अंतिम सांसें गिन रहे कैंसर पीड़ित बेटे को भला कोई मां-बाप कैसे छोड़ सकते हैं?

प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर

अहमदाबाद :

सिर्फ 30 साल के युवा अवतार सिंह ठाकोर अपनी अंतिम सांसें गिन रहे हैं। डॉक्‍टरों ने कह दिया है कि उनका ब्रेन ट्यूमर अंतिम स्टेज में है और अब उनके पास ज्यादा सांसें नहीं हैं, लेकिन इस स्थिति में भी उनके माता-पिता उनसे पिछले एक महीने से मिलने नहीं आए हैं।

ये कड़वाहट शुरू हुई आज से तीन साल पहले, जब अवतार सिंह की शादी नयना से हुई। अवतार गुजरात इकोलॉजी कमीशन में बतौर अकाउंट असिस्टेंट नौकरी करते थे। शादी के तुरंद बाद ही 11 नवंबर 2012 को अहमदाबाद के पास एक फार्म में पार्टी के दौरान अवतार बेहोश होकर गिर गया। पास के प्राइवेट अस्‍पताल में ले गए, तो पता चला उन्‍हें ब्रेन ट्यूमर है। उनका इलाज कराया गया। ज्यादातर पैसे साथी कर्मचारियों ने जुटाए और थोड़ा पैसा पिता ने भी दिया, लेकिन उसके बाद से ही घर में सास-बहू के बीच अनबन शुरू हो गई और कुछ ही समय में पति-पत्‍नी को घर से निकलना पड़ा।

तभी से परेशानियां शुरू हो गईं। पत्नी ने मेहनत करके पति को दोबारा अपने पैरों पर खड़ा किया। अवतार ने फिर से नौकरी शुरू की, लेकिन बीमारी के चलते वो ज्यादा समय तक नौकरी नहीं कर पाए। फिर अवतार की पत्‍नी ने एक प्राइवेट अस्‍पताल में बतौर नर्स नौकरी की, लेकिन पति की सेवा में उसे नौकरी भी छोड़नी पड़ी।

बीमारी बढ़ती गई। बात यहां तक पहुंच गई की छह महीने पहले उनकी आंखों की रोशनी भी पूरी तरह जाती रही है। परिस्थिति बिगड़ती ही चली गई। जब हालात बिलकुल ही बिगड़ गए तो पत्‍नी अपने पति के साथ मायके चली आई भाई के साथ रहने।

जब आर्थिक लाचारी की हद पार हो गई तो अवतार ने फैमिली कोर्ट में अर्जी दायर कर अपने पिता से रखरखाव की मांग की। कोर्ट ने भी नाज़ुक हालात को भांपते हुए तुरंत सुनवाई की, क्योंकि अवतार का इलाज कर रहे डॉक्‍टर्स की आशा भी धूमिल हो रही है।

कोर्ट ने पिता को बुलाकर उनकी बात सुनकर अंतरिम आदेश दिया कि उन्हें तुरन्त आठ हजार रुपया मासिक रखरखाव दिया जाए, ताकि उनके बेटे का इलाज हो सके। कोर्ट ने कहा कि बेटा अगर शारीरिक तौर पर काम करने की स्थिति में नहीं हो और पिता के पास उसके रखरखाव की आर्थिक ताकत हो तो पिता को भी ज़रूर साथ देना चाहिए।

पिता ने कोर्ट में कहा कि वो बेटे और बहू को साथ ले जाने को तैयार हैं, लेकिन बेटे ने जाने से मना कर दिया। महत्वपूर्ण है कि कोर्ट ने अपने आदेश में लिखा कि ये गंभीर मामला है कि जब कोर्ट ने पिता को उनके पिता के तौर पर कर्तव्यों के बारे में बताया तो उन्होंने कहा कि वो जेल जाने को तैयार हैं, लेकिन वो बेटे को पैसा देने को तैयार नहीं है।

हालांकि, पिता से जब एनडीटीवी ने पूछा तो उन्होंने कहा कि ये सही बात है कि वो पिछले एक महीने से अंतिम सांसे गिन रहे बेटे को देखने नहीं गए हैं, लेकिन वो मजबूर हैं। पिता प्रेमसिंह ने कहा कि उन्हें अपने बेटे के कोई शिकवा नहीं है। जो अनबन है वो उनकी बहू से है। उन्हें डर है कि वो अगर बेटे से मिलने गए तो बहूत शायद उन्‍हें नहीं मिलने दे या उनका अपमान कर दे, लेकिन कोर्ट के अंतरिम आदेश में पिता के बारे में लिखी बातें अवतार की तकलीफ भी बयां करती हैं।

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अवतार लेकिन अब भी लोगों से अपील करना चाहता है कि वो अभी जीना चाहता है और मदद की गुहार कर रहा है कि शायद कोई डॉक्‍टर देश के किसी हिस्‍से से आगे आए और उनके इलाज की कोई संभावना तलाश सके, क्‍योंकि अहमदाबाद में ज्यादातर अस्‍पतालों में वो जा चुके हैं और अब सभी डॉक्‍टरों ने हाथ खड़े कर दिए हैं कि इससे ज्यादा इस बीमारी का इलाज उनके पास नहीं है।