
प्रतिकात्मक चित्र
अहमदनगर:
महाराष्ट्र के अहमदनगर में 16 साल की शीजा एक सहायता प्राप्त स्कूल में 8वीं क्लास में पढ़ती है, लेकिन अपने सहपाठियों की तरह उसे परीक्षा से डर नहीं लगता बल्कि वह पढ़ाई और परीक्षा से बेहद प्यार करती है।
इतना कि इसी महीने की शुरुआत में जब उसके घरवालों ने ज़बरदस्ती उसकी शादी करने की कोशिश की तब शीजा ने न सिर्फ अपने परिवार, बल्कि अपने गांव के पूरे मराठा समुदाय से लड़ने में अपना पूरा दमखम लगा दिया।
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार, तारा मोबाइल क्रेच नाम के एनजीओ की सीईओ प्रनीता मंदाईकर के अनुसार, ‘हमें 7 जून की शाम को उसका एसएमएस मिला कि उसकी ज़बरदस्ती शादी की जा रही है और उसे हमारी मदद की ज़रूरत है, वह आगे पढ़ना चाहती थी और हमें उसे वहां से बचा लाने को कह रही थी।’
पांच दिनों बाद शादी
शीजा के संदेश की बेचैनी ने तारा को परेशान कर दिया। तारा ने शीजा की मां से फोन पर बात की, तब भी शीजा बेतरह रो रही थी। उसकी शादी पांच दिनों के बाद यानि 11 जून को होने वाली थी और उसे बचाने के लिए तारा मंदाईकर और उनके एनजीओ के पास काफ़ी कम वक्त़ था।
शीजा सिर्फ़ नौ साल की थी जब उसके दादा-दादी ने काम पर जाने के दौरान उसे कंस्ट्रक्शन मज़दूरों के बच्चों के लिए बने टीएमसी के क्रेच में छोड़ा करते थे। इस एनजीओ ने शीजा को एक लोकल पीएमसी स्कूल में एडमिशन दिला दिया जहां जल्दी ही वो काफी अच्छे नंबर लाने लग गई, ख़ासकर गणित में।
टीएमसी की असिस्टेंट प्रोग्राम कोऑर्डिनेटर ललिता कांबले के अनुसार, ‘पढ़ाई में अच्छे नंबर लाने के बाद हमने उसे एक रेसिडेंशियल स्कूल में डाल दिया ताकि उसे अपने मज़दूर दादा-दादी के साथ भटकना न पड़े और उसने 8वीं की परीक्षा तक अच्छे नंबरों से पास कर ली।’
पिता ले गए घर
ललिता आगे बताती हैं, ‘पिछले महीने ही शीजा गर्मी की छुट्टियों में घर गई थी और वहां से लौटने के पांच दिनों के बाद उसके पिता अचानक स्कूल आए और उसे अपने साथ ले गए, घर पहुंचकर शीजा को पांच दिनों के बाद होने वाली अपनी शादी का पता चला।’
‘‘शीजा के लाख मना करने के बाद भी जब उसके घरवाले नहीं माने तो उसने किसी का मोबाइल फोन लेकर हमें मैसेज करना शुरू किया, उसने ययह भी ध्यान रखा कि वो मैसेज बाद में डिलीट कर दे।’’
ललिता कांबले के अनुसार, उन्होंने उसके बाद चाइल्डलाइन और स्नेहालय नाम के एनजीओ से संपर्क साधा और पुलिस की मदद से शीजा के गांव पहुंचे और गांव वालों के कड़े विरोध के बावजूद शीजा को वहां से बचाकर लाए।
गांववालों ने घेरा
गांव गई टीम के सदस्य गणेश बताते हैं, ‘जैसे ही हमारी गाड़ी गांव पहुंची करीब दो हज़ार लोगों ने हमें घेर लिया, पुलिस ने हमें गाड़ी से उतरने को मना किया क्योंकि वहां कुछ भी हो सकता था। शीजा वहां साड़ी पहने खड़ी थी और उसने जैसे ही हमें देखा वो भागकर हमारे पास आ गई।’
“हमारी उसके परिवार से काफ़ी बहस हुई, उसके घरवालों ने उसे धमकाने की भी कोशिश की, लेकिन वह अपने निर्णय से डिगी नहीं, उसके पिता ने उसे मारा भी तब भी वो घर के अंदर नहीं गई और हम उसे लेकर पुलिस स्टेशन आ गए।’’
शीजा का फ़ैसला
शीजा कहती है, पुलिस ने जब मुझसे पूछा कि मैं क्या चाहती हूं तब मैंने उनसे कहा कि मैं तारा मोबाइल क्रेच वापिस जाना चाहती हूं। मैं शादी की बात से डर गई थी, मैं पढ़ाई कर के अच्छी नौकरी करना चाहती हूं, मैं जानती थी कि अगर उस वक्त़ मैं ज़रा भी डरी तो मेरे सपने हमेशा के लिए मर जाएंगे, मुझे टीएमसी के लोगों पर पूरा भरोसा था।’
ललिता कांबले कहती हैं कि, अगर शीजा ने हिम्मत नहीं दिखाई होती तो हम ये लड़ाई गांव में ही हार जाते, कोई भी साधारण बच्चा ऐसी स्थिति में घबरा जाता, अपने माता-पिता और परिवार के खिलाफ खड़े होने की हिम्मत हर किसी को नहीं होती है। उसे अपने अधिकारों की जानकारी थी, उसे पता था कि 16 साल की उम्र में शादी करना ग़ैरकानूनी है क्योंकि वह पढ़ी लिखी थी। हम चाहते हैं कि हम ऐसे और बच्चों की मदद करें।
शीजा को ड्रॉइंग करना पसंद है और वह बड़ी होकर आर्किटेक्ट बनना चाहती हैं।
इतना कि इसी महीने की शुरुआत में जब उसके घरवालों ने ज़बरदस्ती उसकी शादी करने की कोशिश की तब शीजा ने न सिर्फ अपने परिवार, बल्कि अपने गांव के पूरे मराठा समुदाय से लड़ने में अपना पूरा दमखम लगा दिया।
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार, तारा मोबाइल क्रेच नाम के एनजीओ की सीईओ प्रनीता मंदाईकर के अनुसार, ‘हमें 7 जून की शाम को उसका एसएमएस मिला कि उसकी ज़बरदस्ती शादी की जा रही है और उसे हमारी मदद की ज़रूरत है, वह आगे पढ़ना चाहती थी और हमें उसे वहां से बचा लाने को कह रही थी।’
पांच दिनों बाद शादी
शीजा के संदेश की बेचैनी ने तारा को परेशान कर दिया। तारा ने शीजा की मां से फोन पर बात की, तब भी शीजा बेतरह रो रही थी। उसकी शादी पांच दिनों के बाद यानि 11 जून को होने वाली थी और उसे बचाने के लिए तारा मंदाईकर और उनके एनजीओ के पास काफ़ी कम वक्त़ था।
शीजा सिर्फ़ नौ साल की थी जब उसके दादा-दादी ने काम पर जाने के दौरान उसे कंस्ट्रक्शन मज़दूरों के बच्चों के लिए बने टीएमसी के क्रेच में छोड़ा करते थे। इस एनजीओ ने शीजा को एक लोकल पीएमसी स्कूल में एडमिशन दिला दिया जहां जल्दी ही वो काफी अच्छे नंबर लाने लग गई, ख़ासकर गणित में।
टीएमसी की असिस्टेंट प्रोग्राम कोऑर्डिनेटर ललिता कांबले के अनुसार, ‘पढ़ाई में अच्छे नंबर लाने के बाद हमने उसे एक रेसिडेंशियल स्कूल में डाल दिया ताकि उसे अपने मज़दूर दादा-दादी के साथ भटकना न पड़े और उसने 8वीं की परीक्षा तक अच्छे नंबरों से पास कर ली।’
पिता ले गए घर
ललिता आगे बताती हैं, ‘पिछले महीने ही शीजा गर्मी की छुट्टियों में घर गई थी और वहां से लौटने के पांच दिनों के बाद उसके पिता अचानक स्कूल आए और उसे अपने साथ ले गए, घर पहुंचकर शीजा को पांच दिनों के बाद होने वाली अपनी शादी का पता चला।’
‘‘शीजा के लाख मना करने के बाद भी जब उसके घरवाले नहीं माने तो उसने किसी का मोबाइल फोन लेकर हमें मैसेज करना शुरू किया, उसने ययह भी ध्यान रखा कि वो मैसेज बाद में डिलीट कर दे।’’
ललिता कांबले के अनुसार, उन्होंने उसके बाद चाइल्डलाइन और स्नेहालय नाम के एनजीओ से संपर्क साधा और पुलिस की मदद से शीजा के गांव पहुंचे और गांव वालों के कड़े विरोध के बावजूद शीजा को वहां से बचाकर लाए।
गांववालों ने घेरा
गांव गई टीम के सदस्य गणेश बताते हैं, ‘जैसे ही हमारी गाड़ी गांव पहुंची करीब दो हज़ार लोगों ने हमें घेर लिया, पुलिस ने हमें गाड़ी से उतरने को मना किया क्योंकि वहां कुछ भी हो सकता था। शीजा वहां साड़ी पहने खड़ी थी और उसने जैसे ही हमें देखा वो भागकर हमारे पास आ गई।’
“हमारी उसके परिवार से काफ़ी बहस हुई, उसके घरवालों ने उसे धमकाने की भी कोशिश की, लेकिन वह अपने निर्णय से डिगी नहीं, उसके पिता ने उसे मारा भी तब भी वो घर के अंदर नहीं गई और हम उसे लेकर पुलिस स्टेशन आ गए।’’
शीजा का फ़ैसला
शीजा कहती है, पुलिस ने जब मुझसे पूछा कि मैं क्या चाहती हूं तब मैंने उनसे कहा कि मैं तारा मोबाइल क्रेच वापिस जाना चाहती हूं। मैं शादी की बात से डर गई थी, मैं पढ़ाई कर के अच्छी नौकरी करना चाहती हूं, मैं जानती थी कि अगर उस वक्त़ मैं ज़रा भी डरी तो मेरे सपने हमेशा के लिए मर जाएंगे, मुझे टीएमसी के लोगों पर पूरा भरोसा था।’
ललिता कांबले कहती हैं कि, अगर शीजा ने हिम्मत नहीं दिखाई होती तो हम ये लड़ाई गांव में ही हार जाते, कोई भी साधारण बच्चा ऐसी स्थिति में घबरा जाता, अपने माता-पिता और परिवार के खिलाफ खड़े होने की हिम्मत हर किसी को नहीं होती है। उसे अपने अधिकारों की जानकारी थी, उसे पता था कि 16 साल की उम्र में शादी करना ग़ैरकानूनी है क्योंकि वह पढ़ी लिखी थी। हम चाहते हैं कि हम ऐसे और बच्चों की मदद करें।
शीजा को ड्रॉइंग करना पसंद है और वह बड़ी होकर आर्किटेक्ट बनना चाहती हैं।
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं