दिल्ली का तापमान पिछले डेढ़ सदी में 1 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है. जबकि मुंबई के तापमान में भी बढ़ोतरी हुई है. मुंबई का तापमान 0.7 डिग्री, चेन्नई का 0.6 डिग्री और कोलकाता का तापमान 1.2 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है. यह खुलासा ब्रिटेन की संस्था कार्बनब्रीफ ने किया है. यह एक नया वेब ऐप है और 1871 से क्षेत्रीय तापमान और शहरों में औसतन तापमान वृद्धि की गणना करता है. जलवायु विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे विश्लेषण उस वक्त महत्व रखते हैं, जब 195 सदस्य-सरकार के प्रतिनिधि और लेखक जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) की 'जीवन बदल देने वाली' रिपोर्ट को मंजूरी देने के लिए लंबे समय से काम कर रहे हैं. यह रिपोर्ट आठ अक्टूबर को प्रकाशित होगी.
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गौरतलब है कि कार्बनब्रीफ ने यह खुलासा ऐसे समय में किया है जब सभी की नजरें दक्षिण कोरिया पर टिकी हुई हैं, जहां वैज्ञानिक उत्सर्जन पर सख्ती से कटौती करने पर चर्चा कर रहे हैं. दक्षिण कोरिया के इंचियोन शहर में पूरे सप्ताह वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने बैठकें की हैं. जिसमें विश्व तापमान को 1.5 डिग्री पर रखने के मार्ग प्रदान करने वाली रिपोर्ट पर सहमति व्यक्त की गई है. ये सिफारिशें नीति निर्माताओं को बिजली, परिवहन, भवनों और कृषि जैसे क्षेत्रों में उत्सर्जन को कम करने के तरीकों पर वैज्ञानिक मार्गदर्शन प्रदान कर सकती हैं ताकि पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.5 डिग्री से ज्यादा की वैश्विक तापमान वृद्धि न हो सके.
एक डिग्री वृद्धि पहले ही हो चुकी है
नई दिल्ली स्थित ऊर्जा एवं अनुसंधान संस्थान (टेरी) के महानिदेशक अजय माथुर ने बताया, "भारत जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से निपटने के प्रति बहुत कमजोर है क्योंकि यहां 7,000 किलोमीटर से अधिक की तटरेखा है और हमारे लोगों की आजीविका हिमालयी हिमनदों और मानसूनी बारिश पर अधिक निर्भर रहता है". उन्होंने कहा, "समय की आवश्यकता है कि व्यापक और तत्काल जलवायु कदमों का समर्थन किया जाए व उन्हें लागू किया जाए और तापमान वृद्धि को दो डिग्री सेल्सियस से नीचे और सीमित रखने के लिए सभी हितधारकों द्वारा ऐसा किए जाने की आवश्यकता है".
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ब्रिटेन के क्रिस्टेन एड द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, लंदन, ह्यूस्टन, जकार्ता और शंघाई जैसे तटीय शहर को तूफान और बाढ़ का सामना करना पड़ सकता है. अगर ग्लोबल वार्मिग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित नहीं किया गया है तो समुद्र-स्तर में 40 सेंटीमीटर से अधिक की वृद्धि होने की संभावना है. रिपोर्ट के मुताबिक, 2030 तक दुनिया की शहरी आबादी में 59 प्रतिशत की वृद्धि हो जाएगी, जिससे इन शहर के निवासियों के लिए खतरा तेजी से बढ़ जाएगा. नेचर क्लाइमेट चेंज पत्रिका में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन में 200 से अधिक देशों की अर्थव्यवस्थाओं की समीक्षा की गई और निष्कर्ष निकाला गया कि जलवायु परिवर्तन का भारत पर सबसे बुरा असर होगा.
'समुद्र के जलस्तर में थोड़ी सी वृद्धि से भी पूरी दुनिया में सुनामी का खतरा'
पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौते 2015 पर हस्ताक्षर कर भारत 2030 तक 2005 के स्तर से कार्बन उत्सर्जन तीव्रता को 33 से 35 प्रतिशत कम करने, 2030 तक गैर-जीवाश्म आधारित ऊर्जा संसाधनों की हिस्सेदारी को मौजूदा विद्युत क्षमता के मुकाबले 40 प्रतिशत तक बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है. क्लाइमेटट्रैकर के मुताबिक, भारत की जलवायु कार्य योजना वैश्विक तापमान को दो डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने में मदद करेगी, बशर्ते अन्य देशों को भी इस दिशा में कदम उठाने होंगे.
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