कोरोना महामारी की दूसरी लहर में बेंगलुरु में हजारों की संख्या में लोग अपनी जान गंवा चुके हैं. पिछले एक महीने में तकरीबन 5 हजार मौतें कोरोना से हुई हैं. इनका अंतिम संस्कार भी किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं था. कई लोग अकेले शहर में रहते थे, तो कुछ के परिजन संक्रमण के डर से सामने नहीं आए. इस दुख की घड़ी में कुछ युवाओं ने अपनी जिम्मेदारी समझते हुए इन लोगों का अंतिम संस्कार किया. कोरोना से जान गंवाने वाले लोगों का उनके धर्म की रीति रिवाजों के मुताबिक अंतिम संस्कार किया गया. इस सराहनीय व मानवीय कदम में सबसे आगे रहने वाले 42 साल के तनवीर अहमद का नाम आज सबकी जुबान पर है.
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मर्सी एंजेल्स के बैनर तले अपनी टीम के साथ उन्होंने सभी धर्मों के तकरीबन 600 लोगों का अंतिम संस्कार किया है. लेकिन अब वो ज्यादा व्यस्त हो गए हैं, क्योंकि मौत का आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है. इस सराहनीय कार्य से जुड़े तनवीर बताते हैं, ''हमने ईसाई, लिंगायत, जैन धर्म, मुस्लिम, बुद्धिस्ट लोगों के शव का अंतिम संस्कार करवाया है. जो अस्थियां मांगते हैं उन्हें दे दी जाती है. जो नहीं मांगते हैं, उन अस्थियों को हम खुद ही पानी में बहा देते हैं.'' इसी कड़ी में इब्राहिम बताते हैं, ''हमने हिंदुस्तान में सीखा है कि सभी लोगों को मिलजुल कर रहना चाहिए और इस घड़ी में एक दूसरे की मदद करना जरूरी है.''
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तनवीर जैसे और भी कई लोग हैं जो इस मुश्किल दौर में अपनी जान जोखिम में डालकर इस कोशिश में जुटे हैं. इन लोगों का मानना है कि कोविड-19 से जान गंवाने वालों का सम्मान पूर्वक अंतिम संस्कार हो, धर्म और जात-पात से ऊपर उठकर. कोविड संक्रमण शुरू होने के बाद बस बेंगलुरु में जहां पहले 13 महीनों में 5000 मौते हुईं थी, वहीं इसकी दूसरी लहर में सिर्फ पिछले एक महीने में ही 5000 लोगों ने जान गंवा दी. पूरे राज्य की बात करें तो लगभग 10,000 लोगों की जान जा चुकी है. बता दें कि देश में कोरोना की वजह से पहली मौत भी कर्नाटक के कलबुर्गी में ही हुई थी. कोरोना की दूसरी लहर के लिए सरकार तैयार नहीं थी, जिसका असर हर मोर्चे पर दिख रहा है.
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