बेंगलुरु:
पूर्वी बेंगलुरु का बंसवाड़ी इलाक़ा जहां सरकार ने पहले प्लॉट्स बेचे और अब तीन दशकों के बाद इसे अतिक्रमण करार देकर खाली करने का आदेश दे दिया।
बंसवाड़ी का यह इलाक़ा, जहां हर तरफ मायूसी और दहशत लोगों के चेहरे पर देखी जा सकती है। वजह है, अवैध निर्माण को हटाने के लिए चलाया जा रहा ख़ास अभियान।
बंसवाड़ी मेन रोड पर बनी कई इमारतें ढहा दी गई हैं। तक़रीबन तीन दशकों के बाद अब सरकार को लग रहा है कि ये सभी स्थानीय झील पर किया गया अतिक्रमण है।
हद तो तब हो गई, जब राजस्व विभाग की तरफ से वहां रह रहे घर के मालिकों को भी घर खाली करने का नोटिस दिया गया, जिन्होंने बैंगलोर विकास प्राधिकरण यानी (बीडीए) से ज़मीन ख़रीद कर उसपर मकान बनवाया था। नोटिस में कहा गया है कि वह या तो ज़मीन खली कर दें वरना उनके खिलाफ आपराधिक मुक़दमा दर्ज किया जाएगा।
85 साल के संतोष पाण्डेय बीडीए के इसी लेआउट में रिटायरमेंट के बाद पिछले 25 साल से रह रहे हैं। उनका कहना है कि गलती सरकार की है और खामियाज़ा उन्हें भुगतना पड़ेगा। इन लोगों ने अपने हक़ की लड़ाई के लिए एक संघ बनाया है, जिसके अध्यक्ष डी. एस राजशेखर का कहना है कि सभी ने क़ानूनी प्रक्रिया के तहत प्लॉट बीडीए से खरीदा था, लेकिन इसके बावजूद ऐसा मज़ाक सरकार हमारे साथ कैसे कर सकती है।
दरअसल, ये सभी प्लॉट बीडीए ने सूखी पड़ी झील पर तैयार किए थे, जिन्हें 1985 में बेच दिया गया था। लेकिन झीलों की सूची से इनका नाम नहीं हटाया गया। सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश दिया है कि झीलों पर से अतिक्रमण फ़ौरन हटाया जाए, जिसके कारण तोडफ़ोड़ शुरू हो गई है।
राज्य के गृहमंत्री के जी जॉर्ज का कहना है कि ये एक तकनीकी गलती है और इसमें सुधार की ज़रुरत है। इसके लिए ज़रूरी है कि लेक प्राधिकरण बनया जाए। इससे जीवित और मृत झीलों की शिनाख्त करने में कानूनी तौर पर आसानी होगी। हालांकि, अतिक्रमण हटाने की इस मुहिम को फिलहाल सरकार रोकने जा रही है ताकि अपनी गलतियों को वो सुधार सके।
बंसवाड़ी का यह इलाक़ा, जहां हर तरफ मायूसी और दहशत लोगों के चेहरे पर देखी जा सकती है। वजह है, अवैध निर्माण को हटाने के लिए चलाया जा रहा ख़ास अभियान।
बंसवाड़ी मेन रोड पर बनी कई इमारतें ढहा दी गई हैं। तक़रीबन तीन दशकों के बाद अब सरकार को लग रहा है कि ये सभी स्थानीय झील पर किया गया अतिक्रमण है।
हद तो तब हो गई, जब राजस्व विभाग की तरफ से वहां रह रहे घर के मालिकों को भी घर खाली करने का नोटिस दिया गया, जिन्होंने बैंगलोर विकास प्राधिकरण यानी (बीडीए) से ज़मीन ख़रीद कर उसपर मकान बनवाया था। नोटिस में कहा गया है कि वह या तो ज़मीन खली कर दें वरना उनके खिलाफ आपराधिक मुक़दमा दर्ज किया जाएगा।
85 साल के संतोष पाण्डेय बीडीए के इसी लेआउट में रिटायरमेंट के बाद पिछले 25 साल से रह रहे हैं। उनका कहना है कि गलती सरकार की है और खामियाज़ा उन्हें भुगतना पड़ेगा। इन लोगों ने अपने हक़ की लड़ाई के लिए एक संघ बनाया है, जिसके अध्यक्ष डी. एस राजशेखर का कहना है कि सभी ने क़ानूनी प्रक्रिया के तहत प्लॉट बीडीए से खरीदा था, लेकिन इसके बावजूद ऐसा मज़ाक सरकार हमारे साथ कैसे कर सकती है।
दरअसल, ये सभी प्लॉट बीडीए ने सूखी पड़ी झील पर तैयार किए थे, जिन्हें 1985 में बेच दिया गया था। लेकिन झीलों की सूची से इनका नाम नहीं हटाया गया। सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश दिया है कि झीलों पर से अतिक्रमण फ़ौरन हटाया जाए, जिसके कारण तोडफ़ोड़ शुरू हो गई है।
राज्य के गृहमंत्री के जी जॉर्ज का कहना है कि ये एक तकनीकी गलती है और इसमें सुधार की ज़रुरत है। इसके लिए ज़रूरी है कि लेक प्राधिकरण बनया जाए। इससे जीवित और मृत झीलों की शिनाख्त करने में कानूनी तौर पर आसानी होगी। हालांकि, अतिक्रमण हटाने की इस मुहिम को फिलहाल सरकार रोकने जा रही है ताकि अपनी गलतियों को वो सुधार सके।
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