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This Article is From Dec 24, 2018

Flashback 2018: इन 5 बड़े आंदोलनों ने खींचा पूरे देश का ध्यान...

Flashback2018: साल 2018 का समापन होने वाला है. बीते साल देश में कुछ बड़े आंदोलन हुए, जिससे कुछ बदलाव की भी झलक देखने को मिली.

Flashback 2018: इन 5 बड़े आंदोलनों ने खींचा पूरे देश का ध्यान...
देश के अन्नदाताओं को कई बार सड़क पर उतरना पड़ा. (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:

Flashback 2018: साल 2018 का समापन होने वाला है. बीते साल देश में कुछ बड़े आंदोलन हुए, जिससे कुछ बदलाव की भी झलक देखने को मिली. साल 2018 में देश के अन्नदाता कई बार सड़कों पर उतरे. कभी दिल्ली तो कभी महाराष्ट्र में किसानों ने अपनी आवाज बुलंद की. तो वहीं, SC/ST Act पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध में दलित संगठनों ने भारत बंद बुलाया, जिस दौरान 9 लोगों की मौत हो गई, वहीं कई अन्य घायल हो गए. इस दौरान कई शहरों में आगजनी और हिंसा की घटनाएं भी हुईं. इसके बाद मोदी सरकार द्वारा एससी-एसटी एक्ट (SC/ST Act) में संशोधन कर उसे मूल स्वरूप में बहाल कर दिया गया, जिसका सवर्ण समुदाय के संगठनों ने विरोध किया और भारत बंद बुलाया. इस दौरान भी कई जगहों पर हिंसक घटनाएं हुईं. उधर, महाराष्ट्र में मराठा समुदाय के लोगों ने आरक्षण की मांग को लेकर धरना प्रदर्शन किया और सरकार का घेराव किया. इसके बाद सरकार ने महाराष्ट्र विधानसभा में मराठा आरक्षण बिल पास भी कर दिया. बिल के मुताबिक, राज्य की 32.4% मराठा आबादी को 16% आरक्षण मिलेगा. वहीं, दूसरी तरफ तमिलनाडु के तूतीकोरिन में वेदांता समूह के स्टरलाइट कॉपर प्लांट को बंद कराने को लेकर मई को हुए प्रदर्शन में 13 लोगों की पुलिस गोलीबारी में मौत हो गई. वेदांता समूह की इस फैक्ट्री से हो रहे प्रदूषण के खिलाफ लोग महीनों से प्रदर्शन कर रहे थे.

 

1. सड़कों पर उतरे देश के अन्नदाता

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देश के किसानों के बुनियादी सवाल वर्ष 2018 में प्रमुख राजनीतिक मुद्दे बनकर उभरे, जो आगे अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में भी छाए रह सकते हैं. खासतौर से किसानों को उनकी फसलों का वाजिब दाम नहीं मिलने और अनाजों की सरकारी खरीद की प्रक्रिया दुरुस्त नहीं होने को विपक्ष आगामी आम चुनाव में भाजपा के खिलाफ अहम मसला बनाना चाहेगा. बीते एक साल में देश में किसानों की कई बड़ी रैलियां हुईं. देश के अन्नदाता कभी महाराष्ट्र में लामबंद हुए तो कभी देश की राजधानी दिल्ली का रुख किया. हर बार किसानों को आश्वासन देकर वापस लौटा दिया गया. किसान सरकारी वादे के मुताबिक कर्ज माफी, बिजली बिल की माफी, फ़सल की डेढ़ गुना क़ीमत, स्वामीनाथन आयोग की सिफ़ारिशें लागू करवाने के लिए कई बार सड़कों पर उतरे. स्वामीनाथन आयोग की सिफ़ारिशों के मुताबिक भूमि सुधारों को बढ़ावा मिले, अतिरिक्त और बेकार ज़मीन भूमिहीनों में बंटे, किसानों की आत्महत्या की समस्या हल हो, न्यूनतम समर्थन मूल्य लागत से 50% ज़्यादा हो, वित्त-बीमा की स्थिति पुख़्ता बनाने पर ज़ोर, राज्य स्तरीय किसान आयोग बने, किसानों की सेहत सुविधाएं बढ़ें आदि शामिल हैं. 

 

2. दलित संगठनों का भारत बंद

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20 मार्च को SC/ST Act पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया था. इस फैसले में दलितों के खिलाफ अपराधों के मामले में ज़मानत और अग्रिम ज़मानत का प्रावधान किया गया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मौजूदा स्वरूप में इस कानून का दुरुपयोग हो रहा है. इसी फैसले के खिलाफ कई दलित संगठनों ने भारत बंद का आह्वान किया था, जिसे कई राजनीतिक पार्टियों का समर्थन मिला. इस बंद का असर कई राज्यों में देखने को मिला. ना सिर्फ बाज़ार बंद नज़र आए, बल्कि रेल सेवा भी काफी प्रभावित हुई. कुछ जगहों पर प्रदर्शनकारी हिंसक भी हो उठे. वाहनों में तोड़-फोड़ और आगज़नी की घटनाएं भी हुईं. हिंसा की अलग-अलग घटनाओं में 9 लोगों की जान चली गई. इनमें से सबसे ज्‍यादा 6 लोगों की मौत मध्‍यप्रदेश में हुई, जबकि उत्तर प्रदेश में 2 और राजस्‍थान में एक की मौत हुई है. वहीं सैकड़ों की संख्‍या में लोग घायल हुए. इसके बाद मोदी सरकार ने एससी/एसटी एक्ट को मौजूदा स्वरूप में बहाल कर दिया, जिसका सवर्ण समुदाय के लोगों ने विरोध किया. 


3. सवर्ण संगठनों का भारत बंद

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सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मोदी सरकार द्वारा SC/ST एक्ट में संशोधन कर उसे मूल स्वरूप में बहाल करने के विरोध में सवर्ण समुदाय के लोगों ने 6 सितंबर को भारत बंद बुलाया था. देश के कई इलाकों में बंद को सफल कराने के लिए प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतरे थे. मध्यप्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र आदि राज्यों में भारत बंद के लिए सवर्ण समुदाय के लोग सड़कों पर उतरे, जिसका व्यापक असर देखने को मिला. दरअसल, सवर्ण समुदाय के लोग एससी/एसटी एक्ट के खिलाफ हैं. उनका मानना है कि इस कानून की वजह से उन्हें प्रताड़ित होना पड़ता है और इस कानून का गलत इस्तेमाल किया जाता है. दरअसल, सवर्ण संगठनों और जातियों की मांग है कि केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिये गये आदेश के मुताबिक, ही कानून रहने दे. यानी केंद्र एसएसी/एसटी एक्ट के पुराने स्वरूप को बहाल न करे.


4. तमिलनाडु में स्टरलाइट कॉपर यूनिट के खिलाफ प्रदर्शन

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तमिलनाडु के तूतीकोरिन में स्टरलाइट कॉपर यूनिट के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान पुलिस की गोलीबारी में 13 लोगों की मौत हो गई. इसी साल 22 मई को हुए प्रदर्शन के दौरान यह गोलीबारी हुई थी. बता दें कि इस फैक्ट्री से हो रहे प्रदूषण के खिलाफ लोग महीनों से प्रदर्शन कर रहे हैं. स्थानीय लोगों का कहना था कि इस फैक्ट्री के प्रदूषण के कारण सेहत से जुड़ी गंभीर समस्याओं का संकट खड़ा हो गया है. जबकि इस कंपनी ने उस वक्त शहर में अपनी और यूनिट बढ़ाने की घोषणा की थी. कंपनी द्वारा प्रदूषण फैलाने और कई स्थानीय लोगों के प्रभावित होने की वजह से प्लांट को बंद कराने की मांग के साथ हिंसक प्रदर्शन हुए थे. स्थानीय लोग प्रदूषण फैलाने के चलते कारखाने को बंद करने की मांग को लेकर 99 दिन से प्रदर्शन कर रहे थे. आंदोलन के 100वें दिन प्रदर्शनकारी हिंसक हो गए और पुलिस की गोलीबारी में 13 लोग मारे गए. तमिलनाडु सरकार ने इसके बाद 28 मई को राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को खनन समूह के इस्पात संयंत्र को सील करने और 'स्थायी' तौर पर बंद करने का निर्देश दिया था. अभी हाल ही में एनजीटी ने वेदांता लिमिटेड के स्टरलाइट तांबा संयंत्र को स्थायी तौर पर बंद करने के तमिलनाडु सरकार के फैसले को रद्द कर दिया. उसने प्रदेश सरकार के फैसले को 'नहीं टिकने वाला' और 'अनुचित' करार दिया.


5. मराठा आंदोलन की आग के बाद मराठाओं को आरक्षण

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नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण की मांग को लेकर मराठा समुदाय के संगठनों ने महाराष्ट्र में कई बार आंदोलन किए. मराठाओं के सड़क पर उतरने के बाद सरकार ने महाराष्ट्र विधानसभा में मराठा आरक्षण बिल पास कर दिया. बिल के मुताबिक, राज्य में मराठाओं को 16% आरक्षण मिलेगा. राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग (एसबीसीसी) ने मराठा समुदाय को सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा करार दिया था. मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने 1 दिसंबर तक आरक्षण लागू करने के पहले ही संकेत दिए थे. बता दें कि प्रदर्शन के दौरान मराठा आंदोलनकारियों ने कई गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया. कई जगह लोगों ने चक्का जाम किया. कई इलाकों में प्रदर्शन हिंसक भी हो गया था. आरक्षण की मांग को लेकर एक युवक ने खुदकुशी भी कर ली थी. इसके बाद ही मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने आरक्षण की घोषणा की. 

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