नई दिल्ली:
पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (लिट्टे) की सबसे बड़ी गलती थी। एक नई किताब में लिट्टे के विचारक एंटन बालासिंघम के हवाले से यह बात कही गई है।
बालासिंघम ने श्रीलंका में नॉर्वे के पूर्व विशेष दूत एरिक सोल्हेम से कहा कि लिट्टे नेता वेलुपिल्लई प्रभाकरण और उनके खुफिया प्रमुख पोत्तू अम्मान ने शुरू में राजीव की हत्या में अपनी संलिप्तता से इनकार किया था।
मार्क साल्टर की किताब 'टू इंड ए सिविल वार' (हर्स्ट एंड कंपनी, लंदन) के मुताबिक, 21 मई, 1991 को पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या के कुछ सप्ताह बाद उन्होंने बालासिंघम के सामने हत्या की बात स्वीकार कर ली।
कुल 549 पन्नों की यह किताब नॉर्वे के नेतृत्व वाले शांति प्रक्रिया का एक जीता जागता नमूना है, जिससे श्रीलंका में तीन दशक पुरान गृह युद्ध समाप्त हुआ। संघर्ष अंतत: तब खत्म हुआ, जब श्रीलंका की सेना ने मई 2009 में लिट्टे का खात्मा कर दिया। इस अभियान में नेतृत्वकर्ता प्रभाकरण व पोत्तू अम्मान को भी मार गिराया गया।
किताब के मुताबिक, 'लिट्टे की आधिकारिक नीतियों के मामले में शायद यह सबसे अधिक विवादास्पद है। बालासिंघम ने स्वीकार किया है कि राजीव गांधी की हत्या लिट्टे की सबसे बड़ी गलती थी।'
लिट्टे ने आधिकारिक तौर पर कभी यह बात स्वीकार नहीं की कि उसने राजीव गांधी की हत्या की। उल्लेखनीय है कि चेन्नई में फिदायीन महिला हमलावर ने उनकी हत्या कर दी थी।
निजी तौर पर, बालासिंघम ने नॉर्वे से कहा कि राजीव गांधी की हत्या पूरी तरह से एक आपदा थी। सोल्हेम के मुताबिक, 1987-90 के दौरान श्रीलंका में तैनात भारतीय सैनिकों द्वारा तमिलों की हत्या का प्रभाकरण बदला लेना चाहता था, जिसके लिए बालासिंघम ने राजीव गांधी की हत्या का फैसला किया। माना गया कि अगर राजीव गांधी एक बार फिर सत्ता में आते, तो वह फिर श्रीलंका में सेना भेज देते।
सोल्हेम ने यह भी कहा कि बालासिंघम का दिसंबर 2006 में कैंसर से निधन हो गया, लेकिन वह अमेरिका व यूरोप से बाहर निकलना चाहते थे, क्योंकि उनका वास्तविक स्नेह भारत के साथ था। किताब के मुताबिक, 'साल 2006 में जीवन के अंतिम दिनों में बालासिंघम ने अपनी गलती (राजीव की हत्या) के लिए भारत जाकर माफी मांगने का प्रयास भी किया था।'
राजीव गांधी की हत्या के बाद लिट्टे को प्रतिबंधित घोषित कर दिया और प्रभाकरण तथा पोत्तू अम्मान को अपराधी घोषित किया। दूसरी तरफ, बालासिंघम को इस बात को स्वीकार करने में कोई गुरेज नहीं था कि लिट्टे ने तमिल नेता व शिक्षाविद् नीलम तिरूचेल्वम की जुलाई 1999 में एक सड़क पर हत्या कर दी।
सोल्हेम ने कहा कि राजीव की हत्या पर जब बालासिंघम नॉर्वे के आमने-सामने हुए तब उन्होंने कहा, 'हां, हमने उन्हें मारा और अगर आप मेरी सुनें, तो मैं आपको बताऊंगा कि हमने ऐसा क्यों किया।' किताब में सोल्हेम ने बालासिंघम के हवाले से कहा कि उन्होंने प्रभाकरण को एक सिपहसालार करार दिया था और कहा कि लिट्टे को खुद को एक राजनीतिक संगठन के रूप में बदल देना चाहिए।
बालासिंघम ने सोल्हेम से कहा, 'आपको इन लोगों (लिट्टे) की ताकत को कभी कमतर नहीं आंकना चाहिए।' सोल्हेम के मुताबिक, बालासिंघम उन लोगों के साथ बेहद मुखर थे और लिट्टे की गलतियों को मुखर तरीके से स्वीकार करते थे।
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है)
बालासिंघम ने श्रीलंका में नॉर्वे के पूर्व विशेष दूत एरिक सोल्हेम से कहा कि लिट्टे नेता वेलुपिल्लई प्रभाकरण और उनके खुफिया प्रमुख पोत्तू अम्मान ने शुरू में राजीव की हत्या में अपनी संलिप्तता से इनकार किया था।
मार्क साल्टर की किताब 'टू इंड ए सिविल वार' (हर्स्ट एंड कंपनी, लंदन) के मुताबिक, 21 मई, 1991 को पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या के कुछ सप्ताह बाद उन्होंने बालासिंघम के सामने हत्या की बात स्वीकार कर ली।
कुल 549 पन्नों की यह किताब नॉर्वे के नेतृत्व वाले शांति प्रक्रिया का एक जीता जागता नमूना है, जिससे श्रीलंका में तीन दशक पुरान गृह युद्ध समाप्त हुआ। संघर्ष अंतत: तब खत्म हुआ, जब श्रीलंका की सेना ने मई 2009 में लिट्टे का खात्मा कर दिया। इस अभियान में नेतृत्वकर्ता प्रभाकरण व पोत्तू अम्मान को भी मार गिराया गया।
किताब के मुताबिक, 'लिट्टे की आधिकारिक नीतियों के मामले में शायद यह सबसे अधिक विवादास्पद है। बालासिंघम ने स्वीकार किया है कि राजीव गांधी की हत्या लिट्टे की सबसे बड़ी गलती थी।'
लिट्टे ने आधिकारिक तौर पर कभी यह बात स्वीकार नहीं की कि उसने राजीव गांधी की हत्या की। उल्लेखनीय है कि चेन्नई में फिदायीन महिला हमलावर ने उनकी हत्या कर दी थी।
निजी तौर पर, बालासिंघम ने नॉर्वे से कहा कि राजीव गांधी की हत्या पूरी तरह से एक आपदा थी। सोल्हेम के मुताबिक, 1987-90 के दौरान श्रीलंका में तैनात भारतीय सैनिकों द्वारा तमिलों की हत्या का प्रभाकरण बदला लेना चाहता था, जिसके लिए बालासिंघम ने राजीव गांधी की हत्या का फैसला किया। माना गया कि अगर राजीव गांधी एक बार फिर सत्ता में आते, तो वह फिर श्रीलंका में सेना भेज देते।
सोल्हेम ने यह भी कहा कि बालासिंघम का दिसंबर 2006 में कैंसर से निधन हो गया, लेकिन वह अमेरिका व यूरोप से बाहर निकलना चाहते थे, क्योंकि उनका वास्तविक स्नेह भारत के साथ था। किताब के मुताबिक, 'साल 2006 में जीवन के अंतिम दिनों में बालासिंघम ने अपनी गलती (राजीव की हत्या) के लिए भारत जाकर माफी मांगने का प्रयास भी किया था।'
राजीव गांधी की हत्या के बाद लिट्टे को प्रतिबंधित घोषित कर दिया और प्रभाकरण तथा पोत्तू अम्मान को अपराधी घोषित किया। दूसरी तरफ, बालासिंघम को इस बात को स्वीकार करने में कोई गुरेज नहीं था कि लिट्टे ने तमिल नेता व शिक्षाविद् नीलम तिरूचेल्वम की जुलाई 1999 में एक सड़क पर हत्या कर दी।
सोल्हेम ने कहा कि राजीव की हत्या पर जब बालासिंघम नॉर्वे के आमने-सामने हुए तब उन्होंने कहा, 'हां, हमने उन्हें मारा और अगर आप मेरी सुनें, तो मैं आपको बताऊंगा कि हमने ऐसा क्यों किया।' किताब में सोल्हेम ने बालासिंघम के हवाले से कहा कि उन्होंने प्रभाकरण को एक सिपहसालार करार दिया था और कहा कि लिट्टे को खुद को एक राजनीतिक संगठन के रूप में बदल देना चाहिए।
बालासिंघम ने सोल्हेम से कहा, 'आपको इन लोगों (लिट्टे) की ताकत को कभी कमतर नहीं आंकना चाहिए।' सोल्हेम के मुताबिक, बालासिंघम उन लोगों के साथ बेहद मुखर थे और लिट्टे की गलतियों को मुखर तरीके से स्वीकार करते थे।
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है)
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