जयललिता की फाइल फोटो
नई दिल्ली:
आय से अधिक संपत्ति के मामले में दोषी तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता की अपील पर कर्नाटक हाई कोर्ट में फैसला ज्यादा न लटके इसलिए चीफ जस्टिस ने सुप्रीम कोर्ट में 3 जजों की बेंच का गठन कर दिया है और ये बेंच 21 अप्रैल से सुनवाई करेगी।
इससे पहले डीएमके की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के दोनों जजों की राय अलग होने की वजह से मामले को बड़ी बेंच को भेज दिया था।
इस बीच शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में जयललिता की जमानत बढाने पर भी सुनवाई होनी है क्योंकि कोर्ट ने जमानत 17 अप्रैल तक ही दी थी डीएमके की याचिका पर बुधवार को आदेश सुनाते हुए जस्टिस मदन लोकुर ने कहा कि विशेष सरकारी वकील भवानी सिंह हाइकोर्ट में बिना अनुमति के हिस्सा ले रहे थे, इसलिए जया की अपील पूरी तरह गलत है। इस अपील पर हाइकोर्ट में फिर से सुनवाई होनी चाहिए।
उन्होंने ये भी कहा कि अगर याचिकाकर्ता के आरोप सही हैं तो ये केस इस बात का सटीक उदाहरण है कि आरोपी ने किस तरह प्रभाव और ताकत का इस्तेमाल कर केस को 15 साल तक पटरी से उतारे रखा और अगर आरोप गलत भी हैं तो ये साफ है कि केस के निपटारे में 15 साल लगे। वहीं जस्टिस भानुमति ने अपने फैसले में भवानी सिंह की नियुक्ति को सही ठहराया था। उन्होंने कहा कि वकील की नियुक्ति केस के लिए की जाती है, किसी कोर्ट के लिए नहीं। इसी के साथ मामले को तीन जजों की कोर्ट में भेज दिया गया।
जिसकी वजह से जयललिता की अपील पर फैसला भी टल गया। हालांकि इससे पहले हाइकोर्ट 11 मार्च को ही सारी सुनवाई के बाद आदेश सुरक्षित रख चुका है। लेकिन अब तीन जजों की बेंच के फैसले पर ही सब निर्भर होगा।
डीएमके नेता अम्बझगन ने अपनी याचिका में कहा है कि भवानी सिंह निचली अदालत में पब्लिक प्रासीक्यूटर थे। उन्हें हाई कोर्ट में सरकारी वकील नहीं बनाया जा सकता। जबकि जया के वकीलों का कहना था कि सरकारी वकील केस के लिए नियुक्त किये जाते हैं कोर्ट के लिए नहीं।
आय से 66 करोड़ अधिक संपत्ति के मामले में बेंगलुरु की विशेष अदालत ने जयललिता को चार साल की कैद की सजा दी है। इसके खिलाफ जयललिता की अपील पर फ़िलहाल कर्नाटक हाई कोर्ट में फैसला सुरक्षित है।
इससे पहले डीएमके की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के दोनों जजों की राय अलग होने की वजह से मामले को बड़ी बेंच को भेज दिया था।
इस बीच शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में जयललिता की जमानत बढाने पर भी सुनवाई होनी है क्योंकि कोर्ट ने जमानत 17 अप्रैल तक ही दी थी डीएमके की याचिका पर बुधवार को आदेश सुनाते हुए जस्टिस मदन लोकुर ने कहा कि विशेष सरकारी वकील भवानी सिंह हाइकोर्ट में बिना अनुमति के हिस्सा ले रहे थे, इसलिए जया की अपील पूरी तरह गलत है। इस अपील पर हाइकोर्ट में फिर से सुनवाई होनी चाहिए।
उन्होंने ये भी कहा कि अगर याचिकाकर्ता के आरोप सही हैं तो ये केस इस बात का सटीक उदाहरण है कि आरोपी ने किस तरह प्रभाव और ताकत का इस्तेमाल कर केस को 15 साल तक पटरी से उतारे रखा और अगर आरोप गलत भी हैं तो ये साफ है कि केस के निपटारे में 15 साल लगे। वहीं जस्टिस भानुमति ने अपने फैसले में भवानी सिंह की नियुक्ति को सही ठहराया था। उन्होंने कहा कि वकील की नियुक्ति केस के लिए की जाती है, किसी कोर्ट के लिए नहीं। इसी के साथ मामले को तीन जजों की कोर्ट में भेज दिया गया।
जिसकी वजह से जयललिता की अपील पर फैसला भी टल गया। हालांकि इससे पहले हाइकोर्ट 11 मार्च को ही सारी सुनवाई के बाद आदेश सुरक्षित रख चुका है। लेकिन अब तीन जजों की बेंच के फैसले पर ही सब निर्भर होगा।
डीएमके नेता अम्बझगन ने अपनी याचिका में कहा है कि भवानी सिंह निचली अदालत में पब्लिक प्रासीक्यूटर थे। उन्हें हाई कोर्ट में सरकारी वकील नहीं बनाया जा सकता। जबकि जया के वकीलों का कहना था कि सरकारी वकील केस के लिए नियुक्त किये जाते हैं कोर्ट के लिए नहीं।
आय से 66 करोड़ अधिक संपत्ति के मामले में बेंगलुरु की विशेष अदालत ने जयललिता को चार साल की कैद की सजा दी है। इसके खिलाफ जयललिता की अपील पर फ़िलहाल कर्नाटक हाई कोर्ट में फैसला सुरक्षित है।
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