विज्ञापन
This Article is From Feb 28, 2014

प्राइम टाइम इंट्रो : वोट बैंक की राजनीति

नई दिल्ली:

नमस्कार मैं रवीश कुमार…. जब आप किसी नेता या पत्रकार के श्रीमुख से मुस्लिम वोट बैंक सुनते हैं तो आपके मन में कौन-कौन सी छवियां उभरती हैं। मैं गेस करता हूं। क्या आप यह समझते हैं कि मुस्लिम वोट बैंक के सदस्य किसी इस्लामिक धार्मिक चेतना से प्रेरित होकर वोट करते हैं, किसी मौलवी के कहने पर ही वोट करते हैं, उनके बीच राजनीतिक दलों को लेकर कोई भेद नहीं होता, वे कभी मुद्दों के लिए वोट नहीं करते मुस्लिम वोट बैंक सिर्फ मुसलमान को वोट करता है। अब ये छवियां अकेले प्राइम टाइम से तो नहीं टूटने वाली हैं। वैसे भी मैं योदगान विरोधी पत्रकार हूं। अच्छा हो या बुरा योगदान नहीं करना चाहता।

सरल हिन्दी में मुसलमान वह है जो इस्लाम का पालन करता है। मगर इस्लाम के अनुयायी कई पंथों में बंटे हैं। शिया, सुन्नी, वहाबी, देवबंदी, बरेलवी, दाऊदी, वोहरा। भारत में तो मुसलमान अनेक जातियों में बंटे हैं। अगड़ा-पिछड़ा, अमीरी-गरीबी का भेद है। इन दिनों पिछड़ा और दलित मुसलमान अपनी अलग राजनीतिक पहचान के लिए संघर्ष कर रहा है। फिर भी हम एकमुश्त सवाल करते हैं कि मुसलमान किधर जाएगा, क्योंकि राजनीतिक दलों को लगता है कि खाली पड़े स्टेडियम में हजार-पांच सौ मुसलमानों को बुलाकर भाषण दे देने से मुसलमानों से संवाद हो जाता है। एक आम मुस्लिम मतदाता के इस विवेक को मुस्लिम वोट बैंक कह कर कहीं उसका सांप्रदायिकरण तो नहीं किया जाता है। फिर पासवान, कुशवाहा या यादव वोट बैंक मुस्लिम वोट बैंक से कैसे अलग है। मुसलमानों के मुद्दों पर कोई बात क्यों नहीं करता। क्या उन्हें दंगों के संदर्भ में ही देखा जाता रहेगा।

अब आते हैं माफी पर। राहुल पंडिता ने द हिंदू में लिखा है कि माफी इन दिनों राष्ट्रीय पासटाइम है। मुझे तो साफी की तरह सुनाई देती है। प्रचार का आरोप न लगे तो हमारे नेता साफी की तरह माफी माफी कर रहे हैं। मालूम नहीं खून साफ करने के लिए या खून माफ करने के लिए। किसी कानून में हत्या के आरोपियों के लिए माफी का प्रावधान नहीं है। नैतिकता का सवाल तो गर्त में ही चला गया है।

इस माफी शब्द का प्रयोग दो नेताओं के लिए हो रहा है। एक नरेंद्र मोदी और दूसरा राहुल गांधी। गुजरात के लिए नहीं मांगा तो सिख नरसंहार के लिए नहीं मांगा। पत्रकार जानकार तो किसी ऐसे दिन का इंतजार कर रहे हैं, जब ये दोनों नेता बालकनी में आकर माफी बोल देंगे और फिर सब ईद का चांद देखने के बाद की तरह माफी मुबारक- माफी मुबारक करने लगेंगे। राजनाथ सिंह का बयान आता है कि अगर हमसे कुछ गलत हुआ है तो शीश झुका कर माफी मांगेंगे। तो सबको लगता है कि माफी होने वाली है।

एक और प्रसंग चल रहा है क्लिन चिट का। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नरेंद्र मोदी के खिलाफ मुकदमा चलाने के पर्याप्त सबूत नहीं हैं। कई दलों ने इसे राजनीतिक विवाद के अंत होने के मौके की तरह देखा। अब यह नहीं मालूम कि पर्याप्त सबूतों के अभाव में कहीं टाइटलर और सज्जन कुमार को क्लिन चिट मिल गया तो वे क्या करेंगे?

तीन फरवरी के इंडियन एक्सप्रेस में विनय सितापति ने लिखा है कि कांग्रेस और एनजीओ ने दंगों में मोदी की भूमिका पर जरूरत से ज्यादा जोर दिया जिसके कारण बाकी दंगाई के अपराध और उनकी राजनीतिक पृष्ठभूमि के सवाल पीछे रह गए हैं। इंसाफ की लड़ाई संदिग्ध हुई। सितापति अपने शोध के जरिये बताते हैं कि दंगों के गुजरात सरकार दंगों के जिन मामलों की जांच और मुकदमा लड़ रही है, उनमें 12 साल बाद सिर्फ पांच प्रतिशत मामलों में सजा हुई है, जबकि सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में चले मामलों में सजा 39 प्रतिशत हुई है।

सितापति और राहुल पंडिता दोनों कहते हैं कि गुजरात में मोदी का दंगों की आरोपी माया कोडनानी को मंत्री बनाना और दिल्ली में कांग्रेस का दिबंगत एचकेएल भगत को मंत्री बनाना क्या था? माया कोडनानी इस वक्त जेल में हैं। सितापति के लेख में किसी नाजिर खान पठान का एक बयान है, ‘दोनों हमें डराते हैं। एक हिन्दू वोट लेने के लिए हमें डराता है तो दूसरा हमारा वोट लेने के लिए’

हम इस माफी मांग को मुस्लिम वोट की प्रचलित राजनीति के संदर्भ में समझना चाहते हैं। यह एक तथ्य है मुसलमान बीजेपी को वोट देता है। शत प्रतिशत तो वह किसी एक गैर बीजेपी दल को भी नहीं देता। सवाल है कि बीजेपी क्या मुसलमानों को टिकट देती है।

बीजेपी ने पिछले नवंबर में हुए चार राज्यों के विधानसभा चुनावों में 611 उम्मीदवार उतारे जिसमें से सिर्फ 6 मुसलमान थे। राजस्थान में चार को टिकट दिया और दो जीते। उससे पहले गुजरात और कर्नाटक में एक भी उम्मीदवार नहीं दिया। जबकि इन चुनावों की रैलियों में बीजेपी ने खूब प्रदर्शित किया कि कितनी तादाद में बुरके में आई और कितने तादाद में टोपी में। कांग्रेस ने गुजरात, कर्नाटक, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और दिल्ली में कुल मिलाकर 54 मुसलमानों को ही टिकट दिए। कोई खास रिकॉर्ड नहीं है।

तो सवाल यहां भागीदारी का है या माफी का या क्लिन चिट का। आज के टाइम्स आफ इंडिया में खबर है कि 722 भारतीयों की जान बचाने वाले एक भारवाहक पोत के कप्तान जैनुल आबिदीन को ब्रांदा इलाके में घर नहीं मिला। वह खरीदने गए तो ब्रोकर ने बताया कि जिस सोसायटी में आप चाहते हैं वहां अलिखित नियम है। मुसलमान को न घर बेचना है न किराये पर देना है। इसके खिलाफ कभी भी आप दो दलों के बड़े नेताओं को आह्वान करते नहीं सुनेंगे। क्या यह अपराध नहीं है? (पूरा वीडियो देखें)

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
मुस्लिम, मुस्लिम वोट बैंक, वोट बैंक की राजनीति, बीजेपी, कांग्रेस, Muslim, Vote Bank Politics