
गुंटूर:
आंध्र प्रदेश के गुंटूर के किसान अप्पा राव के पास जब कोई चारा नहीं बचा तो उसने अपनी किडनी बेच दी। 30 साल के इस किसान
करीब एक साल पहले अपनी किडनी बेची थी। उसे तब दलाल द्वारा कहा गया था कि किडनी के लिए साढ़े चार लाख रुपये दिए जाएंगे। अप्पा को दलाल तमाम कागजात दिखाए और बताया कि पूरी प्रक्रिया कानून के तहत हो रही है। उन कागजातों में तमाम सरकारी अधिकारियों और डॉक्टरों के दस्तखत थे। इन पूरे कागजातों में यह कहा गया कि अप्पा राव ने अपनी किडनी अपनी मर्जी से पाने वाले के प्रति लगाव की वजह से दान में दी है। इस प्रक्रिया के पूरे होने के बाद अप्पा राव को मात्र एक तिहाई रकम ही दी गई।
अपनी किडनी को 'बेच' देने के निर्णय का कारण बताते हुए अप्पा राव ने कहा कि 2009 में बारिश की वजह से उनकी फसल पूरी तरह बरबाद हो गई। फिर छोटा कारोबार करने के लिए अप्पा ने बाजार में निजी व्यवसायी से ऊंचे ब्याज पर पैसा लिया था। ब्याज की वजह से मासिक शुल्क बहुत ज्यादा हो गया था। इसके बाद जैसे ही किडनी बेचने का प्रस्ताव अप्पा नकार नहीं पाए।
जब अप्पा ने इस बारे में अपने घर में चर्चा की तब उसकी बीवी और मां ने ऐसा कुछ भी करने मना कर दिया लेकिन मैंने कहा कि अब आत्महत्या करने के अलावा कोई और चारा भी नहीं रह गया है।
अप्पा ने कहा, दलाल ने धोखा दिया और करीब दो लाख से ज्यादा रुपया नहीं दिया। लेकिन मैं अब किसी से कुछ कह भी नहीं सकता। अब मेरी सेहत खराब हो चुकी है। काम नहीं कर सकता। मुझे अपना गांव छोड़ना पड़ा है और नाम छुपाकर रहना पड़ रहा है।
बता दें कि आंध्र के गुंटूर में तमाम किसान मिर्च और कपास की खेती करते हैं। सूखा, तूफान और गैर-मौसमी बारिश ने उनकी फसल को चौपट कर दिया है।
स्थानीय लोगों को अप्पा राव की कहानी से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है। पलानाडू इलाके के भी तमाम किसानों की भी लगभग यही कहानी है। हालात अब यह हो गए हैं कि कुछ अब खुद ही दलाली का काम करने लगे हैं।
इन मामलों का कागजात बताते हैं कि किडनी निकालने की सर्जरी हैदराबाद के बड़े अस्पतालों में की गई है और पूरी कानूनी प्रक्रिया का पालन करते हुए। तमाम किडनी बेचने वाले अपना नाम तक बताने को राजी नहीं होते हैं। उन्हें लगता है कि ऐसा करने से वे खुद कानूनी पचड़े में फंस जाएंगे।
वरिष्ठ पुलिस अधिकारी का कहना है कि इन मामलों में कार्रवाई करके भी कोई फायदा नहीं होगा क्योंकि कोर्ट में कागजात पर सब निर्भर करता है। अभी तक इन मामलों में एक भी केस दर्ज नहीं किया गया है।
राज्य के मानवाधिकार आयोग ने अब सरकार को लिखा है कि मामले की पूरी जांच कर वास्तविक स्थिति पर रिपोर्ट दें। आयोग ने पूछा है कि आखिर कैसे इस तरह मानव अंगों के प्रत्यर्पण का गैर-कानूनी काम चल रहा है। अप्रैल के अंत तक इस रिपोर्ट के आने की संभावना है।
करीब एक साल पहले अपनी किडनी बेची थी। उसे तब दलाल द्वारा कहा गया था कि किडनी के लिए साढ़े चार लाख रुपये दिए जाएंगे। अप्पा को दलाल तमाम कागजात दिखाए और बताया कि पूरी प्रक्रिया कानून के तहत हो रही है। उन कागजातों में तमाम सरकारी अधिकारियों और डॉक्टरों के दस्तखत थे। इन पूरे कागजातों में यह कहा गया कि अप्पा राव ने अपनी किडनी अपनी मर्जी से पाने वाले के प्रति लगाव की वजह से दान में दी है। इस प्रक्रिया के पूरे होने के बाद अप्पा राव को मात्र एक तिहाई रकम ही दी गई।
अपनी किडनी को 'बेच' देने के निर्णय का कारण बताते हुए अप्पा राव ने कहा कि 2009 में बारिश की वजह से उनकी फसल पूरी तरह बरबाद हो गई। फिर छोटा कारोबार करने के लिए अप्पा ने बाजार में निजी व्यवसायी से ऊंचे ब्याज पर पैसा लिया था। ब्याज की वजह से मासिक शुल्क बहुत ज्यादा हो गया था। इसके बाद जैसे ही किडनी बेचने का प्रस्ताव अप्पा नकार नहीं पाए।
जब अप्पा ने इस बारे में अपने घर में चर्चा की तब उसकी बीवी और मां ने ऐसा कुछ भी करने मना कर दिया लेकिन मैंने कहा कि अब आत्महत्या करने के अलावा कोई और चारा भी नहीं रह गया है।
अप्पा ने कहा, दलाल ने धोखा दिया और करीब दो लाख से ज्यादा रुपया नहीं दिया। लेकिन मैं अब किसी से कुछ कह भी नहीं सकता। अब मेरी सेहत खराब हो चुकी है। काम नहीं कर सकता। मुझे अपना गांव छोड़ना पड़ा है और नाम छुपाकर रहना पड़ रहा है।
बता दें कि आंध्र के गुंटूर में तमाम किसान मिर्च और कपास की खेती करते हैं। सूखा, तूफान और गैर-मौसमी बारिश ने उनकी फसल को चौपट कर दिया है।
स्थानीय लोगों को अप्पा राव की कहानी से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है। पलानाडू इलाके के भी तमाम किसानों की भी लगभग यही कहानी है। हालात अब यह हो गए हैं कि कुछ अब खुद ही दलाली का काम करने लगे हैं।
इन मामलों का कागजात बताते हैं कि किडनी निकालने की सर्जरी हैदराबाद के बड़े अस्पतालों में की गई है और पूरी कानूनी प्रक्रिया का पालन करते हुए। तमाम किडनी बेचने वाले अपना नाम तक बताने को राजी नहीं होते हैं। उन्हें लगता है कि ऐसा करने से वे खुद कानूनी पचड़े में फंस जाएंगे।
वरिष्ठ पुलिस अधिकारी का कहना है कि इन मामलों में कार्रवाई करके भी कोई फायदा नहीं होगा क्योंकि कोर्ट में कागजात पर सब निर्भर करता है। अभी तक इन मामलों में एक भी केस दर्ज नहीं किया गया है।
राज्य के मानवाधिकार आयोग ने अब सरकार को लिखा है कि मामले की पूरी जांच कर वास्तविक स्थिति पर रिपोर्ट दें। आयोग ने पूछा है कि आखिर कैसे इस तरह मानव अंगों के प्रत्यर्पण का गैर-कानूनी काम चल रहा है। अप्रैल के अंत तक इस रिपोर्ट के आने की संभावना है।
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं