प्रधानमंत्री की महत्वाकांक्षी सांसद आदर्श ग्राम योजना पर राजनीति तेज़ हो गई है, जिसके तहत प्रत्येक सांसद को योजना लॉन्च होने के एक महीने के भीतर अपने संसदीय क्षेत्र में एक गांव को आदर्श गांव की तर्ज पर विकसित करने के लिए चुनना था, लेकिन सांसद आदर्श ग्राम योजना की वेबसाइट पर मौजूद ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक योजना 11 अक्टूबर, 2014 को लॉन्च किए जाने के बाद प्रत्येक सांसद को 11 नवंबर तक गांव की पहचान करनी थी, लेकिन अब तक लोकसभा के 541 में से 111 और राज्यसभा के 230 में से 95 सांसदों ने गांव की पहचान ही नहीं की है... यानि, कुल 206 सांसदों ने डेडलाइन खत्म होने से पहले गांव की पहचान नहीं की।
लेकिन इसकी एक वजह भी है, कम से कम सांसदों के हिसाब से तो है ही... दरअसल, जब एनडीटीवी ने कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस और लेफ्ट के नेताओं से इस योजना की रूपरेखा पर बात की, तो उन्होंने कई अहम सवालिया निशान योजना की मूल रूपरेखा पर ही लगा दिए।
समाजवादी पार्टी के नेता रामगोपाल यादव ने कहा कि उन्होंने न अब तक कोई गांव चुना है, न आगे चुनेंगे। उनकी दलील है कि अगर वह किसी भी एक गांव को चुनते हैं तो उसके आसपास के दूसरे गांव के लोग उनसे नाराज़ हो जाएंगे। पूर्व कानूनमंत्री और कांग्रेस सांसद वीरप्पा मोइली ने कहा कि योजना के डिज़ाइन में खामियां हैं। उन्होंने दावा किया कि यह योजना जल्दबाज़ी में लॉन्च की गई। प्रधानमंत्री ने योजना का ऐलान पहले कर दिया, उसकी रूपरेखा बाद में तैयार की।
दूसरी तरफ, सीपीएम नेता सीताराम येचुरी ने कहा कि एनडीए सरकार ने सांसदों से सलाह−मशविरा किए बिना योजना लॉन्च कर दी, जिसकी वजह से उन्हें आपत्ति है। तृणमूल कांग्रेस के सांसद सुखेन्दु शेखर राय ने दावा किया कि एनडीए सरकार को इस योजना को नए सिरे से डिज़ाइन करना होगा, क्योंकि मौजूदा ढांचे में इसकी फन्डिंग को लेकर कई सवाल खड़े हो रहे हैं और सरकार ने इसे लागू करने के लिए अलग से फन्डिंग का कोई प्रावधान नहीं किया है।
विपक्षी दलों का यह रुख आगे चलकर मोदी सरकार के लिए नई मुश्किलें खड़ी कर सकता है, जबकि योजना के तहत हर सांसद को वर्ष 2016 तक एक गांव को आदर्श गांव की तर्ज पर विकसित करना है और वर्ष 2019 तक दो और गांवों को आदर्श गांव बनाना है।
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