भारत में कालीन उद्योग का संकट गहराता जा रहा है. सितंबर में जब एनडीटीवी ने कालीन उद्योग का जायज़ा लिया तो उन्होंने बताया कि महंगे कालीनों की मांग में 90% तक कमी आई है. अब ये मांग बस 8 फ़ीसदी रह गई है. कश्मीर का तो पूरा कारोबार चरमराया हुआ है. "आर्थिक मंदी की वजह से हाई-एन्ड कार्पेट की मांग अमेरिका और यूरोप में 90% तक घट गयी है, करीब 5 महीने पहले सितंबर के पहले हफ्ते में कारपेट एक्सपोर्टर ओ पी गर्ग ने एनडीटीवी से ये बात कही थी. गुरुवार को गर्ग ने एनडीटीवी से कहा - अमेरिका और यूरोप के बाज़ारों में महंगे कारपेट की मांग और घट गयी है. अब मान लीजिए हाई-एंड कार्पेट की डीमांड 10% से भी घट कर सिर्फ 8% रह गयी है. सामान बिक नहीं रहा, जमा होता जा रहा है." कश्मीर में लॉक-डाउन और इंटरनेट पर पाबंदी की वजह से घाटी में कॉरपेट का कारोबार काफी बुरी तरह प्रभावित हुआ है.
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चेयरमैन, ओवरसीज़ कॉर्पेट्स के चेयरमैन ओपी गर्ग ने कहा, 'कश्मीर में लॉकडाउन की वजह से कार्पेट उद्योग लगभग ठप हो गया है. कश्मीर का बिजनेस बिल्कुल बंद हो गया है. कश्मीर के सिल्क कार्पेट जो हिंदुस्तान से सबसे ज्यादा हाई वैल्यू का एक्सपोर्ट होता था, वो आज बिल्कुल निल हो गया है.'
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कार्पेट एक्सपोर्टरों की शिकायत है कि पांच महीने पहले भी जीएसटी रिफंड मिलना चुनौती थी, आज भी उससे जूझना पड़ रहा है. दरअसल ये संकट बड़ा होता जा रहा है कि क्योंकि करीब तीन-चौथाई कार्पेट का एक्सपोर्ट सिर्फ अमेरिका और यूरोप में होता है. कार्पेट एक्सपोर्टर प्रोमोशन काउंसिल के मुताबिक भारत के 48.84 फीसदी निर्यातित कालीन का बाज़ार अमेरिका में है जबकि यूरोप में 27.25 फ़ीसदी का बाज़ार है.
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कार्पेट एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल के ईडी संजय कुमार ने कहा, 'बजट 2020 में हमारी सबसे अहम मांग है कि कम दर पर फाइनांस उपलब्ध हो. जिससे जो छोटे उद्यमी हैं उनको व्यापार करने में सुविधा हो. दूसरी मांग है कि जो मर्केंटाइल एक्सपोर्ट इंसेंटिव स्कीम 7 फीसदी की है उसे जारी रखा जाए.
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कश्मीर से बनारस तक कालीन उद्योग सदियों से भारत के मझोले उद्योगों में प्रमुख रहा है. पहली बार ये उद्योग जीएसटी के दायरे में आया और अब मंदी की मार भी इसे झेलनी पड़ रही है. उम्मीद अब एक फरवरी को पेश होने वाले बजट से है.
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