कमजोर मॉनसून की वजह से 15 राज्यों के बड़े जलाशयों में पानी औसत से काफ़ी नीचे गिर गया है. कमज़ोर मॉनसून का असर खेती पर भी दिख रहा है. फ़सलों की बुवाई इस साल 47 लाख हेक्टेयर से कम ज़मीन पर हुई है. कमज़ोर और देर से आए मानसून का असर खरीफ की फसलों की बुआई पर दिख रहा है. बीते साल 26 जुलाई तक दलहन की बुवाई 101.84 लाख हेक्टेयर ज़मीन पर हुई थी. इस साल 26 जुलाई तक 82.92 लाख हेक्टेयर ज़मीन पर ही बुवाई हो सकी. यानी एक साल में 18.92 लाख हेक्टेयर कम ज़मीन पर बुवाई.
गिरावट धान की बुआई में भी दर्ज़ हुई है, हालांकि दलहन के अनुपात में कुछ कम. 26 जुलाई, 2018 तक धान 197.69 लाख हेक्टेयर ज़मीन पर बोया गया. 26 जुलाई, 2019 में यह बुवाई 185.14 लाख हेक्टेयर पर रह गई. यानी एक साल में 12.55 लाख हेक्टेयर की गिरावट.
केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने एनडीटीवी से कहा, "मानसून में देरी हुई है इस साल इस वजह से कठिनाई है. केंद्र सरकार गंभीर है. कई जगहों पर मानसून रिकवर कर रहा है. बहुत ज़्यादा नुकसान होगा ऐसा कहना अभी जल्दबाज़ी होगी."
कुल मिलाकर इस साल खरीफ की बुवाई 47.40 लाख हेक्टेयर कम ज़मीन पर हुई है. जिन राज्यों में पानी का संकट ज़्यादा है, वहां बुआई पिछले साल के मुकाबले इस साल काफी घटी है. उन राज्यों को कृषि मंत्रालय की तरफ से सलाह दी जा रही है कि वह किसानों को कम पानी के इस्तेमाल वाली फसलों को बुआई करें. और जहां-जहां सूखे की स्थिति खड़ी होती दिख रही है वहां एहतियातन जो भी ज़रूरी हो वो कदम उठाना शुरू करें.
कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने एनडीटीवी से कहा, "राज्यों को हमारी सलाह होगी कि जहां-जहां सूखे की स्थिति बन रही है समय रहते उन्हें कदम उठाना चाहिए. उन्हें कम पानी वाली जो फसलें हैं उन पर जाना चाहिए...उन्हें केंद्र सरकार को इस बारे में जानकारी भी जल्दी देनी होगी."
इन सबके बीच बुरी खबर यह है कि 15 राज्यों के बड़े जलाशयों में पानी काफ़ी कम हो चुका है. यानी मॉनसून नहीं सुधरा तो संकट बड़ा होता जाएगा.
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