चीनी नौसेना बेड़े की पनडुब्बी.
नई दिल्ली:
भारत के सिक्किम से लगी सीमा चीन के साथ जारी तनातनी के बीच जहां हिंद महासागर में चीन अपनी नौसेना की मौजूदगी बढ़ाता जा रहा है. चीनी नौसेना का कदम भारत को बिना बताए या जानकारी दिए उठाया गया है. इस पूरे मामले में भारतीय नौसेना भी पूरी तरह से चौकन्नी है.
जानकारी के लिए बता दें रिपोर्टों के अनुसार भारत को चीनी नौसेना की हर कदम की जानकारी जीसैट-7 उपग्रह के जरिए मिली. इस उपग्रह का नाम रुक्मिणी है. यह आसमान से 'ड्रैगन' यानि चीन पर नजर रख रही है. यह नौसेना द्वारा खुद को समर्पित सैन्य सैटेलाइट है, जिसे 29 सितंबर 2013 को लॉन्च किया गया था.
यह भारत का पहला मिलिट्री सैटेलाइट है. 2,625 किलोग्राम वजन का यह सैटेलाइट हिंद महासागर क्षेत्र में नजर रखने में नौसेना की मदद कर रहा है. यह एक मल्टी-बैंड कम्युनिकेशन-कम सर्विलान्स सेटेलाइट है, जिसका 36,000 किमी की ऊंचाई से संचालन हो रहा है. यह नौसेना को युद्धपोतों, पनडुब्बियों और विमानों को रियल-टाइम जानकारी मुहैया कराता है. इसे खासतौर पर चीन की हिंद महासागर में बढ़ती गतिविधियों पर नजर रखने के लिए तैयार किया गया था और भेजा गया था.
समुद्र तट किनारे स्थित संचालन केंद्रों की मदद से यह सेटेलाइट ना केवल नौसेना की अरब सागर और बंगाल की खाड़ी पर नजर रखने में मदद कर रहा है बल्कि फारस की खाड़ी से लेकर मलक्का स्ट्रेट तक उनकी संचार और निगरानी क्षमताओं में वृद्धि करने में भी कारगर साबित हो रहा है, यह हिंद महासागर क्षेत्र के लगभग 70 फीसदी हिस्से के बराबर हैं.
जानकारी के लिए बदा दें कि हाल ही में कम से कम 14 चीनी नौसेना पोतों को भारतीय समुद्री क्षेत्र में घूमते देखा गया. इनमें आधुनिक लुआंग-3 और कुनमिंग क्लास स्टील्थ डेस्ट्रॉयर्स भी शामिल हैं.
जानकारी के लिए बता दें रिपोर्टों के अनुसार भारत को चीनी नौसेना की हर कदम की जानकारी जीसैट-7 उपग्रह के जरिए मिली. इस उपग्रह का नाम रुक्मिणी है. यह आसमान से 'ड्रैगन' यानि चीन पर नजर रख रही है. यह नौसेना द्वारा खुद को समर्पित सैन्य सैटेलाइट है, जिसे 29 सितंबर 2013 को लॉन्च किया गया था.
यह भारत का पहला मिलिट्री सैटेलाइट है. 2,625 किलोग्राम वजन का यह सैटेलाइट हिंद महासागर क्षेत्र में नजर रखने में नौसेना की मदद कर रहा है. यह एक मल्टी-बैंड कम्युनिकेशन-कम सर्विलान्स सेटेलाइट है, जिसका 36,000 किमी की ऊंचाई से संचालन हो रहा है. यह नौसेना को युद्धपोतों, पनडुब्बियों और विमानों को रियल-टाइम जानकारी मुहैया कराता है. इसे खासतौर पर चीन की हिंद महासागर में बढ़ती गतिविधियों पर नजर रखने के लिए तैयार किया गया था और भेजा गया था.
समुद्र तट किनारे स्थित संचालन केंद्रों की मदद से यह सेटेलाइट ना केवल नौसेना की अरब सागर और बंगाल की खाड़ी पर नजर रखने में मदद कर रहा है बल्कि फारस की खाड़ी से लेकर मलक्का स्ट्रेट तक उनकी संचार और निगरानी क्षमताओं में वृद्धि करने में भी कारगर साबित हो रहा है, यह हिंद महासागर क्षेत्र के लगभग 70 फीसदी हिस्से के बराबर हैं.
जानकारी के लिए बदा दें कि हाल ही में कम से कम 14 चीनी नौसेना पोतों को भारतीय समुद्री क्षेत्र में घूमते देखा गया. इनमें आधुनिक लुआंग-3 और कुनमिंग क्लास स्टील्थ डेस्ट्रॉयर्स भी शामिल हैं.