नारों से लोगों का पेट नहीं भरता : पढ़िए NDTV की कन्हैया से पूरी बातचीत

नारों से लोगों का पेट नहीं भरता : पढ़िए NDTV की कन्हैया से पूरी बातचीत

नई दिल्‍ली:

देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार होने के बाद कल (गुरुवार को) जमानत पर रिहा होकर जेएनयू वापस लौटे जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार ने NDTV से खास बातचीत में कहा कि '9 फरवरी का कार्यक्रम मैंने आयोजित नहीं किया था। देश‍विरोधी नारे लगे या नहीं लगे, इसके बारे में मुझे कुछ नहीं पता, क्योंकि मैं वहां मौजूद नहीं था।' पढ़िए रवीश कुमार और कन्हैया की पूरी बातचीत -

रवीशजवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रशासनिक सदन के पास गुरुवार की रात कन्हैया के भाषण के बाद काफी चर्चा है कन्हैया के भाषण को लेकर। काफी आलोचना भी है। ज़्यादा आलोचना हो तो वही बेहतर स्थिति है लेकिन इस भाषण के बाद लोगों की दिलचस्पी इस बात में बढ़ी है कि जेएनयू का एक छात्र जब वो बोल रहा था, जो जेएनयू की पारंपरिक शब्दावलियाँ हैं, जो उसके शब्द हैं, उन्हें आप अंग्रेजी में टर्मिनोलॉजी कहते हैं, उसको तोड़ कर वो जेएनयू के बाहर के लोगों को सम्बोधित कर रहा था। किसानों से बात कर रहा था, मज़दूरों से बात कर रहा था, उन माध्यम वर्ग से भी बात कर रहा था जिनका सपना है कि उन्हें एक अच्छी यूनिवर्सिटी मिले और पढ़ने-लिखने की जगह हो, व्यक्तित्व का विकास हो। साथ ही ये जो देश प्रेम, राष्ट्र प्रेम की जो बहस हुई है, वो इसका दूसरा महत्वपूर्ण पहलू है। कन्हैया कौन है, क्या चीज़ है जो किसी को कन्हैया बनाती है और वो क्या चीज़ है जो कन्हैया को कन्हैया से कुछ और चीज़ बना देता है। तो हम इन सब चीज़ों पर बात करेंगे। आज हमारे साथ कन्हैया खुद हैं। ये दूसरा दिन है। वो काला जैकेट नहीं है भाषण वाला और अच्छा बच्चा नहा-धो के आया हुआ है। शरीफ। वहां भी शरीफ ही लग रहे थे। 
 
कन्हैया : सबसे पहले तो मैं आपको शुक्रिया करना चाहता हूँ और आपके चैनल के माध्यम से वो सारे लोग जो जेएनयू के साथ खड़े हुए हैं, दरअसल वो जेएनयू के साथ नहीं खड़े हुए हैं, वो सही को सही और गलत को गलत कहने के साथ खड़े हुए हैं। उसमें इस देश के जो गरीब लोग हैं, जो किसान लोग हैं, जो पिछड़े हैं, जो दलित हैं, आदिवासी हैं, चाहे वो किसी भी लिंग के या जाति के हों, उनका एक समर्थन आया है इस आंदोलन में, इस संघर्ष में। चाहे वो वकील हों या सिविल सोसाइटी के लोग हों, प्रोफेसर हों या स्टूडेंट हों। हमारे कैंपस के जो कर्मचारी हैं , गार्ड हैं, टीचर हैं...हम सबको पहले बहुत बहुत धन्यवाद देना चाहते हैं। 
 
रवीश
: हम नहीं जानते कि क्या सही है और क्या गलत है क्योंकि ये अभी तय होना है। अभी तो बहस की शुरुआत हुई है। लेकिन कई लोग जानना चाहते हैं कि क्या गलत हुआ क्या सही हुआ ९ फरवरी की शाम को, उसके बारे में डिटेल बता सकते हैं क्या, क्या नारे लगे थे, कौन लोग लगाने वाले थे?
 
कन्हैया
: पहली बात तो मैं आपको स्पष्ट कर दूं कि मैं उस प्रोग्राम का organiser नहीं था। नारे लगे कि नहीं लगे, इसके बारे में मैं कुछ कह नहीं सकता क्योंकि मैं वहां मौजूद नहीं था और पुलिस ने मुझे गिरफ्तार किया इस बात को कहते हुए कि आपकी सहमति थी परोक्ष रूप से। 
 
रवीश : थी या नहीं थी? 
 
कन्हैया : कैसे हो सकती है? क्योंकि एक confusion है। पुलिस को लगता है कि हम प्रेजिडेंट हैं कैंपस के तो हमारी अनुमति से ही सब कुछ होता है। इसको एक उदाहरण से स्पष्ट करना चाहता हूँ। मैं कोई permitting authority नहीं हूँ। मेरी परमिशन से कैंपस में चीज़ें नहीं होती हैं और मुझे लगता है कि ये मेरे दायरे में भी नहीं है। 
 
रवीश : लोगों ने genuinely ये सवाल पूछा है कि अगर कन्हैया प्रेजिडेंट है तो उसे रोकना चाहिए अगर ऐसी गतिविधियाँ हो रही हैं तो। उसे यूनिवर्सिटी को बताना चाहिए था, उसे प्रयास करना चाहिए था। 
 

कन्हैया : देखिये, पहले तो इस बात को लेकर कि कोई कार्यक्रम होने वाला है, मैं इंफॉर्मेड नहीं था, पहली बात। दूसरी बात, अगर मुझे इंफोर्मेशन होता भी तो ये मेरे दायरे में नहीं है कि मैं किसी प्रोग्राम को रोक सकूँ। सिर्फ दायरे की बात नहीं है, ये मेरी समझदारी भी है। कैंपस के अंदर हर आदमी का जो यूनिवर्सिटी का स्टेकहोल्डर है, उसका अपना एक टास्क decide है। सिक्योरिटी गार्ड का काम है सुरक्षा को देखना, जंगल में जो नील गाय हैं, उनका काम है चरना, जो कुत्ते हैं उनका काम है भौंकना और मैं प्रेजिडेंट हूँ , student representative हूँ, स्टूडेंट की जो समस्याएं हैं...हॉस्टल का सवाल हो, फ़ेलोशिप का सवाल हो, किसी को कमरा नहीं मिल रहा हो, मैं उन चीज़ों को एड्रेस करता हूँ, ये मेरी ज़िम्मेवारी है। कार्यक्रम की अनुमति देना या रोकना...ये प्रशासन का काम है। 
 
रवीश : वो दायरा आप तय करलें कि क्या sub judice है क्योंकि मैं तो सवाल पूछूंगा ही, मैं चाहता नहीं कि आप उस दायरे को तोड़ें जो मामला अदालत में है लेकिन मैं जानना चाहता हूँ कि दो तरह के नारों की बात हो रही थी। एक भारत विरोधी नारों की बात हो रही थी और एक अफज़ल गुरु के समर्थन के नारे की बात हो रही थी। 
 
कन्हैया : देखिये, सबसे पहली बात तो ये है कि मुझे इस देश के संविधान में, न्यायिक प्रक्रिया में पूरी तरह से भरोसा है, इसलिए मामला sub judice है और मैं कुछ बोलूंगा नहीं। देश के माननीय गृहमंत्री अगर बोलने से मना करते हैं तो वो मामला sub judice होने की बात करते हैं अपने बचने के लिए। लेकिन मैं अगर कहता हूँ कि मामला sub judice है और मैं टिप्पणी नहीं करूँगा तो मैं अपने आप को बचाने के लिए करता हूँ। बचने के लिए नहीं। उसमें फर्क ये है कि गृहमंत्री साहब ने फ्रेम किया है। फ्रेम किया गया है सरकार के द्वारा कुछ विद्यार्थियों को। हम वो विद्यार्थी हैं जो न्यायिक प्रक्रिया पर भरोसा करके चाहते हैं कि वहां से एक परिणाम बाहर आये, इसलिए टिप्पणी नहीं कर रहे, इसलिए दोनों की टिप्पणी में फर्क है। 
 
रवीश : जो आम लोग हैं, वो विमर्श की इन बारीकियों में उनका वास्ता काम पड़ता है क्योंकि अपनी ज़िन्दगी के रोज़गार और तमाम चीज़ों में फंसे हुए हैं, उनको एक सूचना मिली कि इस तरह के नारे लगे और वो आहत हुए हैं। 
 

कन्हैया : रवीश जी आप बहुत अच्छे पत्रकार हैं और मैं आपको सुनता रहा हूँ, आप एक रिपोर्टर है...आपके जो सवाल हैं और मेरे जो जवाब हैं, वो एक विद्यार्थी का जो दर्द है, जो परेशानी है, उसका जो संघर्ष है उस लिहाज़ से दे रहा हूँ। आप पूछ रहे हैं कि आपको जनता को बताना है लेकिन सवाल अगर interrogation की तरह होगा कि आप जो अफज़ल गुरु के पक्ष में नारे लगे उसका समर्थन करते हैं क्या तो मेरा सीधा सीधा जवाब होगा नहीं। मैं समर्थन नहीं करता हूँ। लेकिन अगर नारे लगे हैं, अगर doctored video नहीं है तो मैं उसकी निंदा भी करता हूँ। लेकिन एक बात जो मैं आपके चैनल के माध्यम से बार-बार लोगों तक पहुँचाना चाहता हूँ कि नारा लगा है, गलत है, जिन्होंने लगाया उन पर कार्रवाई भी होनी चाहिए लेकिन ये मसला नारों का नहीं है। इससे ज़्यादा गंभीर विमर्श है जो इस देश के लोगों को, इस देश के विद्यार्थियों को, इस देश के नौजवानों को, किसानों को, मज़दूरों को करना चाहिए। ना नारों से देश का कुछ होता है और ना नारों से लोगों का पेट भरता है। नारे होते हैं किसी संघर्ष को किसी लड़ाई को आगे बढ़ाने के लिए और हमको लगता है कि इस देश के लिए सबसे बड़ा सवाल आज गरीबी है, भुखमरी है, किसानों की आत्महत्या है। इसलिए कोई नारा लग रहा है पक्ष में, मैं उसी नारे के पक्ष में खड़ा होऊंगा, अगर इसके अलावा कोई नारे लग रहे हैं, मुझे नहीं लगता कि इस देश के लिए मौजूदा परिस्थिति में उन नारों के साथ खड़ा होने का कोई मतलब है। 
 
रवीश : तो ये हुआ कैसे कि सारा मामला नारों से निकल कर जेएनयू के खिलाफ चला गया ?
 
कन्हैया : यही मैं कह रहा हूँ कि ये एक स्क्रिप्ट है जो 9 फरवरी से पहले तैयार की गयी। इसलिए मैंने कहा कि नारों की हिस्ट्री में थोड़ा जाते हैं। ये पहला प्रोग्राम नहीं जिसे रोका गया जेएनयू में। पहले 'मुज़्ज़फरनगर बाकी है', उसका स्क्रीनिंग होना था, उसे रोका गया।  उसी मुज़्ज़फरनगर की स्क्रीनिंग को रोकने के चक्कर में हैदराबाद में लड़ाई हुई और रोहित वेमुळे की हत्या हुई, institutional murder हुआ, वही कोशिश जेएनयू में भी किया गया। लेकिन जेएनयू में जो राइट विंग है, जो आरएसएस है, जो संघ के लोग हैं, जो जातिवादी लोग हैं, वो आइसोलेटेड फ़ोर्स हैं। इसलिए यहाँ उस कार्यक्रम को वो रोक नहीं पाये। लेकिन वो लगातार लगे हुए थे। हर मामले में वो हिन्दू मुस्लमान करना, ऊँच-नीच करना, हर मामले में लगे हुए थे। 
 
रवीश : ठीक है, मैं sub judice दायरे को समझता हूँ लेकिन जो अदालत के भीतर मारपीट हुई, क्या वो भी sub judice है? क्या उस पर बातचीत हो सकती है हमारी आपकी?
 
कन्हैया : देखिये, मैं उस घटना का एक विक्टिम हूँ। मामला sub judice है। वो जांच के दौर में है, उस पर टिप्पणी नहीं करेंगे लेकिन जिस इंसान को पीटा गया, वो तो कहेगा ही कि पीटा गया। और उसकी बहुत दर्दनाक याद मेरे जेहन में है। वो इस तौर पर है कि जिस तरह का lynching किया जा रहा है, ट्रैन के कम्पार्टमेंट में पूछा जाता है कि आप जेएनयू से हैं, उनको जिस तरीके से demoralize किया जाता है 
 
रवीश : आपने कहा कि जो पीटा गया, जो lynching हुई, आप कह रहे हैं कि जो पीटा गया वो तो कहेगा ही कहेगा। राजनीतिक गतिविधियों में पिटना-पिटाना होता रहता है। क्या ये वैसी कोई सामान्य घटना थी क्या?
 
कन्हैया : देखिये, मैं एक राजनीतिक कार्यकर्ता हूँ। तमाम चीज़ों को राजनीति के नज़रिये से देखता हूँ। लेकिन मुझे लगता है कि पटियाला हाई कोर्ट में जो हुआ, राजनीति तो थी ही थी, लेकिन साथ ही साथ एक बहुत ही खतरनाक ट्रेंड दिखा। वो ट्रेंड ये था कि हाथ में झंडा लेकर, संविधान की बात करते हुए, लोग संविधान की धज्जियाँ उड़ा रहे थे। अगर आप राजनीति करते हैं, चाहे वो राइट विंग की करें या लेफ्ट विंग की, और देश की बात करते हैं, इसका अपना एक constitution है, एक सिस्टम है, उसको नहीं ब्रेक करना चाहिए। हमको लगता है कि कुछ लोग सत्ता के नशे में मस्त होकर उसको तार-तार करने पर तुले हुए हैं। सवाल ये है कि मान लीजिये फांसी अफज़ल गुरु को सुप्रीम कोर्ट ने दिया, हम सुप्रीम कोर्ट का सम्मान करते हैं। जो निर्णय हुआ, उसका सम्मान करते हैं। जो लोग उस निर्णय के खिलाफ कुछ कहना चाहते हैं, बोलना चाहते हैं वो उनका अधिकार है। मगर वो उस दायरे को लांघते हैं तो वो गैर-कानूनी है। ये एक बात है। लेकिन उसी सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पटियाला हाई कोर्ट में जो 15 तारीख को घटना हुई उसकी पुर्नावृति नहीं होनी चाहिए। लेकिन उसी सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पटियाला हाई कोर्ट में जो 15 तारीख को घटना हुई उसकी पुर्नावृति नहीं होनी चाहिए। फिर वो 17 तारीख को होता है, तो इसका मतलब कुछ लोग अपने आप को स्वघोषित तरीके से खुद को देशभक्त कह रहे हैं, सुप्रीम कोर्ट की धज्जियाँ उड़ा रहे हैं और दूसरी तरफ कह रहे हैं कि ये हमारे न्यायालय का अपमान है। अब देखिये मेरे घर में मेरा भाई CRPF में था और वो मारा गया। उनका नाम पप्पू था। वो मारे गए।  और मज़ेदार बात ये है कि जो मुझे पूछा जाता है कि तुम नक्सली लोग हो, वो नक्सली हिंसा में ही मारा गया। लेकिन इस बात को कैसे मिला दिया जाता है। नक्सली हिंसा अपनी जगह पर गलत है, हम उसको समर्थन नहीं करते हैं। लेकिन किसी भोले-भाले आदिवासी को नक्सली बता कर मार देना, उसका भी समर्थन नहीं करते हैं। और ये लोग जो भोले-भाले आदिवासी को भी मारते हैं , नक्सली बता कर मारते हैं, आज जो लोग आदिवासियों के पक्ष में खड़े हो रहे हैं, उनको नक्सली बता कर के मार रहे हैं। ये बहुत खतरनाक ट्रेंड है इस देश के लिए। जो देश को लूटते हैं, वो छाती पीट कर देशभक्त होने का दावा करते हैं। जिनका इतिहास बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर ने कहा था कि जो अंग्रेज़ों से आज़ादी मिली है वो राजनितिक है आज़ादी है। मैं कहता हूँ बाबा साहब के शब्दों को आगे बढ़ाते हुए कि अंग्रेज़ों के चेले-चपाटों से जो आज़ादी मिलेगी वो सामजिक आज़ादी होगी और यही सामजिक आज़ादी इन भगवा वालों से हमें लेना है। 
 
रवीश : आप पर टैग लगा कि आप देशद्रोही हैं, इंग्लिश में भी टैग लगा कि एंटी-नेशनल हैं। अभी जब आप इस इंटरव्यू के लिए आ रहे थे तो आईने के सामने खड़े होंगे, हालाँकि अभी आप ज़मानत पर हैं, आपको लगा कि ये देशद्रोही, एंटी-नेशनल...
 
कन्हैया : देखिये, बस एक बात कहूँगा कि मैं कहूँगा कि अंग्रेज़ और अंग्रेज़ के चेले-चपाटे। sedition का कानून अंग्रेज़ों ने बनाया। उनके जो चेले-चपाटे हैं। वो इसका इस्तेमाल करते हैं। मैं भगत सिंह को और बाबा साहब अम्बेडकर को मानता हूँ। तो भगत सिंह जिस राज्य के खिलाफ लड़ रहे थे, उसका कानून था sedition का। भगत सिंह अपने देश के लिए लड़ रहे थे और जो इस देश को लूटना चाहते थे, गुलाम रखना चाहते थे, उसकी नज़र में वो देश के गद्दार थे। मुझे लगता है कि हमारा जो देश है वो देश प्रलक्षित होता है। उसका एक reflection है। हमारे देश की संविधान की प्रस्तावना में और हम चाहते हैं कि इस प्रस्तावना को अक्षरश ज़मीन पर उतारा जाये और जो लोग स्वघोषित देशभक्त बन रहे हैं, sedition का इस्तेमाल कर रहे हैं , किसान के बेटे को, जो किसान अन्न उपजाता है, उसे देशद्रोही बता रहे हैं, मतलब ये है कि पूरे मुद्दे को dilute कर रहे हैं। 
 
रवीश : तो जिस स्टेट से आप लड़ने की बात कर रहे हैं, आपने भगत सिंह का उदाहरण दिया, आपकी भी छोटी-मोटी लड़ाई हुई, पुलिस आई, आपको ले गयी तो आपने स्टेट को नज़दीक से देखा...ये सवाल मैं इसलिए पूछ रहा हूँ कि बहुत सारे नौजवान लड़के-लड़कियां, मैं उनसे पूछता हूँ कि आप राजनीति में क्यों नहीं आती हैं, तो कहती हैं कि बड़ा मुश्किल है स्टेट के पावर से लड़ना। तो मैं कन्हैया से जानना चाहता हूँ कि जब आप नज़दीक गए, क्या वो वाकई इतना भयावह है?
 
कन्हैया : देखिये, इसलिए मैंने दो उदाहरण दिए थे  कल अपने भाषण में कि जब स्टेट की हम बात करते हैं तो स्टेट शुरू होता है जो आपके घर के पास थाना की चौकी है, वहां खड़ा एक सिपाही जिसके हाथ में डंडा है, और वो जाता है देश के संसद तक। लेकिन इसमें एक केटेगरी है। उस केटेगरी को गर आप समझ जायेंगे तो स्टेट के खिलाफ आपको लड़ने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। स्टेट मशीनरी का इस्तेमाल, जो स्टेकहोल्डर हैं इस स्टेट के वाजिब में, उनके खिलाफ जो पूरे टूल का इस्तेमाल किया जाता है, आपकी लड़ाई सीधे सीधे उसके साथ हो जाएगी। फिर उसी संसद में संसद को bulldoz करने की बात नहीं होगी। फिर उसी संसद में जाकर के जो स्टेट मशीनरी का इस्तेमाल टूल की तरह कर रहे हैं, उनको वहां से निकाल कर के वहां बैठने की लड़ाई होगी। 
 
रवीश : पर जो लड़ाई लोग अब तक जानते हैं, उन्हें राजनीतिक पार्टी का अनुभव है, किसी राजनीतिक पार्टी के ज़रिये लड़ते हैं। कोई लोकप्रिय पार्टी है जो इस पार्टी को छोड़कर के उस पार्टी में लड़ते हैं। 69% के खेमे में कई पार्टियां दावेदार हैं, उन्हें मिलाया जा सकता है क्या ?
 
कन्हैया : 1947 में 15 अगस्त को देश को राजनीतिक आज़ादी मिली। उस वक़्त की जो कांग्रेस थी और 1885  में जो कांग्रेस बनी, तो उसमें फर्क था, तो जब देश की जनता बदलती है, उसके हिसाब से पार्टियां भी बदल जाती हैं, उसके मायने, उसका ideological articulation भी बदल जाता है। जब इस देश की जनता इस बात को समझ जाएगी कि हमारी लड़ाई स्टेट के अंदर किस फ़ोर्स के खिलाफ है तो पार्टियों को भी बदलना पड़ेगा। ये दायरा टूटेगा कि जो अपने आप को लेफ्ट कहते हैं वो सिर्फ वो नहीं हैं जो कम्युनिस्ट पार्टी का मेम्बरशिप लेते हैं। वो वो भी हैं जो आपकी तरह पत्रकारिता कर रहे हैं लेकिन वो किसी पार्टी का मेंबर नहीं है। उनको एक मंच पर आना पड़ेगा। इस देश के डेमोक्रेटिक वैल्यूज को बचाने के लिए। 
 
रवीश : मैं तो अपना काम नहीं छोड़ सकता इसलिए मैं तो मंच के नीचे ही रहूँगा। 
 

कन्हैया : किसी को भी अपना काम छोड़ने की ज़रूरत नहीं है। अपने काम को करने की ज़रूरत है उनके खिलाफ जो उनके काम को लूट रहे हैं। 
 
रवीश : आपको लगता है कि लेफ्ट को बदलने की ज़रूरत है इस वक़्त जो लेफ्ट की पार्टियां हैं, उनकी अपनी ज़बान से लेकर राजनीति करने के तौर-तरीके तक? उनमें भी वही आदतें आ गयी हैं, संघर्ष की आदतें चली गयी हैं। 
 
कन्हैया : देखिये, उनके कंटेंट पर कोई बात करने की ज़रूरत नहीं है। उनका कंटेंट शानदार है। फॉर्म में ज़रूर बदलाव की ज़रूरत है। मसलन, कल मैंने इस बात को कहा कि लेफ्ट के लोग बहुत अच्छी तरह से बात करते हैं, ईमानदार हैं, नेक हैं लेकिन उनका पहुँच नहीं है लोगो तक। क्योंकि आज पहुँच न्यू मीडिया बन चुकी है। न्यू मीडिया पर आरएसएस का साया है। अगर इस फॉर्म को हम बदलेंगे तो निश्चित तौर पर... 
 
रवीश
: आपको लगता है कि साइबर या न्यू मीडिया का जो स्पेस है, उसमें लेफ्ट का स्पेस बढ़ना चाहिए? वो रिसोर्स का मामला है ?
 
कन्हैया : रिसोर्स से ज़्यादा मैं आपको कहना चाहता हूँ साइंस के दो आस्पेक्ट होते हैं।  एक होता है philosophy of science, दूसरा होता है kinetic of science.. 
 
रवीश : ये पढ़ाईएगा तो लोग भाग जायेगा, बेगुसराय में भी लोग भाग जायेगा। 
 
कन्हैया : ये जो न्यू मीडिया है, इसको कोई monopolize कर ही नहीं सकता है।  इसका नेचर डेमोक्रेटिक है। तो जो भी लोग डेमोक्रेसी के पक्ष में खड़ा होना चाहते हैं, स्वाभाविक तौर पर ये उनका सबसे मज़बूत हथियार हो सकता है। आप ये बताइये कि आज जो फेसबुक है, उसपे अगर हम किसी चीज़ को organize तरीके से करेंगे, उसपे अगर कोई चीज़ चलेगा, तो मेनस्ट्रीम मीडिया को चलाना पड़ेगा.
 
रवीश :  आपको लगता है कि जो opposition की पार्टियां हैं या विचारधाराएं हैं, वो घबराती हैं या उनकी मौजूदगी नहीं है, इसलिए वॉकओवर मिल रहा है?
 
कन्हैया : निश्चित तौर पर। मैं बार-बार आपको कह रहा हूँ कि मैं इस लड़ाई को पार्टियों से ऊपर विचारधारा के तौर पर देखता हूँ। हमको लगता है कि इस देश को जो बचाने वाले लोग हैं, जो डेमोक्रेटिक क्रेडेंशियल है हमारी कंट्री का, जो हमारा संविधान है, जो हमारा institution है। democratic institution है, उसको जो बचाने वाले लोग हैं, जो हमारा रफ़ फैब्रिक है सोसाइटी का, उसको जो बचाने वाले लोग हैं, जो लोग गंगा-जमुना तहज़ीब की बात करते हैं, राम-राम और जय श्री राम के फर्क को समझ पाते हैं, उन तमाम लोगों को...उनका मेम्बरशिप किसी भी पार्टी में हो, उनको एकजुट होना होगा, एक मंच पर आना पड़ेगा और सबसे प्राइमरी तौर पर या जो ये न्यू मीडिया है इसका इस्तेमाल करके जो आम जनता का पोलिटिकल इमेजिनेशन है, उसे कैप्चर करना होगा। 
 
रवीश : मैं ये सब सवाल आपसे इसलिए पूछ रहा हूँ कि मैं अदालती बाध्यताओं को समझता हूँ लेकिन बहुत लोगों की दिलचस्पी इस बात में है कि क्या ये लड़का आगे जाकर नेता बन सकता है। क्या इसमें नेता बनने की क्वालिटी है। क्योंकि एक बात मुझे भी परेशान करती है कि जब मैं इस तरह के आंकड़े सुनता हूँ कि 35 साल का युवा इस देश में 65% हो गया है लेकिन राजनीतिक भागीदारी में वो 65% में नज़र नहीं आता है। शीर्ष नेतृत्व के सवाल में वो 5% में भी नहीं आता है। तो वो गायब है। मैं समझता हूँ कि वो कहाँ है अगर वो है राजनीति में तो, क्या वो सिर्फ उँगलियाँ दबाने जाता है, साइबर सेल का ही काम करता है या उसके लिए फैन बनना सबसे आसान है? तो इन्ही सभी सवालों के ज़रिये मैं कन्हैया को थोड़ा टटोल रहा हूँ कि ऐसे देश में जहाँ बहुत कम लोग राजनीति में आते हैं खासकर जो नौजवान होते हैं, ये ही रेश्यो आपको बीजेपी में भी मिलेगा, कांग्रेस में भी मिलेगा, बहुत कम लोग आते हैं। पारिवारिक समृद्धि वाले आ जाते हैं। हालाँकि उन पार्टियों में भी नेता दूर तक गए हैं, नीचे से ऊपर। लेकिन फिर भी वो भागीदारी कम नज़र आती है। आप इन सवालों के ज़रिये देखिये कि एक लड़का जो टकरा रहा है स्टेट से, वो इतना आसान नहीं है, वो लड़ाई अभी शुरू हुई है, वो 6 महीने की अंतरिम ज़मानत पर है, कितना लम्बी होगी, तब तक ये टेलीविज़न की स्क्रीन से गायब हो जायेगा, शायद अखबारों के फुटनोट में भी इसका ज़िक्र नहीं होगा। ये मैं आपको इसलिए बता रहा हूँ कन्हैया कि ये होता है। ये मैंने चंद्रशेखर के समय देखा था कि चंदू भी उतने ही लाजवाब नेता थे और उनकी जब हत्या हुई सीवान में तब हमने देखा था कि लोग ऐसे ही थे उबाल में, प्रदर्शन कर रहे थे, इन्साफ की लड़ाई लड़ रहे थे। लेकिन धीरे-धीरे देखा कि वो सब चला जाता है, अंत में लगता है कि छात्र राजनीति हार जाती है। तो कल जब मैं आपके भाषण को सुन रहा था तो मैं इस आशंका से भी डरा हुआ था कि ये किसी बड़ी हार से पहले की जीत सा लगने वाला कोई लम्हा है, या शायद जो पहले नहीं हुआ, वो हो सकता है। जेएनयू के छात्र संघ की बहुत सी लड़ाइयां हमने देखी हैं। लड़ते हैं, वहां तक पहुँचते हैं लेकिन वो बड़े बदलाव की तरफ नहीं कर पाते हैं। 
 
कन्हैया : देखिये, आपने बहुत अच्छा नाम लिया है। कल स्पीच में भी मैंने उनका नाम लिया था कामरेड चंदू का। वो ऑल इंडिया स्टूडेंट फेडरेशन के मेंबर थे। बस एक बात आपको बता कर... मैं भी AISF का मेंबर हूँ। AISF इस देश के अंदर आज़ादी की लड़ाई को लेकर लड़ा है। पहला छात्र संगठन है जो 1936 में बना। आज़ादी के आंदोलन के गर्भ से पैदा हुआ। मेरा मानना है कि इस तरह के संगठन जो अपने आप को छात्र राजनीति के लिए समर्पित कहते हैं, उनको किसी पार्टी विशेष का कैडर मशीन बनाने वाले प्लेटफार्म की बजाय जेन्युइन स्टूडेंट पॉलिटिक्स करना चाहिए। चंदू जो थे, उन्होंने छात्र आंदोलन को शुरू किया और वो छात्र आंदोलन को mass के बीच ले गए। मैं इसको थोड़ा क्लियर कर देता हूँ, जो स्टूडेंट पॉलिटिक्स में है वो ज़रूरी नहीं कि mass politics में सीधे तौर पर जाये। क्या पता आपकी तरह पत्रकार बन जाये। लेकिन वो उसी mass politics को अपनी पत्रकारिता से करे। हो सकता है कि कोई इंजीनियर बन जाये और वो कंपनी की मोनोपोली को ब्रेक करे as an engineer, अगर कोई डॉक्टर बन जाये जो स्टूडेंट पॉलिटिक्स से जुड़ा है, वो जो आज दवाइयों पर पेटेंट की बड़ी लड़ाई चल रही है, उसके लिए डॉक्टर खड़ा हो जाये, मतलब जो स्टूडेंट पॉलिटिक्स की पैदावार है, वो mass movement की ओर जा सकता है.
 
रवीश : ये आदर्श रूप में बातें सही हो सकती हैं क्योंकि चंदू का सीवान में जाना कि हम ज़मीन पर राजनीती करेंगे, जेएनयू के हॉस्टल के कमरों से निकलेंगे। कई बार लगता है कि आप सीधा जाकर ऐसे चक्रव्यूह में फंस जाते हैं कि एक प्रतिभा ख़त्म हो जाती है। ये मैं इसलिए भी पूछ रहा हूँ रोहित वेमुळे के लिए। मैं उसे नहीं जानता था। जब मैं चिट्ठियां पढ़ रहा था तब मुझे इस बात का ज़्यादा अफ़सोस है कि एक बेहद प्रतिभाशाली इंसान चला गया। जो राजनीति के बहुत अंतरविरोधों से निकल कर के सोच पा रहा था। तो ऐसा लड़का बचा रह जाता तो कितनी बड़ी बात होती। इसलिए मैं स्ट्रेटेजी के सवाल पर पूछ रहा हूँ कि क्या आप इसको लेकर सतर्क हैं क्या? आज तो नारा लग गया, कल जब हम सब लोग नहीं होंगे तो क्या होगा। 
 
कन्हैया : बहुत अच्छा सवाल पूछा है आपने। देखिये, स्ट्रेटेजी का जो सवाल आपने उठाया है वो सबसे महत्वपूर्ण सवाल है। किसी भी विचारधारा को अगर आप strategised नहीं करते हैं, प्लानिंग नहीं करते हैं तो वो विचारधारा ख़त्म हो जाती है। विचारधारा को हमें प्लान करके, स्ट्रेटेजी बनाकर के ज़मीन पर उतारना होगा। हम लोग कहते हैं कि हमारे साथ 10 लोग चल कर के हमारी सुरक्षा नहीं करेंगे। जो बस में बैठे लोग हैं, उनके साथ ही हम संवाद करेंगे। 
 
रवीश : कैसे करेंगे?
 
कन्हैया : वही मैं आपको कह रहा हूँ। पहली बात जो अलग अलग पार्टी के अंदर एक ब्यूरोक्रेटिक स्ट्रक्चर है, उसको ब्रेक करके हमको एक ideological united  front बनाना होगा। ये पहली स्ट्रेटेजी होनी चाहिए। दूसरा, इसको करने के लिए जो न्यू मीडिया है, उसको as a tool इस्तेमाल करना पड़ेगा। 
 
रवीश : तो टेलीविज़न वाली मीडिया से कोई उम्मीद नहीं है आपको। 
 
कन्हैया : बिलकुल है। तीसरा, जो राजनीति है, उसमें पार्टी का गुना गणित पीछे रखना होगा, विचारधारा को ऊपर रखना होगा। इसके लिए सिंपल स्ट्रेटेजी है हमारे पास जो मैं जेएनयू में भी करता हूँ, मुझे लगता है कि इस देश के अंदर जो mass movement खड़ा करना चाहता है, वो अपने लेवल पर करते हैं। maximum unity बनाने का प्रयास मत कीजिये। ये बहुत difficult होता है। minimum unity बनाइये। रवीश जी अच्छा कोट पहने हैं, इसका criticism करने की ज़रूरत नहीं है। रवीश जी की पत्रकारिता में क्या कंटेंट है, इसको बोलने की ज़रूरत है। उनके कोट को criticism का हिस्सा मत बनाइये। उसके कंटेंट पर आप अगर unity बना सकते हैं तो आप मोदी के कोट को challenge कर सकते हैं। ये हमारी स्ट्रेटेजी का प्रमुख हिस्सा होना चाहिए। इस पर हम चलेंगे तो अपने ideology को आगे रख पाएंगे। और इस देश के अंदर जो राजनीतिक आज़ादी मिली है, उसे सामाजिक आज़ादी में बदल पाएंगे। 
 
रवीश : यह बड़ा दिलचस्प मोड़ है कि जिस व्यक्ति पर देशद्रोह का आरोप लगा है उसी की वजह से मौका मिला है। ये आप देखिएगा कि इसके जवाबों से गुजरते हुए कि एक ऐसे समय में जब हम सब पार्टियों के खांचों से बाहर नहीं सोच पाते.. आप भी नहीं और हम भी नहीं.. स्वीकार करना चाहिए। हम सबको लगता है कि एक वक्त में पार्टी ये ठीक है, एक वक्त में ये ठीक है। कन्हैया क्या कह रहा है, वो कह रहा है कि नौकरशाही के ढांचे को तोड़ना होगा।  सफल होगा कि नहीं होगा लेकिन ये बात कम से कम सुनकर नई लगती है। ये अगर 300 साल पहले कही गई होगी या 1800 की क्रांति में कही गई होगी या 1968 की क्रांति में कही गई होगी.. कही गई होगी.. लेकिन ये बात नई है क्योंकि पार्टी के भीतर के तो लोकतंत्र को हम पूछते ही नहीं हैं। कौन कब किसकी पसंद से आकर ऊपर बैठ जाता है। चुनाव भी नकली तरीके से होते हैं। इसलिए ये होता है कि गरीबों के जो सवाल हैं वो सब पीछे रह जाते हैं। वो फिर पीछे रह जाएंगे जब कन्हैया जेएनयू से गायब हो जाएगा। वो सब पीछे चला जाएगा लेकिन जो बात कह रहा है वो नई है कि वो एक विचारधारा जो गरीब है, पिछड़ा है और आदिवासी है उसको यूनाइट होना पड़ेगा। मिनिमम यूनिटी की बात है। लेकिन कई लोगों को ऐसा लगता है कि इस बातचीत में उमर, अनिर्बान और आशुतोष एक नारा लगा रहे थे और मैं वायर पर गिलानी साहब की बेटी का इंटरव्यू पढ़ रहा था जिसमें वो कह रही हैं कि आई स्टैंड विद जेएनयू। तो बहुत तरह के आरोप हैं सब पर.. अलग-अलग तरह के। क्या वो सब आपकी स्ट्रैटेजी का हिस्सा रहे हैं..
 
कन्हैया
: देखिए सबसे पहली बात है कि फिर ये मामला सबज्यूडिस होने की बात है।  टिप्पणी नहीं करने की बात है फिर भी इस पर मैं आपको एक बात स्पष्ट तौर पर कहना चाहूंगा कि मेरा मानना है कि अभी हम जिस टाइम में हैं, फर्ज़ी राष्ट्रवाद पर डिबेट नहीं होनी चाहिए। फर्ज़ी राष्ट्रवाद इसलिए कह रहा हूं कि एक तरफ हमारी सरकार दुनिया में भूमंडलीकरण की बात कर रही है। नेशन स्टेट, राज्य का जो कॉन्सेप्ट है, राष्ट्र राज्य को खुद ही आर्थिक तरीके से तोड़ रही है। सीमाओं को खत्म कर रही है, सिंगल विंडो सिस्टम ला रही है। अमेरिका का ठंडा मतलब कोका कोला इंडिया के गांव-गांव में बिक रहा है। तो एक तरफ तो वो इकोनॉमी के बाउंडेशन के चलते वो तोड़कर नेशन बाउंड्री को ब्रेक कर रहा है। दूसरी तरफ फर्ज़ी राष्ट्रवाद दिखा रहा है। ये अपने आप में इतना कॉन्ट्राडिक्टरी है कि आप इसमें एक धक्का देंगे ये स्ट्रक्चर पूरा गिर जाएगा। बुनियादी सवाल को सामने लेकर जब आप आएंगे।
 
रवीश : तो यही बुनियादी सवाल उनके मंच से उठता है कि जब नेता कहता है कि मैं गरीब घर से आया हूं जैसे आप कहते हैं...
 
कन्हैया : वो नहीं बोलेंगे। मैं आपको जवाब देता हूं। वो ना बोलते हैं औऱ ना बोल सकते हैं। उशी फर्क को लोगों के बीच में ले जाने की ज़रूरत है। एक बुनियादी सवाल हम पूछना चाहते हैं.. उठाना चाहते हैं आपके माध्यम से देश की जनता के समक्ष। हमारा वोट, आपका वोट, माननीय अनिल अंबानी जी का वोट बराबर है लेकिन आपका बेटा, मेरा होनेवाला बच्चा और अनिल अंबानी का बेटा एक स्कूल में क्यों नहीं पढ़ते हैं? इस सवाल पर लाते हैं और एक मिनिमम यूनिटी बनाते हैं.. फिर एक्सपोज हो जाएगा। जो मोनोपोली के साथ खड़ा है और जो छोटे ऑन्त्रेप्रेन्योर के साथ... वो जो उस दायरे को आप बडा बनाए हैं...
 
रवीश - इस तरह की बातें कम्युनिस्ट आंदोलन में चलती है और फिर वो सब जगह फेल हो गया। असफल विचारधारा की बात करते हैं। जो लोग टीवी देखते हैं और ऐसा सोचते हैं उनको भी मौका देना चाहिए कि वो सही सोचते हैं अपनी तरह से.. कि अरविंद केजरीवाल ने भी कहा था कि हम सारे स्कूलों को बेहतर कर देंगे कि सब बच्चे पढ़ेंगे एक साथ। सुनने में अच्छा लगता है लेकिन ये हुआ नहीं कही पर और हो नहीं पाता है। अगर बीजेपी का यहां कोई नेता होता तो कहता कि आपने बंगाल में 30 साल में कौन सा सब स्कूलों का एक ही तरह का स्ट्रक्चर बना दिया..
 
कन्हैया - जब भी मैं मार्क्सवाद के और ज़्यादा करीब होता हूं तो मुझे ये बात और स्पष्ट तरीके से समझ आती है। हम चीज़ों को थोड़ा एब्सल्यूट और ब्लैक एंड व्हाइट बना देते हैं। जैसे हमको लग रहा है कि दिन है.. आप और मैं बैठे हुए हैं और लग रहा है कि दिन है.. लेकिन दिन है और वो दिन नहीं है जो पांच मिनट पहले था, ये बदल रहा है। आपको फर्क करना है।
 
रवीश - बदलनेवालों की ताकत है कि इस तरह के कई औऱ दिनों की रचना कर देते हैं। हम टीवी वाले जानते हैं कि हम आज आपके आसपास खड़े हैं..
 
कन्हैया : नहीं, राजनीति बदल रही है। मैं कह रहा हूं। मैं राजनीति के कॉन्टेक्स्ट में बदलाव की बात कर रहा हूं कि जनसंघ और बीजेपी में एक बदलाव है। छोड़ दीजिए लेफ्ट की बात औऱ कांग्रेस की बात.. मैं राइट विंग की बात कर रहा हूं। जब जनसंघ ने अपनी धाराओं में लिखा था कि मुसलमान मेंबर नहीं हो सकता। बीजेपी को ये क्लॉज़ हटाना पड़ा। अब ये कितना लागू ये नहीं जानते। आरएसएस के प्रमुख कभी भी नीची जाति के लोग नहीं बनते थे, अब वहां भी उसको बनाने की बात हो रही है, मेरी बात समझिए। जब खुद आरएसएस के अंदर एक वैचारिक बदलाव हो रहा है तो क्या ये वैचारिक बदलाव लेफ्ट और कांग्रेस के अंदर नहीं हो रहा होगा। मेरी बात समझिए निश्चित तौर पर हो रहा होगा। हम उस बदलाव को नहीं देख पा रहे हैं और उस एनर्जी को चैनेलाइज नहीं कर पा रहे। उस को अगर हम चैनेलाइज़ करेंगे तो मैं आपको कहता हूं कि आप अरविंद केजरीवाल में,कांग्रेस में, कम्युनिस्ट पार्टी में और बीजेपी में फर्क कर पाएंगे। आप सबको एक ब्रश से मत रंगिए। अगर आप उसको फिर कर पाएंगे.. फिर आप मिनिमम युनिटी भी बना पाएंगे।
 
रवीश - अरविंद केजरीवाल ने कल आपके भाषण पर तुरंत ट्वीट किया कि शानदार स्पीच था। राहुल गांधी आए, सीताराम येचुरी आए, और भी दलों के लोग आए होंगे.. डी राजा साहब आए.. तो अरविंद केजरीवाल औऱ कांग्रेस दोनों एक दूसरे के खिलाफ हैं क्या इन सब के बीच मे कोई मिनिमम युनिटी बन सकती है?
 
कन्हैया
: एक बात बताइए रवीश जी, मैं गरीब का बेटा हूं। मेरी मां आंगनबाड़ी चलाती है। क्या मेरे पास पैसा होगा कि मैं पीआए एजेंसी को हायर कर सकूं? ये युनिटी अपने आप बनेगी मैं ये कह रहा हूं। हमारे या आपके चाहने से समाज नहीं चलता है। समाज के अपने गति के नियम होते हैं। उस नियम से समाज चलता है और इस गति के नियम ने इस देश की जनता को बाध्य किया है कि एक स्टूडेंट पर अगर सेडीशन लगा है तो बड़े-बड़े वकील बिना फीस के हमारे लिए लड़ने आए। फीस मैं नहीं दे सकता हूं, मैं गरीब आदमी हूं। और अरविंद केजरीवाल से मैं कभी नहीं मिला हूं। वो अगर आए हैं तो इस बात को समझ रहे हैं कि लड़ाई ये किसके खिलाफ है। लड़ाई आज इस देश में आरएसएस के खिलाफ है। जो एंटी आरएसएस लोग हैं वो अनायास एक मंच पर आए हैं। इसको अगर औऱ ऑर्गनाइज़्ड तरीके से करेंगे तो और बेहतर हो सकता है।
 
रवीश - कभी आपको लगा था कि राहुल गांधी आ जाएंगे, अरविंद केजरीवाल आ जाएंगे आप लोग के आंदोलन में..
 
कन्हैया : निश्चित तौर पर आएंगे। आना ही होगा। जो इस देश से प्यार करते हैं सच में उन्हें इस देश को बचाने की लड़ाई में, जेएनयू को बचाने की लड़ाई में आना होगा, और वो आएंगे.. और लोग भी आएंगे।
 
रवीश - बहुत लोग जानना चाहते हैं कि कन्हैया कौन है? हम तो जानते हैं कि आप जेएनयूएसयू के प्रेसिडेंट हैं लेकिन कहां से आपकी पढ़ाई की यात्रा शुरू हुई.. इसके बारे में आप बताना चाहेंगे ..
 
कन्हैया : मेरी पढाई-लिखाई दसवीं तक गांव में हुई। उसके बाद मैं पटना आ गया। वहां से बीए और एमए किया।
 
रवीश - किस विषय में?
 
कन्हैया : मेरे बीए में तीन सब्जेक्ट थे.. ज्योग्राफी, सोशियोलॉजी और हिस्ट्री। उसके बाद मैंने सोशियोलॉजी से एमए किया और फिर यहां सेंट्रल ऑफ अफ्रीकन स्टडी में सोशल ट्रांसफॉरमेशन के ऊपर एम फिल किया और अब सोशल ट्रांसफॉरमेशन के ऊपर ही पीएचडी कर रहा हूं।
 
रवीश - भारत में ?
 
कन्हैया : नहीं, अफ्रीका में। सोशल ट्रांसफॉरमेशन के ऊपर ही पीएचडी कर रहा हूं। इसीलिए सोशल ट्रांसफॉरमेशन को पढ़ते-पढ़ते सोसायटी को ट्रांसफॉर्म करने का आइडिया...
 
रवीश - गांधी तो अफ्रीका को अफ्रीका जा कर ही समझे लेकिन आप यहीं से..
 
कन्हैया : देखिए हमारे यहां तो अच्छी बात है ना, हमारे यहां भगत सिंह हैं, हमारे पास बाबासाहेब भीमराव अंबडेकर हैं, गांधी हैं, नेहरू हैं, फुले हैं, पेरियार हैं। ये सारे लोग हमारे पास हैं और ये सारे वो सोशल रिफॉर्मर थे जो साम्राज्यवाद के खिलाफ, जो औपनिवेशिक देश था उसके अंदर जो अंतर्विरोध थे, उसने उन्होंने समझा। अगर उन विचारधाराओं को आज की राजनीति में लोगों के बीच ले जाया जाए तो इस देश में सामाजिक क्रांति संभव है।
 
रवीश - कल जब मैं बात कर रहा था तो कई दोस्त आपके कह रहे थे कि आप जब प्रेसिंडेशियल भाषण दे रहे थे तो खटमल पर आपने कुछ कह दिया था लोग उससे काफी प्रभावित हो गए थे।
 
कन्हैया : देखिए बात यही है कि मैं बार-बार एक फर्क करने की कोशिश कर रहा हूं.. राइट विंग पॉलिटिक्स और लेफ्ट विंग पॉलिटिक्स। लेफ्ट विंग के जो लोग हैं उन्हें हमेशा खटमल के सवाल को नवउदारवाद के साथ बहुत ही सैरकास्टिक और इंटरेस्टिंग ह्यूमरस तरीके से रिलेट करना पड़ेगा क्योंकि राइट विंग जो होता है वो चीज़ों को हमेशा इश्यू पर फिक्स करना चाहता है। आपको चीज़ों को हमेशा आइडियोलॉजी में फिक्स करना पड़ेगा। हमारे कैंपस में अगर खटमल है तो वो भी इस व्यवस्था की पैदाइश है। मैं ये कहना चाहता हूं कि अगर कोई चोर बन रहा है तो चोर उसको समाज बना रहा है। ये बात लोगों को समझानी पड़ती है कि ये उसके भाग्य का दोष नहीं है।
 
रवीश - आपको डर लगा क्या जब थाना, पुलिस ये चक्कर हुआ। बहुत सारे लोग इस डर से राजनीति से चले जाते हैं, मैं ऐसे लोगों के लिए पूछ रहा हूं?
 
कन्हैया : देखिए डरने की जो बात है मैं बहुत ही स्पष्ट तौर पर आपको कह दूं कि जब तक आप डरेंगे नहीं तब तक आप लड़ेंगे नहीं। मुझे इस देश में सच में आरएसएस से डर लगा और उसी डर के चलते मैं उससे लड़ने लगा। और जितना वो डराता है मेरी लड़ाई उतनी ही तेज हो जाती है। तो पुलिस से भी डर लगा। पुलिस के साथ जब मैं खड़ा हो गया तो उससे भी अब अच्छी दोस्ती हो गई।
 
रवीश - पुलिस से भी दोस्ती हो गई..अच्छा है.. तो आपके सामने कन्हैया कुमार जो जेएनयूएसयू के प्रेसिडेंट हैं, आरोपी हैं, देशद्रोह का आरोप लगा है, सीडिशन का आरोप लगा है...
 
कन्हैया : देखिए जानना ज़रूरी है। कल मैं बाउल ठीक से बोल नहीं पाया। मुझे अंग्रेज़ी नहीं आती। फिर मैंने कहा कटोरी। मुझे अनायास ही हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी की याद आ गई। माननीय प्रधानमंत्री कल कह रहे थे लोकसभा में कि कुछ लोगों को इन्फ्रीरियटी कॉम्प्लेक्स है..तो मुझे अपनी बात याद आई। मुझे अंग्रेज़ी नहीं आती, मैं जानना चाहता हूं। मुझे लगता है कि अंग्रेज़ी बस एक भाषा है, जैसे हिंदी, तमिल भाषा हैं, बस। वो ज्ञानी होने का , एलीट होने का कोई पैमाना नहीं है.. लेकिन इनफीरियरटी कॉम्प्लेक्स है.. ये जो लोग हैं इनफीरियरटी कॉम्प्लेक्स को छिपाते हैं, फिर ऐसे बोलते हैं- हिंदी, हिंदू, हिंदुस्तानी। नहीं आता तो सीखना चाहिए। ये देशद्रोही बोलें या एंटी नेशनल बोलें.. मुझे सुनाई वो देशभक्त ही देता है।
 
रवीश
- अच्छा आपको सुनाई देशभक्त ही देता है। मैं उनसे कह देता हूं कि वो आपको देशभक्त बोलें ताकि आपको सुनाई देशद्रोही दे।
 
कन्हैया : ऐसा शायद नहीं होगा क्यों कि मैंने कल कहा था ये झूठ को ही झूठ बना सकते हैं।
 
रवीश - ये बहुत तर्क चल रहा है कि सीमा पर जवान शहीद हो रहे हैं और आप इस तरह से मिनिमम यूनिटी जैसी अय्य़ाशी जैसी बात कर रहे हैं। सब आप पढ़े लिखे लोग हैं, आप ऐसी बातें क्यों कर रहे हैं? ये चल रहा है, खथरनाक सा सवाल है और कई बार तो लगता है इसका जवाब ही नहीं होता है। आपने कहा था आपके भाई की शहादत हई थी सीआरपीएफ में थे, नक्सलियों से लड़ते हुए। कभी आपको लगा कि आप उनकी शहादत को कमतर कर रहे हैं..
 
कन्हैया : रवीश जी, हम किसी की शहादत को कमतर नहीं करना चाहते। हमारी तो लड़ाई ही यही है कि सारे शहीदों को शहादत का दर्जा देना चाहिए औऱ जो इन्हें शहीद बना रहे हैं  उनके खिलाफ जंग छेड़ी जाए। मैं कहता हूं कि जन्हें नक्सली बताकर मारा जा रहा है वो भी शहीद हैं, आदिवासी हैं। जो तथाकथित नक्सली हिंसा मे शहीद हो रहा है वो भी उनके जैसा गरीब का बेटा है। जो लोग इस देश में अनाज उपजा रहे हैं.. मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे-मोती... वो किसान जो मर रहे हैं वो भी इस देश के शहीद हैं, और जो सीमा पर लोग मर रहे हैं वो भी शहीद हैं। इन सारे शहीदों को एकजुट होना है। ये सारे परिवार जो हैं इनके परिवार को शहीद के परिवार का दर्जा मिलना चाहिए। और ये सारे शहीद जब रोड़ पर निकलेंगे एक साथ, जय जवान-जय किसान, मजदूर, आदिवासी, किसान का बेटा.. ये सब जब एक साथ होगा, तभी वो लोग जो इनको शहीद बना रहे हैं उनकी राजनीति को एक्सपोज किया जाएगा कि लड़ाई होती क्यों है... लड़वाते कौन हैं..
 
रवीश - तो इसके बाद आप जेएनयू से बाहर भी सभाएं करेंगे.. बेगूसराय जाएंगे..
 
कन्हैया : देखिए जो क्रिटिसिज़्म मैं खुद ही एक्सेप्ट कर रहा हूं कि विद्यार्थियों का काम सिर्फ पढ़ाई करना नहीं है । जो सीखे समझे हैं उसको समाज मे वापस भी करना है, चाहे आपका जो भी प्रोफेशन हो। मेरा प्रोफेशन ऑब्वियसली टीचर के रूप में होगा तो मैं चाहूंगा कि मैं जनता से संवाद करूं। उनके बीच चीज़ों को लेकर जाऊं। और जितना भी जिस हद तक मैं कर पाऊंगा इस लड़ाई को लड़ूंगा।
 
रवीश - आत्मकथा भी लिखनेवाले हैं। सुना है कि जेल डायरी या किताब लिखनेवाले हैं?
 
कन्हैया : हां, पहले कभी सोचा नहीं था कि मेरे जैसा लिख पाएगा लेकिन इस बार जितने अनुभव हुए हैं मुझे लगता है लिखना चाहिए।
 
रवीश - तो किताब लिखना चाहते हैं।
 
कन्हैया : निश्चित रूप से।
 
रवीश - बहुत बहुत शुक्रिया कन्हैया हमसे बात करने के लिए। मेरा मकसद सिर्फ इतना जानना था कि ये जो एक लड़का है, बच्चा नहीं छात्र, रिसर्च स्कॉलर है, वो जिस राजनीतिक प्रक्रिया से गुज़र रहा है और आज की राजनीति में हस्तक्षेप करता हुआ लग रहा है। पता नहीं कि इस उत्साह को इस जोश को कितना आगे ले जा पाएगा या जिस राजनीतिक ब्यूरोक्रेटिक स्ट्रकचर को ये ढहा लेने की बात करता है वो लोग इसको किस तरह से निगल जाएंगे, ये भी एक खतरा होता है। कई राजनीति में उभरते सितारे जो उम्मीद जगाते हैं, कभी-कभी लम्बी दूरी तय नहीं कर पाते, बहुत सारे लोग चल कर आगे पहुंचते हैं। इसके सवालों से आप इसको एसेस कीजिए। बुरा लगे तो ज़रूर बुरा कहिए, अच्छा लगता है तो ज़रूर अच्छा कहिए, आपकी राय है। राजनीति पर ये किस तरह से सोच रहा है औऱ किस तरह की प्रक्रिया से गुजर रहा है और क्या बोल रहा है ये एक महत्वरपूर्ण बात है। इस इंटरव्यू से अगर आपको इसमें मदद मिलती है तो मैं समझूंगा कि कुछ ठीक हुआ, नहीं तो अदालत का जब फैसला आएगा तब आप कहिएगा कि क्या ठीक हुआ। 

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