किशोर उम्र में अभिनेत्री बनने से लेकर अन्नाद्रमुक के संस्थापक एम. जी. रामचंद्रन उर्फ एमजीआर की करीबी और फिर तीन बार तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बनीं जयललिता जयराम ने अपने चार दशक के राजनीतिक जीवन में काफी उतार-चढ़ाव देखे हैं। और इस बार वह 18 वर्ष पुराने भ्रष्टाचार के मामले में दोषी ठहराई गई हैं।
15 साल की उम्र में फिल्मी करियर शुरू करने वाली 66 वर्षीय मुख्यमंत्री के जीवन में अनेक उतार-चढ़ाव आए। एक विद्यार्थी के तौर पर पढ़ाई में उनकी काफी रूचि रही, इसके बाद वह तमिल की मशहूर अभिनेत्री बनीं।
जयललिता ने एमजीआर के साथ 28 फिल्मों में काम किया। एमजीआर तमिल सिनेमा के सुपरस्टार थे और भारतीय राजनीति के सम्मानित नेताओं में थे। उनके साथ जयललिता भी राजनीति में आ गईं।
एम. करुणानिधि नीत द्रमुक से टूटने के बाद एमजीआर ने अन्नाद्रमुक का गठन किया और जयललिता को 1983 में अपनी पार्टी का प्रचार सचिव नियुक्त किया और फिर राज्यसभा के लिए मनोनीत किया। उन्होंने अपने अंग्रेजी संवाद कौशल से प्रभावित किया।
इस बीच, दोनों के बीच मतभेद की खबरें भी आईं, लेकिन 1984 में जब एमजीआर बीमार पड़े तब जयललिता ने पार्टी के प्रचार अभियान का नेतृत्व किया। इस दौरान एमजीआर का अमेरिका में इलाज चल रहा था।
वह दिसंबर 1987 में पूरी तरह तब उभरकर सामने आईं जब एमजीआर का निधन हो गया। अन्नाद्रमुक संस्थापक की अंतिम यात्रा के जुलूस में एमजीआर की पत्नी जानकी के समर्थकों ने जयललिता से कथित रूप से दुर्व्यवहार किया, जिससे पार्टी में बिखराव हो गया।
जयललिता का धड़ा 1989 में विजयी रहा और पहली बार जयललिता राज्य विधानसभा के लिए चुनी गईं, जहां वह विपक्ष की नेता बनीं। लेकिन बताया जाता है कि सत्तारूढ़ द्रमुक से जुड़ी एक घिनौनी घटना के कारण उन्होंने पार्टी के खिलाफ उग्र तेवर अपनाए। इसके बाद वह दोनों धड़ों को जोड़ने में सफल रहीं और तब से वह पार्टी की निर्विवाद नेता बनी हुई हैं।
वर्ष 1991 में उन्होंने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया और राजीव गांधी की हत्या के बाद चले सहानुभूति लहर से वह अभूतपूर्व बहुमत से सत्ता में आईं।
बहरहाल 1991-96 का काल उनके लिए बुरा रहा, जब उनकी विश्वस्त शशिकला के परिवार के कारण उन्हें काफी कुछ झेलना पड़ा। उनके दत्तक पुत्र वी. एन. सुधाकरन के भव्य शादी समारोह की काफी आलोचना हुई।
1996 के चुनावों में भ्रष्टाचार के व्यापक आरोप अन्नाद्रमुक के लिए घातक साबित हुए जब द्रमुक-टीएमसी गठबंधन ने विधानसभा चुनावों में शानदार जीत दर्ज की और जयललिता खुद ही एक अंजान से द्रमुक उम्मीदवार से हार गईं। उन्हें 1996 में गिरफ्तार किया गया। उनके खिलाफ कई मामले दर्ज किये गये जिनमें आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक संपत्ति इकट्ठा करने का मामला भी शामिल था।
चुनावी हार को पीछे छोड़ते हुए उन्होंने भाजपा के साथ गठबंधन किया और अटल बिहारी वाजपेयी के समय राजग का हिस्सा बनीं। बहरहाल 1999 में विश्वास मत के दौरान सरकार गिराने के लिए वह बदनाम भी हुईं।
अन्नाद्रमुक की 'आयरन लेडी' ने राज्य स्तर पर 2001 के चुनावों में सत्ता में वापसी की। भले ही वह चुनाव नहीं लड़ीं, लेकिन मुख्यमंत्री बन गईं और टीएएनएसआई भूमि घोटाले में दोषी ठहराए जाने के परिप्रेक्ष्य में उच्चतम न्यायालय ने उनकी नियुक्ति को खारिज कर दिया, जिसके बाद उन्हें पद छोड़ना पड़ा।
इस दौरान जयललिता ने अपने विश्वस्त ओ. पनीरसेल्वम को मुख्यमंत्री बनाया, लेकिन प्रशासन की डोर अपने हाथों में रखीं।
टीएएनएसआई मामले में बरी होने के बाद जयललिता ने दिसंबर 2001 में सत्ता में वापसी की और 2006 के चुनावों में वह फिर द्रमुक से पराजित हो गईं।
वर्ष 2011 में उन्होंने द्रमुक के जीत की सारी संभावनाओं पर पानी फेरते हुए शानदार बहुमत से जीत हासिल की और सुनिश्चित किया कि उनके मुख्य प्रतिद्वंद्वी को मुख्य विपक्षी दल का दर्जा तक नहीं मिले।
बरहाल 66.65 करोड़ रुपये के आय के ज्ञात स्रोत से अधिक संपत्ति मामले में उन्हें आज दोषी ठहराए जाने से उनके राजनीतिक करियर को गहरा झटका लगा है।
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