
देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और सरदार पटेल के बीच के रिश्ते को लेकर एक बार फिर विवाद शुरू हो गया है. विदेशमंत्री एस जयशंकर ने बुधवार को नारायणी बसु द्वारा लिखी गई वीपी मेनन की जीवनी के विमोचन के बाद एक के बाद एक कई ट्वीट किए. उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा कि वीपी मेनन की जीवनी से उन्होंने जाना कि 1947 में जवाहरलाल नेहरु सरदार पटेल को अपने कैबिनेट में जगह नहीं देना चाहते थे.
साथ ही उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा, 'नारायणी बसु की ओर से लिखी गई वीपी मेनन की जीवनी में पटेल के मेनन और नेहरू के मेनन में काफी विरोधाभास देखने को मिला. बहुत ही लंबे समय के बाद एक ऐतिहासिक पुरुष के साथ न्याय हुआ है.'
Exercise of writing history for politics in the past needs honest treatment. "When Sardar died, a deliberate campaign was begun to efface his memory. I know this, because I have seen it, and at times, I fell victim to it myself. " So says VP Menon. pic.twitter.com/UuQ2YbYxyS
— Dr. S. Jaishankar (@DrSJaishankar) February 12, 2020
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विेदेशमंत्री ने कहा "उन्होंने किताब से जाना कि नेहरु नहीं चाहते थे कि पटेल उनके केबिनेट का हिस्सा हो और नेहरु ने अपने पहले लिस्ट से उनका नाम भी हटा दिया था. हालांकि लेखक का यह रहस्योद्घाटन एक बड़े विवाद का विषय है. साथ ही उन्होंने कहा कि राजनीति के इतिहास को लिखने के लिए हमें पूरी ईमानदारी की जरूरत होती है."
विदेशमंत्री ने साथ ही कहा, 'किताब से पता लगा कि साल 1947 में पटेल को नेहरू अपने कैबिनेट में नहीं रखना चाहते थे और उन्होंने शुरुआती कैबिनेट की लिस्ट से उनका नाम भी हटा दिया था. स्पष्ट तौर पर यह एक बहस का विषय है.' साथ ही उन्होंने कहा कि राजनीति के इतिहास को लिखने के लिए हमें पूरी ईमानदारी की जरूरत होती है.
विदेशमंत्री ने ट्वीट किया "वीपी मेनन ने कहा था कि जब सरदार पटेल की मौत हुई तो उनकी यादों को भुलाने के लिए व्यापक स्तर पर कैंपेन चलाया गया था. मैं यह इसलिए जानता हूं क्योंकि मैंने यह देखा है.'
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