
PMSMA के तहत हर महीने की 9 तारीख को सरकारी अस्पतालों में गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य की जांच की जाती है
बिलासपुर:
जिस समय देश की संसद में मातृत्व अवकाश को 12 सप्ताह से बढ़ाकर 26 सप्ताह कर दिए जाने वाले विधेयक पर राजनीति हो रही थी, उस समय सारे घटनाक्रम से अनजान छत्तीसगढ़ के बिलासपुर की निजी गायनकोलॉजिस्ट अपना अस्पताल छोड़कर शहर से करीब 25 किलोमीटर दूर बिल्हा के सरकारी स्वास्थ्य केंद्र में महिलाओं की जांच में मशगूल थीं.
हमें बताया गया कि ये गायनकोलॉजिस्ट अपनी मर्जी से महीने में एक बार स्वास्थ्य केंद्र आकर गर्भवती महिलाओं की जांच में अस्पताल के स्टॉफ का हाथ बंटाती हैं, वह भी बिना किसी फीस आदि के.
अस्पताल में गुमा गांव से अपनी जांच के लिए आई चमेली (22) ने बताया कि वह जल्दी ही मां बनने वाली है और नियमित अस्पताल में आकर अपनी और पेट में पल रहे बच्चे की जांच कराती है. चमेली की ही तरह उडगन गांव से आई रुकमणी (26) बताती है कि शहर के किसी प्राइवेट अस्पताल में जांच करने से काफी खर्चा आता है. अब प्राइवेट अस्पताल के डॉक्टर यहां बिल्हा के अस्पताल में बैठने लगी हैं तो उन्हें सहूलियत हुई है.
बिलासपुर में करीब 60 प्राइवेट डॉक्टर हैं जो बिलासपुर जिले के गांव-गांव जाकर वहां के स्वास्थ्य केंद्रों पर एक दिन अपनी सेवा देती हैं.
बिलासपुर के जिलाधिकारी अंबलगन पी. ने बताया कि प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान यानी पीएमएसएमए के तहत पूरे जिले में यह काम किया जा रहा है. वह बताते हैं कि जिले की हर गर्भवती महिला की प्रसव पूर्व जांच के लिए यह अभियान शुरू किया गया है. इसके तहत जिला अस्पताल, सामुदायिक तथा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर हर महीने की 9 तारीख को गर्भवती महिलाओं की प्रसव पूर्ण सभी प्रकार की जांच की जाती हैं. सभी महिलाओं को अच्छी सेवा मिले, इसके लिए इस काम में निजी डॉक्टरों की भी मदद ली जाती है.

बिलासपुर जिले में इस समय शिशु मृत्यु दर 38/1000 यानी जन्म लेने वाले एक हज़ार बच्चों में से 38 की मौत हो जाती है और मातृ मृत्यु का आकंड़ा प्रति एक लाख पर 261 मौतों का है.
जिले के मुख्य चिकित्सा तथा स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. भारतभूषण बोड़े बताते हैं कि इस अभियान के तहत पूरे जिले में 58 निजी महिला डॉक्टरों ने उनके पास अपना रजिस्ट्रेशन कराया है. ये डॉक्टर हर महीने की 9 तारीख को विकासखंडों के स्वास्थ्य केंद्रों पर जाकर गर्भवती महिलाओं की जांच करती हैं. डॉ. बोड़े ने बताया कि इस योजना से कुछ रेडियोलॉजिस्ट को भी जोड़ा गया है, जो अपने केंद्रों पर निशुल्क सोनोग्राफी भी करते हैं. गर्भवती महिलाओं की जांच में अगर कुछ गंभीर मामले पाए जाते हैं तो उन्हें एक लाल कार्ड दिया जाता है, जिसे के आधार पर जिला या शहर के अस्पतालों में मरीजों को प्राथमिकता के आधार पर चिकित्सा सुविधा दी जाती है.
बच्चों तथा महिलाओं के स्वास्थ्य तथा अधिकारों के लिए काम कर रहे संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) की छत्तीसगढ़ में स्वास्थ्य सलाहकार डॉ. सोनाली डेनियल बताती हैं कि इस अभियान से यहां अब अस्पतालों में प्रसव कराने का चलन तेजी से बढ़ रहा है. महिलाएं अपनी और बच्चे की सेहत को लेकर काफी सजग हो रही हैं.
डॉ. सोनाली बताती हैं कि निजी डॉक्टरों के आने से लोगों में सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं के प्रति विश्वास बढ़ा है. यहां अब घर में होने वाले प्रसवों की संख्या लगभग शून्य के बराबर रह गई है.
हमें बताया गया कि ये गायनकोलॉजिस्ट अपनी मर्जी से महीने में एक बार स्वास्थ्य केंद्र आकर गर्भवती महिलाओं की जांच में अस्पताल के स्टॉफ का हाथ बंटाती हैं, वह भी बिना किसी फीस आदि के.
अस्पताल में गुमा गांव से अपनी जांच के लिए आई चमेली (22) ने बताया कि वह जल्दी ही मां बनने वाली है और नियमित अस्पताल में आकर अपनी और पेट में पल रहे बच्चे की जांच कराती है. चमेली की ही तरह उडगन गांव से आई रुकमणी (26) बताती है कि शहर के किसी प्राइवेट अस्पताल में जांच करने से काफी खर्चा आता है. अब प्राइवेट अस्पताल के डॉक्टर यहां बिल्हा के अस्पताल में बैठने लगी हैं तो उन्हें सहूलियत हुई है.
बिलासपुर में करीब 60 प्राइवेट डॉक्टर हैं जो बिलासपुर जिले के गांव-गांव जाकर वहां के स्वास्थ्य केंद्रों पर एक दिन अपनी सेवा देती हैं.
बिलासपुर के जिलाधिकारी अंबलगन पी. ने बताया कि प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान यानी पीएमएसएमए के तहत पूरे जिले में यह काम किया जा रहा है. वह बताते हैं कि जिले की हर गर्भवती महिला की प्रसव पूर्व जांच के लिए यह अभियान शुरू किया गया है. इसके तहत जिला अस्पताल, सामुदायिक तथा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर हर महीने की 9 तारीख को गर्भवती महिलाओं की प्रसव पूर्ण सभी प्रकार की जांच की जाती हैं. सभी महिलाओं को अच्छी सेवा मिले, इसके लिए इस काम में निजी डॉक्टरों की भी मदद ली जाती है.

बिलासपुर जिले में इस समय शिशु मृत्यु दर 38/1000 यानी जन्म लेने वाले एक हज़ार बच्चों में से 38 की मौत हो जाती है और मातृ मृत्यु का आकंड़ा प्रति एक लाख पर 261 मौतों का है.
जिले के मुख्य चिकित्सा तथा स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. भारतभूषण बोड़े बताते हैं कि इस अभियान के तहत पूरे जिले में 58 निजी महिला डॉक्टरों ने उनके पास अपना रजिस्ट्रेशन कराया है. ये डॉक्टर हर महीने की 9 तारीख को विकासखंडों के स्वास्थ्य केंद्रों पर जाकर गर्भवती महिलाओं की जांच करती हैं. डॉ. बोड़े ने बताया कि इस योजना से कुछ रेडियोलॉजिस्ट को भी जोड़ा गया है, जो अपने केंद्रों पर निशुल्क सोनोग्राफी भी करते हैं. गर्भवती महिलाओं की जांच में अगर कुछ गंभीर मामले पाए जाते हैं तो उन्हें एक लाल कार्ड दिया जाता है, जिसे के आधार पर जिला या शहर के अस्पतालों में मरीजों को प्राथमिकता के आधार पर चिकित्सा सुविधा दी जाती है.
बच्चों तथा महिलाओं के स्वास्थ्य तथा अधिकारों के लिए काम कर रहे संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) की छत्तीसगढ़ में स्वास्थ्य सलाहकार डॉ. सोनाली डेनियल बताती हैं कि इस अभियान से यहां अब अस्पतालों में प्रसव कराने का चलन तेजी से बढ़ रहा है. महिलाएं अपनी और बच्चे की सेहत को लेकर काफी सजग हो रही हैं.
डॉ. सोनाली बताती हैं कि निजी डॉक्टरों के आने से लोगों में सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं के प्रति विश्वास बढ़ा है. यहां अब घर में होने वाले प्रसवों की संख्या लगभग शून्य के बराबर रह गई है.
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Pradhan Mantri Surakshit Matritva Abhiyan, Chhattisgarh, प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान, छत्तीसगढ़