सरकारी अस्पतालों में पुराने नोटों को चलने देने में क्या दिक्कत है, बताए सरकार : सुप्रीम कोर्ट

सरकारी अस्पतालों में पुराने नोटों को चलने देने में क्या दिक्कत है, बताए सरकार : सुप्रीम कोर्ट

खास बातें

  • कोर्ट : अस्पतालों में पुराने नोटों को चलने देने में क्या दिक्कत है
  • 'क्या केंद्र ने इस फैसले से पहले सोचा था, : कोर्ट
  • अब तक बैंकों में 13 लाख करोड़ पुराने नोट वापस आ चुके हैं
नई दिल्ली:

नोटबंदी पर उच्चतम न्यायालय में दायर एक याचिका पर न्यायालय ने सभी पक्षों की सुनवाई करने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. अदालत ने कहा कि सभी तथ्यों पर विचार करने के बाद वह अपना फैसला सुनाएगी.

अदालत ने केन्द्र सरकार से फिर सवाल किया कि सरकारी अस्पतालों में पुराने नोटों को चलने देने में क्या दिक्कत है, वहां मरीजों को परेशानी होती है.

केंद्र सरकार ने पूर्व के सवालों के जवाब में अदालत को बताया कि ज़िला सहकारी बैंक 10 नवंबर से 14 नवंबर तक जमा की गई रकम को भारतीय रिजर्व बैंक में जमा कर सकते हैं और यह रकम करीब 8 हज़ार करोड़ रुपये है. सरकार ने यह भी साफ कर दिया कि पुराने नोटों पर छूट को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता.

इससे पहले मामले की सुनवाई करते हुए अदालत ने केन्द्र सरकार से 2 सवालों पर जवाब मांगा था. इनमें अदालत ने सरकार से पूछा कि क्या अदालत बैंक से पैसा निकालने की कोई न्यूनतम सीमा तय करे, जो पूरे देश में एकसमान लागू हो. और इस सीमा को बैंक भी इनकार न कर सकें, जैसे कि 10 हज़ार रुपये. दूसरे सवाल में अदालत ने सरकार से ज़िला सहकारी बैंकों को पैसा जमा करने और निकासी के अधिकार दिए जाने की बात कही थी. अदालत ने सरकार पर यह सवाल भी उठाया कि क्या केंद्र ने इस फैसले से पहले सोचा था, कोई योजना तैयार की थी.

सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने अदालत को बताया कि नोटबंदी के मामले पर राजनीति हो रही है, जबकि हकीकत में ऐसे हालात नहीं हैं. उन्होंने सराकर की मंशा को स्पष्ट करते हुए कहा कि पुराने नोटों पर छूट को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता. लोगों की सहूलियत के लिए उन्होंने कहा कि बैंकों को 300 करोड़ रुपये रोजना मिलेंगे और यह बैंकों की जरुरत के हिसाब से ही है.

मुकुल रोहतगी ने अदालत को बताया कि सरकार के इस कदम से अब तक करीब 13 लाख करोड़ पुराने नोट वापस आ चुके हैं.


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