नई दिल्ली:
भारतीय नौसेना के विमानवाहक पोत आईएनएस विराट से उड़ान भरने वाला लड़ाकू विमान सी हैरियर अब उड़ान नहीं भरेगा। 11 मई को दो सी हैरियर गोवा में आखिरी उड़ान भरेंगे। सी हैरियर की जगह मिग-29 लड़ाकू विमान ने ले ली है।
नौसेना प्रमुख एडमिरल रोबिन धवन की मौजूदगी में गोवा में सी हैरियर को परंपरागत तरीके से विदाई दी जाएगी। 33 साल की सेवा के बाद ये रिटायर हो रहा है।
भारतीय नौसेना ने ये लड़ाकू विमान 1983 में ब्रिटेन से खरीदे थे। नौसेना में आने के बाद ये पहले विमान वाहक पोत विक्रांत और उसके बाद फिर विराट में तैनात हो गए। विमानवाहक पोत से ही ये भारत की लंबी समुद्री सरहद की हिफाजत करने में जुट गए।
दुनिया में शायद ही कोई ऐसा लड़ाकू विमान हो जो इसकी तरह वर्टिकल लैडिंग करता हो और इसकी यही खासियत दूसरे लड़ाकू विमानों से अलग करती है। साथ ही बहुत कम रनवे पर ये आसानी से टेक ऑफ भी कर लेता है यानी इसे उतारने के लिये किसी हवाई पट्टी की जरुरत नहीं पड़ती। इसमें आसमान में ही ईंधन भरने की क्षमता भी है। इस विमान की जिम्मेदारी थी अपनी समुद्री हवाई सीमा की निगरानी और विमान वाहक पोत की हिफाजत करना।
करीब 1,186 किलोमीटर प्रति घंटा की स्पीड से 500 पाउंड के बम, कलस्टर बम और मिसाइल से लैस होने पर ये किसी दुश्मन के लिये इससे पार पाना काफी मुश्किल होता है। बड़ी बात है ये कि कई मुसीबत आने पर भी ये कभी अपनी ड्यूटी से पीछे नहीं हटा। खासकर अपनी लाइफ पूरी कर लेने के बाद इसे मरम्मत कर काम में लगाया जाता रहा और ये डटा रहा। 15 के करीब सी हैरियर दुर्घटनाग्रस्त भी हुए, नौ पायलटों की मौत भी हुई। अब तो गिनती के ही सी हैरियर बच गए हैं।
ब्रिटेन में तो 2006 में ही ये विमान रिटायर हो गए थे लेकिन यहां अपग्रेड करके इसे उड़ाया जाता रहा लेकिन ये कब तक उड़ान भरता और अब तो सांसे गिनने लगा है। लिहाजा इसे रिटायर कर देना ही उचित समझा गया। इसी साल 6 मार्च को विराट पर से अंतिम उड़ान भरी थी। अब तो विमानवाहक पोत विराट भी रिटायर होने वाला है। सी हैरियर अब बूढ़ा भी हो गया है और इसकी जगह लेने के लिये रूस से मिग-29 के भी आ गया है। अब ये संग्राहलय की शोभा बढ़ाएंगे।
नौसेना प्रमुख एडमिरल रोबिन धवन की मौजूदगी में गोवा में सी हैरियर को परंपरागत तरीके से विदाई दी जाएगी। 33 साल की सेवा के बाद ये रिटायर हो रहा है।
भारतीय नौसेना ने ये लड़ाकू विमान 1983 में ब्रिटेन से खरीदे थे। नौसेना में आने के बाद ये पहले विमान वाहक पोत विक्रांत और उसके बाद फिर विराट में तैनात हो गए। विमानवाहक पोत से ही ये भारत की लंबी समुद्री सरहद की हिफाजत करने में जुट गए।
दुनिया में शायद ही कोई ऐसा लड़ाकू विमान हो जो इसकी तरह वर्टिकल लैडिंग करता हो और इसकी यही खासियत दूसरे लड़ाकू विमानों से अलग करती है। साथ ही बहुत कम रनवे पर ये आसानी से टेक ऑफ भी कर लेता है यानी इसे उतारने के लिये किसी हवाई पट्टी की जरुरत नहीं पड़ती। इसमें आसमान में ही ईंधन भरने की क्षमता भी है। इस विमान की जिम्मेदारी थी अपनी समुद्री हवाई सीमा की निगरानी और विमान वाहक पोत की हिफाजत करना।
करीब 1,186 किलोमीटर प्रति घंटा की स्पीड से 500 पाउंड के बम, कलस्टर बम और मिसाइल से लैस होने पर ये किसी दुश्मन के लिये इससे पार पाना काफी मुश्किल होता है। बड़ी बात है ये कि कई मुसीबत आने पर भी ये कभी अपनी ड्यूटी से पीछे नहीं हटा। खासकर अपनी लाइफ पूरी कर लेने के बाद इसे मरम्मत कर काम में लगाया जाता रहा और ये डटा रहा। 15 के करीब सी हैरियर दुर्घटनाग्रस्त भी हुए, नौ पायलटों की मौत भी हुई। अब तो गिनती के ही सी हैरियर बच गए हैं।
ब्रिटेन में तो 2006 में ही ये विमान रिटायर हो गए थे लेकिन यहां अपग्रेड करके इसे उड़ाया जाता रहा लेकिन ये कब तक उड़ान भरता और अब तो सांसे गिनने लगा है। लिहाजा इसे रिटायर कर देना ही उचित समझा गया। इसी साल 6 मार्च को विराट पर से अंतिम उड़ान भरी थी। अब तो विमानवाहक पोत विराट भी रिटायर होने वाला है। सी हैरियर अब बूढ़ा भी हो गया है और इसकी जगह लेने के लिये रूस से मिग-29 के भी आ गया है। अब ये संग्राहलय की शोभा बढ़ाएंगे।
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