रक्षा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की सीमा बढ़ाकर 49 फीसदी करने का फैसला करने के बाद भारत ने आज कहा कि वह अपने स्वदेशी सैन्य हार्डवेयर निर्माण उद्योग के विकास के लिए अमेरिका के साथ मिलकर काम करना चाहता है और उपकरणों के संयुक्त निर्माण का विकल्प अपना सकता है।
रक्षामंत्री अरुण जेटली और उनके अमेरिकी समकक्ष चक हेगल के बीच शिष्टमंडल स्तर की बैठक में दोनों देश रक्षा उपकरणों के संयुक्त उत्पादन एवं विकास में सहयोग बढ़ाने पर सहमत हुए।
बैठक में जेटली ने अमेरिका से कहा, 'हमारी अपनी स्वदेशी क्षमता का विकास एक प्रमुख उद्देश्य है, जिससे हमारी मौजूदा नीतियां निर्देशित होती हैं। इस दिशा में हमने रक्षा क्षेत्र में एफडीआई की सीमा बढ़ाने जैसा कदम उठाया है। हम इस बाबत अमेरिका के साथ मिलकर काम करने की चाहत रखते हैं।'
भारत ने हाल ही में रक्षा क्षेत्र में एफडीआई की सीमा 26 फीसदी से बढ़ाकर 49 फीसदी की है। इसका मकसद स्वदेशी रक्षा उत्पादन को बढ़ावा देना है। भारत अपनी रक्षा जरूरतों की करीब 70 फीसदी सामग्री विदेशों से आयात करता है।
अमेरिका अपाचे लड़ाकू हेलीकॉप्टरों, चिनूक हेवीलिफ्ट हेलीकॉप्टरों और जैवलिन टैंक-रोधी निर्देशित मिसाइलों सहित 20,000 करोड़ रुपये के रक्षा करार भारत के साथ करने का इच्छुक हैं।
पिछले 10 सालों में अमेरिका भारत को 60,000 करोड़ रुपये के उपकरण बेच चुका है पर इनमें से कोई भी हथियार बिक्री कार्यक्रम संयुक्त उत्पादन या सह-विकास से जुड़ा नहीं है और इसमें प्रौद्योगिकी का अंतरण शामिल नहीं है।
जेटली ने अक्तूबर में अपने वॉशिंगटन दौरे के दौरान अमेरिकी रक्षा मुख्यालय- पेंटागन आने का हेगल का न्योता स्वीकार कर लिया। जेटली अक्तूबर में आईएमएफ और विश्व बैंक की सालाना बैठकों में हिस्सा लेने के लिए वॉशिंगटन जाएंगे।
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