पश्चिम बंगाल में सोमवार को 3080 नये मामले आने के साथ कोविड-19 के मामले बढ़कर एक लाख 19 हजार 578 हो गए. यह जानकारी एक आधिकारिक बुलेटिन में दी गई. लेकिन इन सब के बीच अच्छी खबर यह है कि लोग अब इस संकट से जूझने के लिए अलग-अलग स्तर पर संघर्ष कर रहे हैं. बंगाल में COVID-19 से ठीक हुए लोगों के एक समूह को सरकारी अस्पतालों (Government hospitals) में डॉक्टरों और नर्सों को वायरस से संक्रमित लोगों की देखभाल में मदद करने के लिए रखा गया है. उनमें से कई प्रवासी मजदूर हैं जो पहले गुजरात में टाइल कारखानों में, चेन्नई में निर्माण उद्योग में या बेंगलुरु में होटलों में काम करते थे. अब उन्हें एक नया काम मिला है ये अब COVID-19 आईसीयू में फंसे मरीजों के लिए गैर-मेडिकल काम करते हैं. बंगाल सरकार की तरफ से उन्हें वजीफा भी दिया जा रहा है.
बंगाल के बेलाघाटा सरकारी अस्पताल में 24 साल के खुद्दू शेख और 27 साल के राजीब शेख राज्य सरकार द्वारा स्थापित कोविड वारियर्स क्लब के सदस्य के रूप में काम कर रहे हैं. खुद्दू शेख का कहना है कि "हम सीसीयू में वेंटिलेशन पर रोगियों का ध्यान रखते हैं.जो कुछ खुद से नहीं खा सकते हैं, जो बैठ नहीं सकते हैं. हम उनकी मदद करते हैं. और वे हमें आशीर्वाद देते हैं,"
बताते चले कि 30 जून के बाद से राज्य सरकार द्वारा लगभग 1800 कोविड से ठीक हुए लोगों को भर्ती किया गया है. जिन्हें बेसिक पेशेंट केयर के विशेषज्ञों द्वारा क्रैश कोर्स करवाया गया है. जिसके बाद उन्हें पूरे राज्य में तैनात किया गया है - इनमें से 60 कोलकाता में और 160 अन्य जिलों में काम कर रहे हैं. जब अस्पताल के सीसीयू प्रभारी डॉ जोगीराज रे से यह पूछा गया कि कोविड वार्डों के अंदर गैर-चिकित्सा कर्मियों को अनुमति दी जा सकती है तो उनका जवाब था: "क्यों नहीं?" "वार्ड के अंदर क्यों नहीं? हम कौन सा रॉकेट साइंस का प्रयोग कर रहे हैं?" इन लोगों के पास उन मरीजों से बात करने का समय है जो ऑक्सीजन पर हैं, सात से 15 दिनों की देखभाल के दौरान ये लोग मरीजों के परिवार की तरह हो जाते हैं.
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आईसीयू में भर्ती कोविड रोगियों के लिए जो अपने परिवार को देख या उनसे बात नहीं कर सकते, कोविड वारियर्स एक वरदान के रूप में सामने आए हैं. डॉक्टरों और नर्सों का कहना है कि वे रोगियों को कोविड संक्रमण और इससे होने वाले भय और डर से निपटने के लिए मनोवैज्ञानिक सहायता प्रदान करते हैं जिसकी अभी सबसे अधिक जरूरत है.
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