नीतीश कुमार के बारह साल : यह हैं बिहार और बिहारियों को निराश करने वाले 12 मुद्दे

अगर आप बिहार में रहते हैं या अप्रवासी बिहारी हैं और गाहे बगाहे घर जाते रहते हैं तब यह बारह बातें आपको जरूर खलेंगी, मन में सवाल उठेगा कि सीएम नीतीश कुमार आखिर इन मुद्दों पर ध्यान क्यों नहीं देते?

नीतीश कुमार के बारह साल : यह हैं बिहार और बिहारियों को निराश करने वाले 12 मुद्दे

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (फाइल फोटो).

खास बातें

  • शहरों में बेहिसाब गंदगी पर चिंतित नहीं मुख्यमंत्री
  • बिना पैसा लिए शिकायत दर्ज नहीं करती पुलिस
  • उच्च शिक्षा से प्राथमिक शिक्षा तक बुरे हाल में
पटना:

जहां देश में कुछ राज्यों में सत्ता में अपने बारह साल पूरे होने पर उन राज्यों के मुख्यमंत्री बारह साल बेमिसाल के नाम से कई कार्यक्रम कर  रहे हैं वहीं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अब सत्ता में अपनी सालगिरह नहीं मनाते. पिछले साल भी नहीं मनाया और इस साल तो रिपोर्ट कार्ड तक तैयार नहीं करवाया तो बंटवाने का सवाल ही नहीं. राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह के बाद सत्ता में इतने लंबे समय तक का नीतीश कुमार ने नया रिकॉर्ड बनाया है लेकिन अगर आप बिहार में रहते हैं या अप्रवासी बिहारी हैं और गाहे बगाहे घर जाते रहते हैं तब यह बारह बातें आपको जरूर खलेंगी. सबको लगता है कि नीतीश आखिर इन मुद्दों पर ध्यान क्यों नहीं देते?

1. राज्य के शहरों की स्थिति दयनीय हैं. खुद मुख्यमंत्री मानते हैं कि राजधानी पटना गांव के समान है. अधिकांश शहर में आधारभूत सुविधा तक नहीं है. राजधानी पटना में अधिकांश इलाकों में कूड़े उठाने का इंतजाम नहीं. नगर निगमों की हालत खस्ता है. अन्य राज्यों में सबसे साफ शहर की प्रतियोगिता होती है, बिहार में सबसे गंदा कौन है आप इस पर बहस कर सकते हैं. नगरों की व्यवस्था पर नीतीश पिछले बारह वर्षों में कभी चिंतित नहीं दिखे.

2. बिहार में मुख्यमंत्री पद जब से नीतीश कुमार ने संभाला है वे गृह मंत्री भी हैं लेकिन उनके इस विभाग की कारस्तानियों पर आप एक किताब लिख सकते हैं. बिना पैसा के अगर आपकी शिकायत दर्ज हो जाए, एफआईआर हो जाए तो आप भाग्यशाली हैं. शुरू-शुरू में नीतीश कुमार ने आपराधिक मामलों में स्पीडी ट्रायल कराके पूरे देश में नाम कमाया, उसमें ऊपर से नीचे तक पुलिस विभाग के लोग रुचि नहीं लेते. बिहार पुलिस का क्या हेल्प लाइन नम्बर है... पुलिस वाले इस बात को सुनिश्चित करते हैं कि उसका ग़लती से कहीं सार्वजनिक रूप से प्रचार न हो.

यह भी पढ़ें : PM मोदी पर तेजप्रताप के विवादित बयान पर नीतीश कुमार का पलटवार, इशारों ही इशारों में कह दी बड़ी बात

3. बिहार में उच्च शिक्षा से प्राथमिक शिक्षा तक बुरे हाल में हैं. यह केवल डिग्री बांटने का अड्डा हैं. नीतीश कुमार प्राथमिक शिक्षकों और माध्यमिक शिक्षकों के घटिया स्तर के बारे में भली भांति परिचित हैं लेकिन उनमें शिक्षा का स्तर सुधारने में अभी तक इच्छाशक्ति का अभाव दिखा है. इसलिए बिहार हमेशा मज़ाक़ का पात्र बनता है. उच्च शिक्षा तो पता नहीं नीतीश कुमार सार्वजनिक रूप से बोल चुके हैं कि राज्य सरकार की भूमिका पैसे देने तक सीमित है. परिणाम स्वरूप जिस पटना साइंस कॉलेज के विद्यार्थी ख़ुद नीतीश भी रहे हैं वहां की प्रयोगशालाओं में न समान है और न ही छात्रों को पढ़ाने के लिए शिक्षक हैं. अपने बारह वर्षों के शासन में नीतीश बारह ऐसे विद्यालय नहीं बना पाए जिसे आप और हम देखकर गर्व करें.

4. आज पूरे देश में बिहार एक ऐसा राज्य है जिसकी जनसंख्या वृद्धि दर सबसे अधिक है. इसके कारण कई हैं लेकिन समाधान के लिए अभी तक नीतीश सरकार में न तत्परता दिखती है और न ही इच्छाशक्ति. इसका परिणाम क्या होगा सब जानते हैं, लेकिन अंकुश कैसे लगाया जाए, यह जानते सब हैं लेकिन बात कोई नहीं करना चाहता.

5. बिहार की स्वास्थ्य सेवा बीमार हो चुकी है. अस्पताल में डॉक्टर नदारद रहते हैं. सरकारी अस्पतालों में इलाज के लिए आप अपनी जान पर खेलने के लिए जाते हैं. शुरू के कुछ सालों में नीतीश कुमार की सरकार ने स्वास्थ्य सेवा को सुधारने पर ज्यादा ध्यान दिया लेकिन अभी भी निजी नर्सिंग होम के भरोसे लोग इलाज कराने को मजबूर हैं. ऐसा प्रतीत होता है कि यहां स्वास्थ्य माफ़िया के सामने सरकार ने आत्मसमर्पण कर दिया है. हालांकि इस मामले में महागठबंधन सरकार के अठारह महीने एक काला अध्याय रहा, तब के स्वास्थ्य मंत्री तेजप्रताप यादव अपने काम से ज्यादा अपनी हरकतों के कारण जाने जाएंगे.

यह भी पढ़ें : अब नाश्ते से पहले ट्वीट से शुरू होने लगी बिहार के इन नेताओं की दिनचर्या!

6 . बिहार में घोटाले, वह भी हर विभाग में, एक कटु सच बनता  जा रहा है. निश्चित रूप से अभी तक नीतीश कुमार के ऊपर तक आंच नहीं आई है और इसकी संभावना भी कम है. लेकिन सवाल है कि आखिर कैसे जहां सरकार अपने कर्मचारियों के पेंशन देने में उनसे सब तरह के सत्यापन करती है वहीं कर्मचारियों और अधिकारियों का मनोबल इतना बढ़ा हुआ है कि वे धान से शौचालय तक के पैसे का बंदरबांट कर डालते हैं. घोटालों को रोकने में विफलता नीतीश सरकार की एक प्रमुख विफलता रही है.

7. बिहार में अगर घोटाले हो रहे हैं और भ्रष्टाचार जड़ जमा चुका है तो इसका एक बड़ा कारण है यहां भ्रष्टाचार रोकने वाली एजेंसी का सुस्त होना. इसका एक उदाहरण हैं सृजन घोटाला, जिसमें एक अंदाज़ से हज़ार करोड़ से अधिक की सरकारी राशि का ग़बन हुआ. इस मामले की जांच पिछले पांच वर्ष से आर्थिक अपराध इकाई कर रही थी लेकिन जांच अधिकारी को कुछ हासिल नहीं हुआ. ऐसा ही ताजा मामला शौचालय घोटाले के मुख्य अभियुक्त विनय सिन्हा का है जो वर्षों से अपनी काली कमाई से कई कम्पनियों के शो रूम चलाते थे. उन पर भी तब तक कोई हाथ डालने की हिम्मत नहीं कर सका जब तक कि पानी सर से ऊपर नहीं चला गया.

8. सत्ता में आते ही नीतीश कुमार ने महिलाओं को पंचायतों में पचास प्रतिशत आरक्षण दिया. पूरे देश में उनका काफ़ी नाम हुआ. कई महिला मुखिया ने देश में काफी नाम कमाया. लेकिन सच्चाई यही है कि नीतीश ने कभी इनकी सुध नहीं ली. मुखिया पति और मेयर पति नामक लोग ही नीतीश कुमार की मेहनत पर पानी फेरते हुए राज कर रहे हैं. नीतीश ने न कभी इनकी सुध ली और न ही कभी इनके साथ संवाद स्थापित किया. बिहार जैसे सामंतवादी राज्य में यह मज़ाक़ बनकर रह गया है.

यह भी पढ़ें : सीएम नीतीश ने लालू पर फिर किया 'ट्वीट वार', बोले- घोटालों को उजागर करना और...

9. क्या आपको मालूम है कि भारत की अंडर 19 क्रिकेट टीम के कप्तान ईशांत किशन भले झारखंड टीम से खेलते हों लेकिन वे पटना के निवासी हैं. पिछले सत्रह वर्षों के बिहार के विभाजन के बाद सच्चाई यही है कि बिहार के खिलाड़ी को झारखंड पलायन करना पड़ता है. बिहार क्रिकेट संघ की मान्यता लटकी पड़ी है. हालांकि इसमें नीतीश कुमार का कोई लैप्स नहीं है. लेकिन उन्होंने खेल और खिलाड़ी को कभी महत्व नहीं दिया. नीतीश का खेल प्रेम बस इतने तक सीमित रहा कि, राजगीर जो उनका सबसे फ़ेवरिट डेस्टिनेशन रहा, वहां स्पोर्ट्स अकादमी के अलावा क्रिकेट स्टेडियम अब सरकार बना रही है.

10. नीतीश कुमार आजकल हर सभा में ये दावा करते हैं कि शराबबंदी के बावजूद पर्यटकों की संख्या में वृद्धि हुई है लेकिन पिछले बारह वर्षों में शराबबंदी के पूर्व या बाद में राज्य में एक भी पांच सितारा होटल खुलवाने में वे असफल रहे हैं.

11. नीतीश कुमार हों या उनके घोर विरोधी लालू यादव, वे रेल मंत्रालय में पांच वर्ष या उससे अधिक मंत्री रहे लेकिन बिहार में नीतीश के पहले और उनके शासन काल में बहुत कम ट्रेनें समय से चलती हैं. ट्रेन का परिचालन किसी राज्य के मुख्यमंत्री का दायित्व नहीं होता है लेकिन रेलवे के अधिकारी आपको इस सच को बताएंगे कि कैसे मुगलसराय से मोकामा तक ट्रेन सही समय पर चलाना स्थानीय लोगों के हिंसक व्यवहार के कारण एक चुनौती है.

VIDEO : उद्घाटन से पहले ही टूटा बांध


12. मौत होने पर सबसे गंदा और अमानवीय दाह संस्कार धरती पर कहीं होता है तो वह बिहार है. यह नीतीश कुमार की बारह वर्षों की विफलता है. आप राजधानी पटना में शमशान घाटों पर जब कुत्तों और अन्य जानवरों के बीच संस्कार करने को विवश होते हैं तब आप यह सोचने पर मजबूर होते हैं कि क्या यहां कोई सरकार भी है? तब यह सच्चाई भी सामने आती है कि बिहार की जनता ने पिछले बारह वर्षों से नीतीश कुमार में विश्वास रखा है जो आपको मौत के बाद अंतिम संस्कार भी सम्माजनक नहीं दिला सके हैं अब तक.


Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com