वाराणसी / नई दिल्ली: मोदी सरकार इस बात पर गंभीरता से विचार कर रही है कि अगर सांसद सदन में काम नहीं करते हैं तो उनपर भी काम नहीं तो वेतन नहीं की बात लागू की जाए। 11 राज्यों के 111 सांसदों ने इस पर सहमति जताई है, खास बात है कि इनमें सात केन्द्रीय मंत्री भी हैं।
केन्द्रीय मंत्री डॉक्टर महेश शर्मा कहते हैं कि जब एक मजदूर काम नहीं करता है तो उसे वेतन नहीं दिया जाता है तो फिर ये बात सांसदों पर क्यों नहीं लागू हो सकती। डॉ. शर्मा ये बात तब कहते हैं जब बीते 21 जुलाई से संसद के दोनों सदनों में कामकाज नहीं के बराबर हो रहा है, तो फिर उन जैसे सांसदों को दूसरा कोई रास्ता नहीं नजर आता।
लेकिन सरकार का विरोध कर रहे कांग्रेस की सांसद सुष्मिता देव कहती हैं, आज उनकी सरकार है तो वो सैलरी दे या नहीं हम तो अपना विरोध जारी रखेंगे। आम आदमी पार्टी के नेता भगवंत मान कहते हैं, 'उनकी पार्टी बिल्कुल इससे सहमत है कि काम नहीं तो वेतन नहीं लेकिन ये अभी से नहीं, पीछे से लागू करना होगा ताकि यूपीए शासनकाल में एनडीए ने जो कुछ संसद में किया था वो भी सामने आए।
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी कहा कि सरकार के पास ऐसे सुझाव आए हैं और इस पर चर्चा होनी चाहिए। फिलहाल सासदों को हर महीने 50 हजार वेतन मिलते हैं और हर दिन का भत्ता दो हजार मिलता है। अगर एक दिन ससंद में काम नहीं होता है तो करीब आठ करोड़ रुपये का नुकसान होता है और इसकी जिम्मेदारी लेने के लिये ना तो सत्ता पक्ष और ना ही विपक्ष तैयार है।