यह ख़बर 21 दिसंबर, 2013 को प्रकाशित हुई थी

भारत के लिए गैर-राजनीतिक व्यक्ति प्रधानमंत्री के रूप में उचित नहीं : अरुण जेटली

अरुण जेटली की फाइल फोटो

नई दिल्ली:

भाजपा के वरिष्ठ नेता अरुण जेटली ने शनिवार को कहा कि भारत के लिए गैर-राजनीतिक व्यक्ति प्रधानमंत्री के रूप में उचित नहीं है और विश्व के इस सबसे बड़े लोकतंत्र को कॉर्पोरेट की तर्ज पर नहीं चलाया जा सकता है।

जेटली ने यहां फिक्की की वार्षिक महासभा में कहा, 'भारत के लिए गैर-राजनीतिक व्यक्ति प्रधानमंत्री के रूप में उचित नहीं है। ..भारत को अब यह समझना चाहिए कि यह पूरा प्रयोग, (जहां) कॉर्पोरेट जिस ढंग से काम करते हैं, आप दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को उस तरीके से नहीं चला सकते हैं।'

उन्होंने कहा कि किसी प्रधानमंत्री को कभी इस आधार पर नहीं आंका जाता कि वह कितने साल इस पद पर रहे, बल्कि इस आधार पर पैमाइश होती है कि अर्थव्यवस्था के बारे में उन्होंने क्या फैसले किए।

राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष ने कहा, 'प्रधानमंत्री पद कोई रोज़गार नहीं है। सरकार में प्रधानमंत्री की बात आखिरी होनी चाहिए। प्रधानमंत्री को देश का स्वाभाविक नेता होना चाहिए, निश्चित तौर पर अपनी पार्टी और सरकार का भी।'

उन्होंने कहा, 'प्रधानमंत्री को कभी असहाय नहीं दिखना चाहिए। प्रधानमंत्री को कभी यह एहसास नहीं होना चाहिए कि मुझे काम नहीं करने दिया जा रहा है।' संप्रग के शासन के तरीके, जिसमें कथित रूप से प्रधानमंत्री की बात अंतिम नहीं है, पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा, 'आपने सामान्य सरकार से बाहर व्यवस्थाएं बना दी हैं और ये बाहरी व्यवस्थाएं उन निर्देशों के विरोध में हैं जो अर्थव्यवस्था के लिए दी जानी जरूरी हैं।'

मुख्य विपक्षी दल के नेता ने आरोप लगाया कि वर्तमान सरकार 'नीतिगत पक्षाघात' का शिकार है जिससे विश्व भर में 'ब्रांड इंडिया' की छवि धूमिल हुई है और इसके चलते निवेश का चक्र रुक ही नहीं गया, बल्कि उल्टा चलने लगा।

निवेश चक्र को सही दिशा में बहाल करने के लिए उन्होंने कहा कि इसके लिए 'जो कुछ चल रहा है उसे बंद करना होगा। इन सबसे ब्रांड इंडिया को नुकसान हो रहा है, भारत की छवि को नुकसान हो रहा है, भारत की निवेश छवि बिगड़ रही है और यहीं हमें ऐसे प्रधानमंत्री की जरूरत है जो कहे कि यह सब स्वीकार्य नहीं है।'

हाल के विधानसभा चुनावों में भाजपा को मिली बड़ी जीत के संदर्भ में उन्होंने दावा किया कि मतदाताओं ने एक वर्ग को लुभाने के लिए कुछ योजनाओं के लिए नहीं बल्कि 'प्रभावशाली शासन' के पक्ष में मतदान किया।

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जेटली के अनुसार, यह बात सही है कि 'सिर्फ सुशासन ही आपको जीतने में मदद नहीं कर सकता है। सुशासन के साथ जीत के लिए कुछ चतुर राजनीति की भी जरूरत होती है। लेकिन कुशासन तो निश्चित तौर पर आपको पराजय ही दिलाएगा।'