5 साल पहले हेमंत सोरेन ने 23 दिसंबर को ही दिया था इस्तीफा, इसी दिन मुख्यमंत्री के रूप में उभरे

झारखंड के मुख्यमंत्री बनने जा रहे हेमंत सोरेन ने 5 साल पहले 23 दिसंबर के ही दिन झारखंड विधानसभा का चुनाव हारने के बाद अपने पद से इस्तीफा दे दिया था.

5 साल पहले हेमंत सोरेन ने 23 दिसंबर को ही दिया था इस्तीफा, इसी दिन मुख्यमंत्री के रूप में उभरे

हेमंत सोरेन ने 38 साल की उम्र में पहली बार 13 जुलाई, 2013 को झारखंड के मुख्यमंत्री का पद संभाला था

खास बातें

  • हेमंत सोरेन ने 5 साल पहले 23 दिसंबर को ही दिया था इस्तीफा
  • सोरेन ने पहली बार 13 जुलाई, 2013 को झारखंड के मुख्यमंत्री का पद संभाला था
  • हेमंत झारखंड के तीन बार मुख्यमंत्री रहे शिबू सोरेन के पुत्र हैं
रांची:

झारखंड के मुख्यमंत्री बनने जा रहे हेमंत सोरेन ने 5 साल पहले 23 दिसंबर के ही दिन झारखंड विधानसभा का चुनाव हारने के बाद अपने पद से इस्तीफा दे दिया था. ठीक 5 साल बाद बीजेपी जहां गठबंधन विहीन चुनाव के मोर्चे पर उतरी और बुरी तरह हारी वहीं झामुमो के नेता सोरेन ने कांग्रेस और राजद के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ा और पूर्ण बहुमत हासिल किया. अब झारखंड बनने के 19 साल बाद पहली बार झामुमो भी चुनाव पूर्व के अपने सहयोगियों के साथ पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने जा रही है. हेमंत सोरेन ने 38 साल की उम्र में पहली बार 13 जुलाई, 2013 को झारखंड के मुख्यमंत्री का पद संभाला था. वह इस पद पर 23 दिसंबर, 2014 तक बने रहे और कार्यवाहक मुख्यमंत्री के तौर पर वह 28 दिसंबर, 2014 तक पद पर बने रहे. 

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दस अगस्त 1975 को जन्मे सोरेन पूर्व केन्द्रीय मंत्री और झारखंड के तीन बार मुख्यमंत्री रहे शिबू सोरेन के पुत्र हैं. शिबू सोरेन ने राज्य की कमान तीन बार संभाली लेकिन एक बार भी वह सरकार चला नहीं सके. हेमंत ने यहां BIT में इंजीनियरिंग में प्रवेश लिया था लेकिन वहअपनी शिक्षा पूरी नहीं कर सके. वह 24 जून, 2009 से चार जनवरी, 2010 तक झारखंड से राज्यसभा के सदस्य रहे. सितंबर, 2010 में गठित हुई अर्जुन मुंडा की सरकार में हेमंत ने उपमुख्यमंत्री का पद संभाला. उपमुख्यमंत्री के साथ ही उन्होंने वित्त मंत्रालय भी संभाला. विपक्ष के नेता के तौर पर हेमंत सोरेन दिसंबर 2014 से अब तक जन मुद्दों की बात करते रहे और उन्होंने विशेषकर आदिवासियों की जमीन, जंगल की बात की और भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन की राज्य सरकार की कोशिशों का जमकर विरोध किया जिससे उन्हें गरीबों और आदिवासियों का भरपूर समर्थन मिला. 

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हेमंत ने अकेले चुनाव लड़कर 2014 में अपनी झामुमो को 19 सीट दिलाई. जबकि इससे पहले 2009 के चुनाव में उनके पिता के नेतृत्व में झामुमो नेसिर्फ 18 सीटें जीती थीं. इससे उनके नेतृत्व को लेकर पार्टी में चल रहा विरोध हमेशा के लिए दब गया. इस बार हेमंत ने जिस प्रकार 2014 की भूल को सुधारते हुए लोकसभा चुनाव से पहले ही महागठबंधन तैयार किया और उसी समय राजनीतिक परिपक्वता दिखाते हुए राज्य में बड़ी पार्टी होते हुए कांग्रेस को अधिक सीटें लड़ने को दीं.