मायावती (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
मंगलवार सुबह तक उत्तराखंड मसले पर सबकी निगाहें मायावती पर टिकी हुई थीं कि उनके दो विधायक किसकी तरफ वोट करेंगे। सुबह मायावती ने बीएसपी के कुछ बड़े नेताओं के साथ बैठक की और बाद में घोषणा कर दी कि उनके दो विधायक कांग्रेस के पक्ष में वोट करेंगे और बीजेपी के साथ इसलिए नहीं जाना चाहतीं, क्योंकि वह सांप्रदायिक ताकतों के साथ नहीं जाएंगी। मायावती के इस निर्णय को सीधे अगले साल उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनावों से जोड़कर देखा जा सकता है ...
क्यों बनाई बीजेपी से दूरी
इस समय जो उत्तर प्रदेश में स्थिति है उसके अनुसार इस बार का चुनाव बीएसपी बनाम बीजेपी हो सकता है। इस वजह से मायावती अपनी एक निडर छवि प्रस्तुत कर एक संकेत दे रही हैं कि वह बीजेपी से लोहा लेने को तैयार हैं और उन्हें सीबीआई का भी कोई भय नहीं है।
बराबर की टक्कर देने में सक्षम
लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 80 सीटों में 71 सीटें हासिल हुई थीं और बीएसपी का खाता भी नहीं खुल पाया था। इसकी वजह यह भी रही कि मायावती का जो कोर दलित वोट है वह बीजेपी के पास चला गया। इस बार भी बीजेपी ने पिछड़ी जात से आने वाले केशव मौर्य को अपना प्रदेश अध्यक्ष बनाकर दलित वोटों में सेंधमारी करने की पूरी तयारी कर ली है। मायावती अपने उत्तर प्रदेश काडर को ये संकेत देना चाहती हैं कि वह अब भी मज़बूत हैं और बीजेपी को बराबर की टक्कर देने में सक्षम हैं।
मुस्लिम वोट का सवाल
उत्तर प्रदेश में लगभग 19% मुस्लिम वोट हैं, जिसको लुभाने की कोशिश समय-समय पर सभी राजनितिक दाल करते रहे हैं। आज उन पर भी मायावती ने अपना दावा ठोंक दिया है, क्योंकि मायावती बीजेपी के साथ जाकर मुस्लिम मतदाताओं को यह संकेत नहीं देना चाहती थीं कि वह किसी भी प्रकार से बीजेपी के साथ हैं।
अगर अगले साल उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनावों के बाद किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता है तो उस स्थिति में मायावती को हो सकता है कि सरकार बनने के लिए कांग्रेस कि आवश्यकता पड़े क्योंकि 2002 में बीएसपी और बीजेपी का गठबंधन हुआ था, जो कि चल नहीं पाया था तो मायावती कांग्रेस के साथ चुनाव के बाद गठबंधन का रास्ता खुला रखना चाहती हैं।
इस पूरे घटनाक्रम के बाद एक बात तो स्पष्ठ है कि मायावती ने उत्तराखंड में कांग्रेस का समर्थन करके अपना निशाना उत्तर प्रदेश पर लगाया है और बीजेपी को चुनौती दी है ...
क्यों बनाई बीजेपी से दूरी
इस समय जो उत्तर प्रदेश में स्थिति है उसके अनुसार इस बार का चुनाव बीएसपी बनाम बीजेपी हो सकता है। इस वजह से मायावती अपनी एक निडर छवि प्रस्तुत कर एक संकेत दे रही हैं कि वह बीजेपी से लोहा लेने को तैयार हैं और उन्हें सीबीआई का भी कोई भय नहीं है।
बराबर की टक्कर देने में सक्षम
लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 80 सीटों में 71 सीटें हासिल हुई थीं और बीएसपी का खाता भी नहीं खुल पाया था। इसकी वजह यह भी रही कि मायावती का जो कोर दलित वोट है वह बीजेपी के पास चला गया। इस बार भी बीजेपी ने पिछड़ी जात से आने वाले केशव मौर्य को अपना प्रदेश अध्यक्ष बनाकर दलित वोटों में सेंधमारी करने की पूरी तयारी कर ली है। मायावती अपने उत्तर प्रदेश काडर को ये संकेत देना चाहती हैं कि वह अब भी मज़बूत हैं और बीजेपी को बराबर की टक्कर देने में सक्षम हैं।
मुस्लिम वोट का सवाल
उत्तर प्रदेश में लगभग 19% मुस्लिम वोट हैं, जिसको लुभाने की कोशिश समय-समय पर सभी राजनितिक दाल करते रहे हैं। आज उन पर भी मायावती ने अपना दावा ठोंक दिया है, क्योंकि मायावती बीजेपी के साथ जाकर मुस्लिम मतदाताओं को यह संकेत नहीं देना चाहती थीं कि वह किसी भी प्रकार से बीजेपी के साथ हैं।
अगर अगले साल उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनावों के बाद किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता है तो उस स्थिति में मायावती को हो सकता है कि सरकार बनने के लिए कांग्रेस कि आवश्यकता पड़े क्योंकि 2002 में बीएसपी और बीजेपी का गठबंधन हुआ था, जो कि चल नहीं पाया था तो मायावती कांग्रेस के साथ चुनाव के बाद गठबंधन का रास्ता खुला रखना चाहती हैं।
इस पूरे घटनाक्रम के बाद एक बात तो स्पष्ठ है कि मायावती ने उत्तराखंड में कांग्रेस का समर्थन करके अपना निशाना उत्तर प्रदेश पर लगाया है और बीजेपी को चुनौती दी है ...
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