क्योंकि 'वह' मिड-डे मील बनाती हैं, इसलिए 100 बच्चों ने छोड़ दिया स्कूल?

क्योंकि 'वह' मिड-डे मील बनाती हैं, इसलिए 100 बच्चों ने छोड़ दिया स्कूल?

सिर्फ 5 बच्चे खाते हैं राधाम्मा के हाथ का बना मिड-डे मील

बेंगलुरु:

करीब 100 बच्चों ने कोलार के उस सरकारी स्कूल में जाना बंद कर दिया है। इस स्कूल में दलित महिला द्वारा मिड-डे मील बनाया जाता है और कहा जा रहा है कि ये बच्चे दलित महिला का बनाया खाना नहीं खाना चाहते, इसलिए उन्होंने स्कूल छोड़ दिया है। कग्गनहाली गांव के एक स्कूल में केवल 18 स्टूडेंट्स ही बचे हैं।

'बच्चे वह दूध पीते ही नहीं, जो मैंने दिया हो'
NDTV से बात करते हुए मिड-डे मील तैयार करने वालीं, राधाम्मा बाकायदा रो पड़ीं। वह बोलीं, 'ऐसा उसी दिन से है जबसे मैंने फरवरी 2014 में यहां जॉइन किया है। बच्चे वह दूध पीते ही नहीं, जो मैंने उन्हें पीने के लिए दिया हो या फिर जो खाना मैंने बनाया हो। मैं बच्चों को क्या कहूं? उन्हें उनके माता-पिता कह रहे हैं कि वे न खाएं।'

अब केवल 5 बच्चे खाते हैं राधाम्मा के हाथ का खाना
मामले को सुलझाने के लिए राज्य सरकार के शिक्षा विभाग से जुड़े अधिकारियों और जिला अधिकारियों की गांव वालों और बच्चों के अभिभावकों से मीटिंग्स तक हो चुकी है। इस महीने मीटिंग होने के बाद, बच्चों और उनके अभिभावकों ने अधिकारियों के साथ बैठकर यही मिड-डे मील खाया। लेकिन आजकल, राधाम्मा के हाथ का बना हुआ खाना केवल 5 बच्चें खाते हैं।

स्कूल इंचार्ज वाईएम वेंकटाचलपथ्थी ने NDTV को बताया कि यह जातिगत आधार पर भेदभाव का केस नहीं है। बल्कि, गांव में पंचायीत चुनावों के बाद पनपी गहरी राजनीति का असर है। उनका कहना है कि ज्यादातर स्टूडेंट्स शेड्यूल्ड कास्ट या शेड्यूल्ड ट्राइब्स से हैं, बावजूद इसके कई स्टूडेंट्स ने ट्रांसफर करवा लिया है।

अभिभावक अड़े, नहीं भेजेंगे उस स्कूल में...
एक अभिभावक सुब्रामणि ने कहा कि वह इन सब दिक्कतों के चलते अपने बच्चे को स्कूल नहीं भेजेंगे भले ही उन्हें किसी प्राइवेट स्कूल में बच्चे को पढ़ाने के लिए बस के किराए पर 15 हजार रुपए ज्यादा खर्चने पड़ें।

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बुधवार को स्कूल में एक बैठक हई जहां गांव वालों ने कहा कि वे चाहते हैं कि जब तक स्कूल में टीचर, प्रशासन और कुक चेंज नहीं किए जाएंगे, वे अपने बच्चों को स्कूल भेजने के बारे में नहीं सोचेंगे भी नहीं।