देश में कोरोनावायरस का संकट लगातार बढ़ता जा रहा है. 25 मार्च से लागू लॉकडाउन के बाद भी देशभर में COVID-19 से संक्रमित लोगों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. बीते तीन दिन में ही कोरोना के 10,000 मामले दर्ज किए गए हैं. हालांकि अब तक कुल 15,267 लोग इससे ठीक भी हो चुके हैं. बता दें कि कोरोना संक्रमण के फैलाव को रोकने के लिए देशभर में तालाबंदी का तीसरा चरण जारी है, जो 17 मई तक लागू रहेगा. इन सब व्यवस्थाओं के बीच पूरी दुनिया में एक सवाल उठ रहा है कि क्या कोरोना संकट से बचने के लिए तालाबंदी ही एकमात्र विकल्प है, लेकिन स्वीडन ने इन सबसे अलग काम कर रास्ता दिखाया है.
स्वीडन ने ऐसा क्या किया कि WHO को कहना पड़ा कि इसकी रणनीति भविष्य का मॉडल हो सकती है. मात्र एक करोड़ की आबादी, लेकिन राजधानी स्टॉकहोम के कई इलाके बहुत भीड़भाड़ वाले हैं. फिर भी स्वीडन ने तालाबंदी का रास्ता नहीं चुना. देश के एपिडिमियोलजिस्ट एंडर्स तैनेल ने कहा था कि एक बार तालाबंदी में चले गए, तो बाहर आना मुश्किल होगा. तालाबंदी एक हास्यास्पद फैसला होगा. तब भी आप स्वीडन की उसके पड़ोसी देशों फिनलैंड, नार्वे, डेनमार्क से तुलना करें, तो उनका रिकॉर्ड भी अच्छा है. उन्होंने तालाबंदी की और अब वे बाहर भी निकल रहे हैं. तो हमारे सामने दो मॉडल हैं. इस इलाके में, जिन्हें नार्डिक देश कहा जाता है. एक देश है स्वीडन, जिसने तालाबंदी नहीं की और दूसरी तरफ कई पड़ोसी देशों ने तालाबंदी की. स्वीडन में केसों की संख्या कम नहीं है, फिर भी उसने ऐसा क्या किया कि उसके कदमों को मॉडल कहा जाए.
पहले लगा था कि स्वीडन का तरीका फेल हो गया. बुजुर्गों को बचाने में फेल रहा. लेकिन स्वीडन के एपिडिमियोलजिस्ट का कहना है कि उनका अप्रोच दूरगामी है. यह अप्रोच मानकर चलता है कि अगर कोविड-19 निकट भविष्य में नहीं खत्म हुआ, तो तालाबंदी ठीक नहीं होगी. असफल होगी ही. स्वीडन के भीतर भी इस मॉडल की आलोचना हुई. 22 हाईप्रोफाइल वैज्ञानिकों ने 14 अप्रैल को अखबारों में लिखा कि पब्लिक हेल्थ अथॉरिटी फेल हो गई है. यहां तक कि नोबेल फाउंडेशन के चेयरमैन सहित 2,000 रिसर्चरों ने 20 मार्च को सरकार से कहा था कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के हिसाब से कदम उठाएं. टेस्ट ज्यादा हों और लोगों का नजदीक आना सीमित किया जाए.
अब कहा जा रहा है कि आने वाले दिनों में स्वीडन में और सख्ती हो सकती है. इस मुद्दे पर स्वीडन के सबसे बड़े अस्पताल कैरिन्स्का यूनिवर्सिटी हास्पिटल में लंबे समय से काम करने वाले डॉ अनिल गुप्ता का कहना है कि टेस्टिंग उस समय के लिए सही है, जब हमारे पास काफी कम केस हों और महामारी की शुरुआत हुई हों. साथ ही, जब बीमारी अपने अंतिम चरण में होगी, तब भी टेस्टिंग उपयोगी हो सकती है, लेकिन बीच के चरण में आप जांच करवाकर भी बहुत कुछ नहीं कर सकते. स्वीडन ने अपने हालात के हिसाब से अनुमान लगा लिया था कि हर दिन हमारे यहां इतने नए केस आएंगे और हम इससे इस आधार पर निपट सकते हैं. चेक गणराज्य ने तालाबंदी की और अब वहां 8,000 से ज़्यादा केस हैं, और 270 लोग मरे हैं.
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