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This Article is From Dec 29, 2018

कौन हैं संजय बारू, जिनकी 'द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर' किताब पर बनी फिल्म से फिर गरमाई सियासत

पूर्व पीएम मनमोहन सिंह (Manmohan Singh) पर लिखी गई संजय बारू (Sanjay Baru) की किताब पर आधारित फिल्म 'The Accidental Prime Minister' 11 जनवरी को रिलीज होने जा रही है.

कौन हैं संजय बारू, जिनकी 'द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर' किताब पर बनी फिल्म से फिर गरमाई सियासत
'The Accidental Prime Minister' किताब के लेखक संजय बारू.
नई दिल्ली:

तारीख थी 28 मई 2004. उस दिन पत्रकार संजय बारू (Sanjay Baru) हैदराबाद में 50 वां जन्मदिन मना रहे थे. अचानक उनके फोन की घंटी बजती है. फोन उठाने पर आवाज आती है- इज इट मिस्टर संजय बारू ? प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के प्रिंसिपल सेक्रेटरी मिस्टर टीकेए नायर बात करना चाहते हैं. फिर नायर लाइन पर आते हैं और कहते हैं- मिस्टर बारू, वैसे तो हम कभी नहीं मिले हैं. मगर, मैं पीएम का प्रधान सचिव हूं. प्रधानमंत्री आपसे मिलना चाहते हैं. क्या आप इस शाम आ सकते हैं ? संजय बारू ने उन्हें बताया कि वह दिल्ली नहीं, हैदराबाद में हैं और वीकेंड पर ही आ सकते हैं. इस पर उन्होंने कहा कि वह कुछ समय में दोबारा फोन कर सोमवार को प्रधानमंत्री से मुलाकात का समय तय करते हैं. उसी शाम जन्मदिन की फेमिली पार्टी के दौरान फिर से संजय बारू का फोन बजता है. इस बार रिटायर्ड नौकरशाह एनएन वोहरा की आवाज फोन पर गूंजती है. वोहरा गृह और रक्षा मंत्रालय के सचिव रह चुके थे और पीएम इंद्र कुमार गुजराल के प्रिंसिपल सेक्रेटरी भी रह चुके थे. वोहरा ने बताया कि संजय ,आप सोमवार को पीएम से मिल रहे हो और वे आपको ऑफिस ज्वाइन करने के लिए कहेंगे. उन्होंने मुझसे भी पूछा था तो मैने भी आपको अच्छा व्यक्ति बताया है.

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अपनी किताब 'द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर (The Accidental Prime Minister)' में संजय बारू लिखते हैं कि मैं मनमोहन सिंह के पीएमओ में कार्य के लिए तैयार था. उस दौरान संजय बारू ने यह खुशखबरी अपने पिता के अलावा किसी दूसरे से नहीं बताई. इस तरह संजय बारू को जन्मदिन पर पीएमओ से काम का गिफ्ट मिला.संजय बारू मई 2004 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार नियुक्त हुए. वह इस पद पर अगस्त 2008 तक रहे. मनमोहन सिंह (Manmohan Singh) को लेकर लिखी गई संजय बारू (Sanjay Baru) की किताब पर आधारित फिल्म 'द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर' 11 जनवरी को रिलीज होने जा रही है. इसे विजय रत्नाकर गुट्टे ने डायरेक्ट किया है.

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पेशेवर पत्रकार रहे हैं संजय बारू (Sanjay Baru)
2014 में  द  एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर किताब प्रकाशित कर सियासी भूचाल लाने वाले संजय बारू फाइनेंशियल एक्सप्रेस और बिजनेस स्टैंडर्ड के चीफ एडिटर रहे हैं. वह इकोनॉमिक टाइम्स और द टाइम्स ऑफ इंडिया के एसोसिएट एडिटर रहे. उनके पिता बीपीआर विठल मनमोहन सिंह के साथ काम कर चुके थे. जब  मनमोहन सिंह देश के वित्त सचिव थे, तब संजय बारू के पिता बीपीआर विठल उनके फाइनेंस और प्लानिंग सेक्रेटरी थे. इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री( फिक्की) के महासचिव पद से अप्रैल 2018 में संजय बारू ने इस्तीफा दे दिया. इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्ट्रेटजिक स्टडीज के जियो इकॉनमिक्स एंड स्ट्रेटजी के डायरेक्टर भी रह चुके हैं. 

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किताब लिखने के पीछे रही ये वजह 
अपनी किताब में संजय बारू ने लिखा है-पीएमओ में तैनात रहे मेरे पूर्ववर्ती लोगों ने अपने कार्यकाल के दौरान की यादों को कभी किताब की शक्ल देने की कोशिश नहीं की. यहां तक कि कई प्रतिष्ठित पत्रकारों ने भी यह पहल नहीं की. मसलन, कुलदीप नैयर, बीजी वर्गीज, प्रेम शंकर झा, एचके दुआ जैसे नामी पत्रकार कई प्रधानमंत्रियों के साथ काम कर चुके थे. प्रेस सचिव ही नहीं मातहत अफसरों ने भी ऐसी कोई किताब नहीं लिखी, जिससे उनके बॉस के व्यक्तित्व और राजनीति की झलक मिले. जबकि भारत की तुलना में अमेरिका और ब्रिटेन नें कई प्रेस सचिवों ने वहां के राष्ट्रपतियों और प्रधानमंत्री के कार्यकाल के बारे में स्वतंत्र रूप से किताबें लिखीं हैं.

संजय बारू कहते हैं कि मैने कभी मनमोहन सिंह का मीडिया सलाहकार रहने के दौरान किताब लिखने की योजना नहीं बनाई थी. इस नाते मैने कोई डायरी भी नहीं रखी थी.हालांकि अपने कार्यकाल के दौरान कुछ प्रमुख घटनाओं के नोट्स जरूर बनाए थे. बकौल बारू," 2012 के अंत तक मैने तय किया कि मै कोई किताब नहीं लिखूंगा. मगर पेंग्विन बुक्स इंडिया के चिकी सरकार और कामिनी महादेवन  ने मेरे ख्याल को बदल दिया." संजय बारू लिखते हैं कि मेरा मानना था कि यह स्वाभाविक है कि एक नेता या तो प्रशंसा का पात्र हो या फिर घृणा का, मगर उपहास का पात्र नहीं बनना चाहिए. संजय बारू ने लिखा कि जब मैने 2008 में पीएमओ छोड़ा, तब मीडिया उन्हें सिंह इज किंग कहती थी. चार साल बाद एक न्यूज मैग्जीन ने सिंग इज सिन'किंग' कहा. यह तेजी से गिरती छवि का प्रमाण था. 

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पीएमओ हो गया था असरहीन

संजय बारू लिखते हैं- उन्होंने(मनमोहन) कई गलतियां की, इस किताब में उसका उल्लेख करने में झिझक नहीं है. पहले कार्यकाल ठीक रहा, मगर दूसरा कार्यकाल वित्तीय घोटालों और बुरी खबरों से भरा रहा. उन्होंने राजनीति पर से नियंत्रण भी खो दिया. कार्यालय(पीएमओ) असरहीन हो गया. संजय बारू ने लिखा है कि उनसे पत्रकारों, राजनयिकों, उद्यमियों, नेताओं और मित्रों ने कई सवाल किए. मसलन, क्या यूपीए टू की तुलना में यूपीए वन ज्यादा सफल रहा ? पीएम की छवि क्यों खराब हुई है.? पीएम मनमोहन और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के कैसे रिश्ते हैं.? आपने पीएमओ क्यों छोड़ा. संजय बारू ने लिखा है कि उन्होंने पीएमओ कुछ निजी कारणों से छोड़ा. हालांकि किताब में इस आखिरी सवाल को छोड़कर बाकी सभी सवालों का जवाब दिया गया है. संजय बारू के मुताबिक इसमें कोई संदेह नहीं कि 2009 के लोकसभा चुनाव में जीत के मनमोहन सिंह आर्किटेक्ट थे. मगर उसकी क्रेडिट उन्हें नहीं मिली.

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आरोपों पर क्या बोले बारू
जब अप्रैल 2014 में मनमोहन सिंह को 'एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर' बताने वाली संजय बारू की किताब आई  तो पीएमओ ने नाराजगी जाहिर की थी. पीएम मनमोहन सिंह के कार्यालय ने एक बयान जारी कर इसे पद का दुरुपयोग और व्यावसायिक लाभ कमाने की मंशा करार दिया था. बाद में अपने एक इंटरव्यू में संजय बारू ने पीएमओ के इस बयान को मूर्खतापूर्ण करार देते हुए कहा कि उन्होंने यूपीए-1 के अपने उन्हीं अनुभवों के आधार पर किताब लिखी है, जिसे उन्होंने नजदीक से देखा और जाना. वो भी सिर्फ 50 प्रतिशत बातें ही किताब में लिखीं गईं हैं. किताब को कोरी कल्पना बताने के पीएमओ के आरोप का भी वह खंडन कर चुके हैं. 

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