लगातार घटते जनाधार और विधानसभा चुनावों के साथ साथ लोकसभा चुनावों में मिली हार के बाद सबसे बड़ी लेफ्ट पार्टी सीपीएम के भीतर वैचारिक टकराव तेज़ हो गया है। पार्टी महासचिव प्रकाश करात और वरिष्ठ पोलित ब्यूरो नेता सीताराम येचुरी के बीच मतभेद खुलकर सामने आ गए हैं।
दिल्ली में सीपीएम की सेंट्रल कमेटी की बैठक में पार्टी के वरिष्ठ नेता सीताराम येचुरी ने बहस के लिए एक दस्तावेज़ अलग से जमा किया है, जो पार्टी की सामूहिक लाइन को चुनौती देता है। येचुरी का कहना है कि पार्टी की नीतियां पिछले 10 सालों में ठीक से लागू नहीं हुई, जिसकी वजह से सीपीएम का ग्राफ लगातार गिरता गया है।
लोकसभा चुनावों में करारी हार के बाद पार्टी की महत्वपूर्ण पोलित ब्यूरो में ये प्रस्ताव पारित किया गया कि पिछले 30 सालों में पार्टी ने रणनीतिक रूप से कांग्रेस के खिलाफ जो लाइन ली और मोर्चे खड़े किए उससे सीपीएम को नुकसान हुआ है। इस प्रस्ताव में कहा गया है कि इस रणनीति की वजह से सीपीएम की हार हुई और क्षेत्रीय पार्टियों को फायदा हुआ। इस प्रस्ताव पर सोमवार से सेंट्रल कमेटी में चर्चा होनी है जिसके तहत पार्टी अपनी सोच को बदलने और नए सिरे से चुनावी रणनीति बनाने पर विचार कर रही है।
उधर वरिष्ठ नेता सीताराम येचुरी ने इसके उलट एक दस्तावेज जमा किया, जिसमें कहा गया है कि पार्टी की रणनीति ठीक थी, लेकिन उसे पिछले 10 सालों में सही तरीके से लागू नहीं किया गया।
साफ तौर से जहां सीपीएम एक सामूहिक फैसले की बात करती रही है वहीं येचुरी का ये दस्तावेज़ पार्टी महासचिव करात को अहम मौकों पर गलत फैसलों के लिए दोषी ठहरा रहा है।
असल में 2004 के लोकसभा चुनावों में 44 सीट जीतने वाली सीपीएम आज 9 सीटों वाली पार्टी होकर रह गई है। पश्चिम बंगाल और केरल में पार्टी हार चुकी है और अभी केवल त्रिपुरा जैसे छोटे राज्य में ही उसकी सरकार बची है।
पश्चिम बंगाल में पार्टी लगातार हाशिए पर जा रही है, जहां टीएमसी ने उसे नेस्तनाबूद कर दिया है। 2004 में सीपीएम ने कांग्रेस को केंद्र में सरकार बनाने में मदद की लेकिन 2008 में न्यूक्लियर डील पर पनपे मतभेदों के बाद समर्थन वापस ले लिया। उसके बाद से लगातार पार्टी का पराभव होता गया। 2011 में ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में लेफ्ट का 34 साल से पुराना किला तोड़ दिया। तब से ये सवाल लगातार मुखर होता गया है कि क्या कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खड़ा करना रणनीतिक रुप से सीपीएम की भूल रही?
पार्टी का एक धड़ा मानता है कि केरल और बंगाल में भले ही सीपीएम विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की खिलाफत करे, लेकिन लोकसभा चुनावों में वो ऐसा नहीं कर सकती क्योंकि ये सोच बीजेपी को मदद करती है।
अब बीजेपी के लगातार बढ़ते दबदबे को भी कई नेता सीपीएम की रणनीतिक भूल मानते हैं। पार्टी नए सिरे से बदलाव करने और रणनीति बनाने की बात कर रही है जिसमें सीपीएम के भीतर संगठनात्मक बदलाव भी शामिल हैं। इस बीच येचुरी का दस्तावेज़ नई बहस शुरू कर रहा है।
सूत्र बताते हैं कि येचुरी पार्टी की रणनीति को सही बताते हुए उसे लागू करने की ज़िम्मेदारी महासचिव प्रकाश करात पर डाल रहे हैं। उनके मुताबिक ये रणनीति तो पार्टी के बुजुर्ग नेताओं ज्योति बसु और हरिकिशन सिंह सुरजीत के वक्त से चल रही थी लेकिन करात ने उसे लागू करने में गलती की।
गौरतलब है कि पार्टी महासचिव प्रकाश करात अगले साल होने वाली पार्टी कांग्रेस के बाद अपना पद छोड़ देंगे, लेकिन सवाल ये है कि सीपीएम इस मंथन से उबर कर नई राह पर चलेगी या अन्तरविरोधों की शिकार होगी।
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