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This Article is From Jun 13, 2015

'वन रैंक-वन पेंशन' के समर्थन में जंतर-मंतर पर आज प्रदर्शन करेंगे पूर्व सैनिक

'वन रैंक-वन पेंशन' के समर्थन में जंतर-मंतर पर आज प्रदर्शन करेंगे पूर्व सैनिक
पूर्व सैनिकों का एक समूह प्रदर्शन करते हुए (फाइल फोटो)
नई दिल्ली: वन रैंक वन पेंशन के मुद्दे पर रविवार से जंतर-मंतर पूर्व सैनिक आंदोलन करेंगे। रविवार से सुबह साढ़े दस से पूर्व सैनिक धरना और प्रदर्शन की शुरुआत करेंगे। ऐसी भी संभावना है कि रविवार को ही सैनिक राष्ट्रपति से मिलकर उन्हें अपना मेडल वापस करेंगे।

इसके बाद सोमवार से ये भूख हड़ताल पर बैठेंगे। इससे पहले 10 दिनों के भीतर सेना प्रमुख जनरल दलबीर सिंह, रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर, वित्तमंत्री अरुण जेटली से इसी मुद्दे पर पूर्व सैनिक मिल चुके है, लेकिन कुछ बात नही बनी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कह चुके हैं कि ये एक जटिल मुद्दा है और सबसे बात करके सरकार इसे लागू करेगी। देशभर में करीब 25 लाख पूर्व सैनिक है।

एक खुले पत्र में पूर्व सैनिकों ने मांग की कि योजना के कार्यान्वयन के लिए एक निश्चित तारीख घोषित की जानी चाहिए। यह पत्र पूर्व सेनाकर्मियों के एक अन्य समूह द्वारा मुद्दे पर रविवार को की जाने वाली रैली से पहले आया है। अखिल भारतीय पूर्व सैनिक सेवा परिषद ने कहा कि वन रैंक, वन पेंशन एक ज्वलंत और भावनात्मक मुद्दा है।


गौर करने की बात यह है कि रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर और सेना प्रमुख दलबीर सिंह सुहाग और यहां तक की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद मन की बात कार्यक्रम में वन रैंक न पेंशन पर अपनी सहमति जताई थी। लेकिन, पीएम ने इस मु्द्दे की जटिलता को समाप्त करने के लिए कुछ वक्त मांगा था।

उल्लेखनीय है कि यह मुद्दा बीजेपी का चुनावी घोषणापत्र का हिस्सा भी रहा और अब सरकार को बने एक साल से भी ज्यादा समय बीत चुका है और कुछ नहीं होने पर पूर्व सैनिक बेचैन होते जा रहे हैं। पूर्व सैनिकों की इस मांग का समर्थन कांग्रेस पार्टी के उपाध्यक्ष राहुल गांधी भी कर चुके हैं और वह इन सैनिकों से मिल भी चुके हैं। करीब 33 सालों से पूर्व सैनिकों की यह मांग और इसके समर्थन में आंदोलन जारी है।

बता दें कि दूसरे कार्यकाल में यूपीए सरकार ने अंतिम दिनों में इस मांग को मान लिया था और 500 करोड़ रुपये इसके लिए स्वीकृत किए थे। वहीं नई सरकार ने जब इस आ रहे खर्च का ब्यौरा निकाला तो यह आंकड़ा करीब 8300 करोड़ रुपये पर चला गया। सरकार की सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि यदि पूर्व सेना की यह मांग मान ली गई तो अर्द्धसैनिक बलों की ऐसी ही मांग भी पूरी करनी होगी।

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