
दिल्ली हाइकोर्ट ने उस याचिका पर बुधवार को केंद्र से जवाब मांगा जिसमें देश के विभिन्न मदरसों और गुरुकुलों में दी जा रही शिक्षा के विनियमन के लिए निर्देश दिए जाने का अनुरोध किया गया है. मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति बृजेश सेठी की पीठ ने मानव संसाधन विकास और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालयों को नोटिस जारी किया. पश्चिम बंगाल के एक कांग्रेस विधायक और राज्य के एक आरटीआई कार्यकर्ता द्वारा यह संयुक्त याचिका दायर की गयी है. सूचना का अधिकार (आरटीआई) कार्यकर्ता सुनील सरावगी और कांग्रेस विधायक अखरुज्जमां ने अधिवक्ता विधान व्यास के माध्यम से दायर अपनी याचिका में दावा किया है कि इन संस्थानों का शैक्षणिक पाठ्यक्रम अब भी 18 वीं शताब्दी का है और वहां पवित्र कुरान, उर्दू और फारसी जैसे विषय ही पढ़ाए जा रहे हैं.
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याचिका में आरोप लगाया गया है कि इन मदरसों में पढ़ने वाले छात्रों की नौकरी की संभावनाएं बुरी तरह प्रभावित होती हैं. यह आरोप भी लगाया गया है कि ऐसे संस्थानों में पढ़ने वाले बच्चे नौकरियों और अन्य मौकों पर दूसरे बच्चों के साथ प्रतिस्पर्धा करने में असमर्थ होते हैं. याचिका के अनुसार, सिर्फ राष्ट्रीय राजधानी में ही करीब तीन हजार मदरसे हैं और इन संस्थानों में लगभग 3.6 लाख छात्र पढ़ते हैं.
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