नई दिल्ली:
भूमि अधिग्रहण बिल एक बार फिर लटक गया है। अब इसे मॉनसून सत्र में नहीं रखा जाएगा। बिल पर बनी संयुक्त समिति ने इसे अगले सत्र के लिए टाल दिया है।
भूमि अधिग्रहण बिल पर बनी संसद की संयुक्त कमेटी के अध्यक्ष एसएस अहलूवालिया चाहते थे कि इसी सत्र में अपनी रिपोर्ट राज्य सभा में पेश कर दें, लेकिन कमेटी की आखिरी बैठक में जो हंगामा हुआ, उसके बाद यह मुमकिन नहीं रह गया है। अब सरकार इस देरी के लिए विपक्ष को जिम्मेदार ठहरा रही है। प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री जितेन्द्र सिंह ने एनडीटीवी से कहा, "जमीन अधिग्रहण बिल पर बात आगे नहीं बढ़ पाई है। यही हाल जीएसटी और दूसरे अहम बिलों का है। देश की 125 करोड़ जनता देख रही है कि इसके लिए जिम्मेदार कौन है।"
एनडीटीवी इंडिया को मिली जानकारी के मुताबिक सोमवार की संयुक्त समिति की बैठक में जमकर हंगामा हुआ। बैठक में बीजेपी के एक वरिष्ठ सदस्य ने आरोप लगाया कि कांग्रेस लैंड बिल पर जान बूझकर देरी करवा रही है। इस आरोप से तिलमिलाए जयराम रमेश ने बैठक छोड़ दी और तमतमाते हुए बाहर चले आए। जल्दी ही, कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह तेजी से बाहर आए और उन्होंने जयराम को जानकारी दी कि बीजेपी के सदस्य ने अपना बयान वापल ले लिया है। जयराम मान गए और फिर बैठक में वापस चले गए।
हालांकि महत्वपूर्ण मसलों पर इस तनाव का असर साफ दिखा। बैठक में गर्मी रेट्रोस्पेक्टिव क्लॉज पर सबसे ज्यादा हुई। कांग्रेस चाहती है कि इस मामले में 2013 के प्रावधान लागू हों। 2013 के कानून में यह प्रावधान था कि जमीन अधिग्रहण एक्ट लागू होने के पांच साल या उससे पुराने जो मामले हैं जिसमें जमीन कब्ज़े में नहीं ली गई है या जिसका पेमेन्ट नहीं हुआ है, ऐसी सभी अधिग्रहण की प्रोसीडिंग्स लैप्स मानी जानी चाहिए।
पिछले दो महीनों की जद्दोजहद के बावजूद संयुक्त समिति में नए जमीन अधिग्रहम बिल के प्रारूप पर आम राय नहीं बन सकी। अब संयुक्त समिति के चेयरमैन ने तय किया है कि वे शीतकालीन सत्र के पहले हफ्ते तक अपनी फाइनल रिपोर्ट पेश करेंगे और इस दौरान जिन मसलों पर राजनीतिक गतिरोध बना हुआ है उसे दूर करने करने के लिए नए सिरे से राजनीतिक आमराय बनाने की फिर कोशिश होगी।
भूमि अधिग्रहण बिल पर बनी संसद की संयुक्त कमेटी के अध्यक्ष एसएस अहलूवालिया चाहते थे कि इसी सत्र में अपनी रिपोर्ट राज्य सभा में पेश कर दें, लेकिन कमेटी की आखिरी बैठक में जो हंगामा हुआ, उसके बाद यह मुमकिन नहीं रह गया है। अब सरकार इस देरी के लिए विपक्ष को जिम्मेदार ठहरा रही है। प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री जितेन्द्र सिंह ने एनडीटीवी से कहा, "जमीन अधिग्रहण बिल पर बात आगे नहीं बढ़ पाई है। यही हाल जीएसटी और दूसरे अहम बिलों का है। देश की 125 करोड़ जनता देख रही है कि इसके लिए जिम्मेदार कौन है।"
एनडीटीवी इंडिया को मिली जानकारी के मुताबिक सोमवार की संयुक्त समिति की बैठक में जमकर हंगामा हुआ। बैठक में बीजेपी के एक वरिष्ठ सदस्य ने आरोप लगाया कि कांग्रेस लैंड बिल पर जान बूझकर देरी करवा रही है। इस आरोप से तिलमिलाए जयराम रमेश ने बैठक छोड़ दी और तमतमाते हुए बाहर चले आए। जल्दी ही, कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह तेजी से बाहर आए और उन्होंने जयराम को जानकारी दी कि बीजेपी के सदस्य ने अपना बयान वापल ले लिया है। जयराम मान गए और फिर बैठक में वापस चले गए।
हालांकि महत्वपूर्ण मसलों पर इस तनाव का असर साफ दिखा। बैठक में गर्मी रेट्रोस्पेक्टिव क्लॉज पर सबसे ज्यादा हुई। कांग्रेस चाहती है कि इस मामले में 2013 के प्रावधान लागू हों। 2013 के कानून में यह प्रावधान था कि जमीन अधिग्रहण एक्ट लागू होने के पांच साल या उससे पुराने जो मामले हैं जिसमें जमीन कब्ज़े में नहीं ली गई है या जिसका पेमेन्ट नहीं हुआ है, ऐसी सभी अधिग्रहण की प्रोसीडिंग्स लैप्स मानी जानी चाहिए।
पिछले दो महीनों की जद्दोजहद के बावजूद संयुक्त समिति में नए जमीन अधिग्रहम बिल के प्रारूप पर आम राय नहीं बन सकी। अब संयुक्त समिति के चेयरमैन ने तय किया है कि वे शीतकालीन सत्र के पहले हफ्ते तक अपनी फाइनल रिपोर्ट पेश करेंगे और इस दौरान जिन मसलों पर राजनीतिक गतिरोध बना हुआ है उसे दूर करने करने के लिए नए सिरे से राजनीतिक आमराय बनाने की फिर कोशिश होगी।
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