प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (फाइल तस्वीर)
नई दिल्ली:
संसद का मॉनूसन सत्र समाप्त होने के बाद सरकार अप्रत्याशित रूप से चौथी बार भूमि अध्यादेश को फिर से जारी कर सकती है, क्योंकि इस विधेयक पर कोई आम सहमति अब तक नहीं बन पाई है।
इस विधेयक पर विचार कर रही बीजेपी सांसद एसएस अहलूवालिया की अध्यक्षता वाली संयुक्त संसदीय समिति की योजना अपनी रिपोर्ट को अंतिम रूप देने के लिए 3 अगस्त तक दो सप्ताह का समय विस्तार और मांगने की है।
संकेत हैं कि समिति मॉनसून सत्र के दौरान अपनी रिपोर्ट नहीं दे पाएगी और समय में विस्तार की मांग कर सकती है। ऐसी स्थिति में सरकार के लिए अध्यादेश एक बार फिर जारी करना जरूरी हो जाएगा। तीसरी बार यह अध्यादेश 31 मई को जारी किया गया था।
सरकार के सूत्रों को भूमि अध्यादेश फिर से जारी करने में कुछ भी असामान्य नहीं लगता। उन्होंने कहा कि कम से कम 15 अध्यादेशों को दो या अधिक बार जारी किया जा चुका है।
एक अध्यादेश की अवधि छह माह होती है। अगर संसद सत्र शुरू होने के छह सप्ताह के अंदर उसे संसद की मंजूरी नहीं मिलती, तो अध्यादेश को फिर से जारी करना होता है। संसद का मॉनसून सत्र 21 जुलाई से शुरू हो कर 13 अगस्त तक चलेगा।
सरकार का कहना है कि अध्यादेश को उसकी निरंतरता बनाए रखने और अधिगृहित की जा चुकी जमीन के एवज में लोगों को क्षतिपूर्ति का ढांचा मुहैया कराने के लिए पुन: जारी करना जरूरी है।
इस विधेयक पर विचार कर रही बीजेपी सांसद एसएस अहलूवालिया की अध्यक्षता वाली संयुक्त संसदीय समिति की योजना अपनी रिपोर्ट को अंतिम रूप देने के लिए 3 अगस्त तक दो सप्ताह का समय विस्तार और मांगने की है।
संकेत हैं कि समिति मॉनसून सत्र के दौरान अपनी रिपोर्ट नहीं दे पाएगी और समय में विस्तार की मांग कर सकती है। ऐसी स्थिति में सरकार के लिए अध्यादेश एक बार फिर जारी करना जरूरी हो जाएगा। तीसरी बार यह अध्यादेश 31 मई को जारी किया गया था।
सरकार के सूत्रों को भूमि अध्यादेश फिर से जारी करने में कुछ भी असामान्य नहीं लगता। उन्होंने कहा कि कम से कम 15 अध्यादेशों को दो या अधिक बार जारी किया जा चुका है।
एक अध्यादेश की अवधि छह माह होती है। अगर संसद सत्र शुरू होने के छह सप्ताह के अंदर उसे संसद की मंजूरी नहीं मिलती, तो अध्यादेश को फिर से जारी करना होता है। संसद का मॉनसून सत्र 21 जुलाई से शुरू हो कर 13 अगस्त तक चलेगा।
सरकार का कहना है कि अध्यादेश को उसकी निरंतरता बनाए रखने और अधिगृहित की जा चुकी जमीन के एवज में लोगों को क्षतिपूर्ति का ढांचा मुहैया कराने के लिए पुन: जारी करना जरूरी है।
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