी, 112 करोड़ खर्च हो चुके हैं खेरड़ा तक डैम बन गया है, पंप हाऊस का 95 फीसदी काम पूरा हो गया है, लेकिन अब फंड नहीं हैं सो जिस योजना को 2013 में बनकर तैयार हो जाना था उसके पहला चरण भी पूरा नहीं हुआ है।

योजना के कार्यकारी अभियंता पी.बी. शेलार खुद मानते हैं कि कम फंड की कमी से रुका पड़ा है। उन्होंने कहा पहले चरण में 9 किमी का राइजिंग बनना था, 37 किमी. की नहर, जबकि दूसरे फेज में 6 किमी. के राइजिंग का निर्माण होना था, 29 किमी नहर पहले चरण का ही काम पूरा हो जाए तो 48 गांवों की प्यास मिट सकती है।

पैंठणी तहसील के किसान कहते हैं, योजना पूरी हो गई होती तो उनकी किस्मत बदल जाती, लेकिन सरकारी उदासीनता को देखकर अब किसानों का गुस्सा बढ़ रहा है।

जगह-जगह बैठक हो रही है, आंदोलन की रूपरेखा तैयार की जा रही है। अन्नदाता शेतकरी संगठन प्रदेश अध्यक्ष जयाजीराव सूर्यवंशी पाटिल का कहना है कि ये हमारे हक का पानी है, जिसे उद्योगों को दिया जा रहा है, अगर जल्दी काम पूरा नहीं हुआ तो हम एमआईडीसी का पानी रोक देंगे।

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अकेले औरंगाबाद में इस साल 83 किसान खुदकुशी कर चुके हैं, ऐसे में जिस राज्य के हुक्मरानों पर 70000 करोड़ रुपये के सिंचाई घोटाले के आरोप लग चुके हों, क्या ये रकम उनके लिए इतनी बड़ी है।