केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
केन्द्रीय आवास एवं शहरी विकास मंत्रालय की विकास परियोजनाओं की निगरानी ग्लोबल पोजीशनिंग सिस्टम (जीपीएस) के जरिये की जायेगी. इसका मकसद विकास परियोजनाओं में विलंब होने की समस्या से निजात दिलाना है. अत्याधुनिक तकनीक की मदद से गति देने की यह मुहिम केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग (सीपीडब्ल्यूडी) से शुरू करने की योजना है. मंत्रालय की परियोजनाओं के वित्तीय प्रबंधन से संबद्ध मुख्य लेखा नियंत्रक श्याम एस दुबे ने बताया ‘देश भर में केन्द्र सरकार की तमाम विकास परियोजाओं को अंजाम दे रहे सीपीडब्ल्यूडी की सभी परियोजनाओं को ‘जियो टेगिंग’ द्वारा जीपीएस से जोड़ने की योजना है.’
उन्होंने कहा कि इससे देश भर में सीपीडब्ल्यूडी के लगभग 400 परियोजना केन्द्रों से संचालित हो रही परियोजनाओं के काम की न सिर्फ ‘रियल टाइम’ आधारित निगरानी की जा सकेगी बल्कि संबद्ध अधिकारियों की जवाबदेही तय करते हुये योजनाओं के लंबित होने की समस्या भी दूर होगी. इसके लिये सीपीडब्ल्यूडी की सभी परियोजनाओं को जीपीएस की मदद से दिल्ली स्थित मुख्यालय से जोड़ा जायेगा.
दुबे ने बताया कि इसके दो फायदे होंगे. पहला, परियोजना में होने वाले काम की तस्वीरों के माध्यम से व्यय का सटीक आंकलन किया जा सकेगा, और दूसरा, परियोजना से जुड़े अधिकारियों की जवाबदेही और कार्यक्षमता बढ़ाते हुये विकास परियोजनाओं में वित्तीय पारदर्शिता लायी जा सकेगी. उन्होंने बताया कि पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) की आवास परियोजनाओं में इस तकनीक के कामयाब प्रयोग को अंजाम देने के बाद अब देशव्यापी स्तर पर इसे सीपीडब्ल्यूडी से शुरू करने की योजना है.
दुबे ने बताया कि हाल ही में विभाग ने परियोजनाओं में देरी की मुख्य वजह बन रही पारंपरिक भुगतान प्रक्रिया को खत्म कर पूरी तरह से कैशलैस भुगतान शुरू करने के बाद परियोजनाओं की ऑनलाइन निगरानी भी शुरू कर दी है. पिछले सप्ताह आवास एवं शहरी विकास राज्य मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने सीपीडब्ल्यूडी की सभी परियोजनाओं को ‘इंट्रानेट’ आधारित वेबपोर्टल से जोड़ने की शुरुआत करते हुये इसी पोर्टल के माध्यम से परियोजनाओं की व्यय राशि के डिजिटल भुगतान की प्रक्रिया को हरी झंडी दिखाई थी. इसके साथ ही सीपीडब्ल्यूडी अपनी परियोजनाओं का शत प्रतिशत डिजिटल भुगतान और ऑनलाइन निगरानी करने वाली पहली केन्द्रीय एजेंसी बन गयी है.
उल्लेखनीय है कि किसी भी विकास परियोजना की जियो टैगिंग कर इसकी ‘जियोग्राफिकल मैपिंग’ की जाती है. इससे परियोजना स्थल की वास्तविक भौगोलिक स्थिति को उपग्रह आधारित जीपीएस सेवा से जोड़ कर इसके काम की हर पल हो रही प्रगति की समीक्षा तस्वीरों के माध्यम से की जाती है. इससे हर दिन होने वाले काम और इस्तेमाल की गयी सामग्री की गुणवत्ता का भी सटीक पता लग जाता है.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
उन्होंने कहा कि इससे देश भर में सीपीडब्ल्यूडी के लगभग 400 परियोजना केन्द्रों से संचालित हो रही परियोजनाओं के काम की न सिर्फ ‘रियल टाइम’ आधारित निगरानी की जा सकेगी बल्कि संबद्ध अधिकारियों की जवाबदेही तय करते हुये योजनाओं के लंबित होने की समस्या भी दूर होगी. इसके लिये सीपीडब्ल्यूडी की सभी परियोजनाओं को जीपीएस की मदद से दिल्ली स्थित मुख्यालय से जोड़ा जायेगा.
दुबे ने बताया कि इसके दो फायदे होंगे. पहला, परियोजना में होने वाले काम की तस्वीरों के माध्यम से व्यय का सटीक आंकलन किया जा सकेगा, और दूसरा, परियोजना से जुड़े अधिकारियों की जवाबदेही और कार्यक्षमता बढ़ाते हुये विकास परियोजनाओं में वित्तीय पारदर्शिता लायी जा सकेगी. उन्होंने बताया कि पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) की आवास परियोजनाओं में इस तकनीक के कामयाब प्रयोग को अंजाम देने के बाद अब देशव्यापी स्तर पर इसे सीपीडब्ल्यूडी से शुरू करने की योजना है.
दुबे ने बताया कि हाल ही में विभाग ने परियोजनाओं में देरी की मुख्य वजह बन रही पारंपरिक भुगतान प्रक्रिया को खत्म कर पूरी तरह से कैशलैस भुगतान शुरू करने के बाद परियोजनाओं की ऑनलाइन निगरानी भी शुरू कर दी है. पिछले सप्ताह आवास एवं शहरी विकास राज्य मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने सीपीडब्ल्यूडी की सभी परियोजनाओं को ‘इंट्रानेट’ आधारित वेबपोर्टल से जोड़ने की शुरुआत करते हुये इसी पोर्टल के माध्यम से परियोजनाओं की व्यय राशि के डिजिटल भुगतान की प्रक्रिया को हरी झंडी दिखाई थी. इसके साथ ही सीपीडब्ल्यूडी अपनी परियोजनाओं का शत प्रतिशत डिजिटल भुगतान और ऑनलाइन निगरानी करने वाली पहली केन्द्रीय एजेंसी बन गयी है.
उल्लेखनीय है कि किसी भी विकास परियोजना की जियो टैगिंग कर इसकी ‘जियोग्राफिकल मैपिंग’ की जाती है. इससे परियोजना स्थल की वास्तविक भौगोलिक स्थिति को उपग्रह आधारित जीपीएस सेवा से जोड़ कर इसके काम की हर पल हो रही प्रगति की समीक्षा तस्वीरों के माध्यम से की जाती है. इससे हर दिन होने वाले काम और इस्तेमाल की गयी सामग्री की गुणवत्ता का भी सटीक पता लग जाता है.
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