गुरमेहर कौर का ब्लॉग
नई दिल्ली:
दिल्ली यूनिवर्सिटी के रामजस कॉलेज में एक सेमिनार को लेकर दो छात्र संगठनों के बीच हुए विवाद को लेकर सोशल मीडिया पर एबीवीपी के विरोध में आवाज उठाकर चर्चा में आई गुरमेहर कौर अब एक ब्लॉग को लेकर चर्चा में हैं. एबीवीपी के खिलाफ सोशल मीडिया पर अपने पोस्ट के वायरल होने के बाद छात्रा गुरमेहर कौर ने आरोप लगाया था कि उसे दुष्कर्म करने की धमकी मिली. इसके बाद राजनीति से लेकर क्रिकेटर जगत तक कई तरह की टिप्पणियां सामने आई थीं.
गुरमेहर ने अब ट्विटर पर एक ब्लॉग शेयर किया है. उन्होंने लिखा है कि आपने मेरे बारे में पढ़ा. लेखों से मेरे बारे में राय बनाई. अब यहां मेरे शब्दों को पढ़ें. मेरे पहले ब्लॉग का टाइटल है, आईएम
मैं कौन हूं
यह एक ऐसा सवाल है, जिसका जवाब कुछ हफ्ते पहले तक मैं बिना किसी चिंता और हिचकिचाहट के अपने हंसमुख अंदाज में दे सकती थी, लेकिन अब मैं पक्के तौर पर कुछ नहीं कह सकती.
क्या मैं वो हूं जो ट्रोल्स मेरे बारे में सोचते हैं
क्या मैं वैसी हूं जैसा मीडिया में बताया जाता है
क्या मैं वैसी हूं, जैसा सेलिब्रिटीज सोचते हैं
मैं इनमें से कोई नहीं हो सकती, नहीं. हाथों में प्लेकार्ड लिए, भौंहे चढ़ाए और मोबाइल फोन के कैमरे पर टिकी आंखों वाली जिस लड़की को आपने टीवी स्क्रीन पर देखा होगा, वह निश्चित तौर पर मुझ जैसी दिखती है. उसके विचारों की उत्तेजना जो उसके चेहरे पर चमकती है, निश्चित ही उसमें मेरी झलक है. वह उग्र लगती है, मैं उससे सहमत भी हूं, लेकिन ब्रेकिंग न्यूज ने एक दूसरी ही कहानी सुनाई, मैं वो नहीं हूं.
शहीद की बेटी
शहीद की बेटी
शहीद कीबेटी
मैं अपने पिता की बेटी हूं. मैं अपने पापा की गुलगुल हूं. मैं उनकी गुड़ियां हूं. मैं दो साल की वह कलाकार हूं, जो शब्द तो नहीं समझती है, जो उसके पिता उसके लिए बनाया करते थे.
मैं अपनी मां का सिरदर्द हूं. राय रखने वाली मूडी बच्ची, जिसमें मेरी मां की भी छाया है. मैं अपनी बहन के लिए पॉप कल्चर की गाइड हूं.
मैं अपनी क्लास में पहली बेंच पर बैठने वाली वह लड़की हूं जो अपने टीचर्स से किसी भी बात पर बहस करने लगती हैं. क्योंकि इसी में तो साहित्य का मजा है. मुझे उम्मीद है कि मेरे दोस्त मुझे पसंद करते हैं. वे कहते हैं कि मेरा सेंस ऑफ ह्यूमर ड्राई है, पर यह कारगर भी है. किताबें और कविताएं मुझे राहत देती हैं.
मुझे किताबों का बेहद शौक है. मेरे घर की लाइब्रेरी किताबों से भरी पड़ी है. पिछले कुछ महीनों से मैं इसी फिक्र में हूं कि मां को उनके लैंप और तस्वीरें दूसरी जगह रखने के लिए मना लूं, ताकि मेरी किताबों के लिए शेल्फ में और जगह बन सके.
मैं आदर्शवादी हूं. एथलीट हूं. शांति समर्थक हूं. जैसा की आप उम्मीद करते हैं मैं उग्र और युद्ध का विरोध करने वाली बेचारी नहीं हूं. मैं युद्ध नहीं चाहती क्योंकि मुझे इसकी कीमत का अंदाजा है. भरोसा कीजिए, मैं बेहतर जानती हूं,क्योंकि मैंने रोजाना इसकी कीमत चुकाई है.
गुरमेहर ने लिखा कि पापा मेरे साथ नहीं हैं. वह 18 सालों से मेरे साथ नहीं हैं. 6 अगस्त, 1999 के बाद मेरे शब्दकोश में कुछ नए शब्द जुड़ गए. मौत, पाकिस्तान और युद्ध.
गुरमेहर ने अब ट्विटर पर एक ब्लॉग शेयर किया है. उन्होंने लिखा है कि आपने मेरे बारे में पढ़ा. लेखों से मेरे बारे में राय बनाई. अब यहां मेरे शब्दों को पढ़ें. मेरे पहले ब्लॉग का टाइटल है, आईएम
मैं कौन हूं
यह एक ऐसा सवाल है, जिसका जवाब कुछ हफ्ते पहले तक मैं बिना किसी चिंता और हिचकिचाहट के अपने हंसमुख अंदाज में दे सकती थी, लेकिन अब मैं पक्के तौर पर कुछ नहीं कह सकती.
क्या मैं वो हूं जो ट्रोल्स मेरे बारे में सोचते हैं
क्या मैं वैसी हूं जैसा मीडिया में बताया जाता है
क्या मैं वैसी हूं, जैसा सेलिब्रिटीज सोचते हैं
मैं इनमें से कोई नहीं हो सकती, नहीं. हाथों में प्लेकार्ड लिए, भौंहे चढ़ाए और मोबाइल फोन के कैमरे पर टिकी आंखों वाली जिस लड़की को आपने टीवी स्क्रीन पर देखा होगा, वह निश्चित तौर पर मुझ जैसी दिखती है. उसके विचारों की उत्तेजना जो उसके चेहरे पर चमकती है, निश्चित ही उसमें मेरी झलक है. वह उग्र लगती है, मैं उससे सहमत भी हूं, लेकिन ब्रेकिंग न्यूज ने एक दूसरी ही कहानी सुनाई, मैं वो नहीं हूं.
शहीद की बेटी
शहीद की बेटी
शहीद कीबेटी
मैं अपने पिता की बेटी हूं. मैं अपने पापा की गुलगुल हूं. मैं उनकी गुड़ियां हूं. मैं दो साल की वह कलाकार हूं, जो शब्द तो नहीं समझती है, जो उसके पिता उसके लिए बनाया करते थे.
मैं अपनी मां का सिरदर्द हूं. राय रखने वाली मूडी बच्ची, जिसमें मेरी मां की भी छाया है. मैं अपनी बहन के लिए पॉप कल्चर की गाइड हूं.
मैं अपनी क्लास में पहली बेंच पर बैठने वाली वह लड़की हूं जो अपने टीचर्स से किसी भी बात पर बहस करने लगती हैं. क्योंकि इसी में तो साहित्य का मजा है. मुझे उम्मीद है कि मेरे दोस्त मुझे पसंद करते हैं. वे कहते हैं कि मेरा सेंस ऑफ ह्यूमर ड्राई है, पर यह कारगर भी है. किताबें और कविताएं मुझे राहत देती हैं.
मुझे किताबों का बेहद शौक है. मेरे घर की लाइब्रेरी किताबों से भरी पड़ी है. पिछले कुछ महीनों से मैं इसी फिक्र में हूं कि मां को उनके लैंप और तस्वीरें दूसरी जगह रखने के लिए मना लूं, ताकि मेरी किताबों के लिए शेल्फ में और जगह बन सके.
मैं आदर्शवादी हूं. एथलीट हूं. शांति समर्थक हूं. जैसा की आप उम्मीद करते हैं मैं उग्र और युद्ध का विरोध करने वाली बेचारी नहीं हूं. मैं युद्ध नहीं चाहती क्योंकि मुझे इसकी कीमत का अंदाजा है. भरोसा कीजिए, मैं बेहतर जानती हूं,क्योंकि मैंने रोजाना इसकी कीमत चुकाई है.
गुरमेहर ने लिखा कि पापा मेरे साथ नहीं हैं. वह 18 सालों से मेरे साथ नहीं हैं. 6 अगस्त, 1999 के बाद मेरे शब्दकोश में कुछ नए शब्द जुड़ गए. मौत, पाकिस्तान और युद्ध.
मेरे पिता शहीद हैं, लेकिन मैं उन्हें एक ऐसे आदमी के रूप में जानती हूं जो कार्गो की जैकेट पहनते थे और जिनकी जेबें मिठाइयों से भरी होती थी. जिनका कंधा मैं जोर से पकड़ लेती थी, ताकि वे मुझे छोड़कर न चले जाएं. वे चले गए, फिर नहीं आए. मेरे पिता शहीद हैं. मैं उनकी बेटी हूं, लेकिन मैं आपके शहीद की बेटी नहीं हूं.You've read about me, made assumptions based on articles.
— Gurmehar Kaur (@mehartweets) April 11, 2017
Here in my own words.
My first blog titled "I am"
https://t.co/hU3ojWb0L7
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं