
हाथरस के गढ़ी सिंघा गांव के चित्र जो आल इंडिया रेडियो ने नगला फतेला के बताए.
हाथरस:
लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री आजादी के 70 साल बाद हाथरस के जिस नगला फतेला गांव में बिजली पहुंचाने का दावा कर रहे थे, लेकिन वास्तव में उस गांव में आज तक बिजली नहीं पहुंची है. एनडीटीवी ने गांव में जाकर पता किया तो हकीकत सामने आ गई.
दिल्ली से करीब 150 किलोमीटर दूर इस गांव में केंद्र सरकार की ओर से आठ माह पहले लगाए गए बिजली के खंभे हैं, खंभों पर बिजली के तार भी लगे हैं, ट्रांसफॉमर भी लगा है लेकिन प्रधानमंत्री के दावों से उलट यहां बिजली अभी तक नहीं पहुचीं है. गांव के प्रधान योगेश सिंह का कहना है कि आठ महीने से बिजली का इंतजार है लेकिन बिजली नहीं आई प्रधानमंत्री जो बोले वह गलत बोले हैं.
यह सच है कि करीब 3500 की आबादी वाले इस गांव में आजादी के बाद 8 महीने पहले तक बिजली की लाइन नहीं थी. लेकिन यहां के लोग करीब 20 साल से गांव के बाहर लगी सिंचाई की विघुत लाइन से कटिया डालकर लकड़ी के खंभों के जरिए अपनों घरों तक बिजली पंहुचा रहे हैं और बिजली विभाग उसका बिल भी भेजता है. हालांकि इस तरह के कनेक्शन कुछ ही घरों में हैं. अब इन लोगों को यह समझ नहीं आ रहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके गांव का नाम कैसे ले दिया. गांव के सत्यपाल सिंह कहते हैं कि हम मोदी जी के काम से खुश हैं उन्हीं की बदौलत गांव में कम से कम बिजली के खंभे, ट्रांसफार्मर और तार लगे हैं. प्रधानमंत्री ने जो गलत नाम लिया वह जरूर किसी अधिकारी की गलती रही होगी. जिसने गलती से इस गांव का नाम भेज दिया.
गांव में बिजली भले ही न पहुंची हो लेकिन प्रधानमंत्री के मुंह से इस गांव का नाम आते ही बिजली विभाग के अफसर गांव में बिजली सप्लाई करने के लिए पूरी ताकत झोंक रहे हैं. हालांकि उनका कहना है कि इस गांव में 25 साल पहले से ही कृषि के लिए दी जाने वाली बिजली की सप्लाई की जा रही है. यहां 7 ट्यूबवेल के कनेक्शन के अलावा 150 बिजली के कनेक्शन भी हैं. केंद्र सरकार ने बिजली सप्लाई की जो स्थाई लाइन डाली है उससे बिजली सप्लाई करने के लिए विघुत सुरक्षा निदेशालय से एनओसी नहीं मिली है.
प्रधानमंत्री के भाषण के बाद आल इंडिया रेडियो ने जिन तीन तस्वीरों को नगला फतेला गांव की तस्वीरें बताकर ट्वीट किया वे भी गलत निकलीं. इनमें से एक तस्वीर हाथरस के ही गढ़ी सिंघा गांव की है. इस गांव के लोगों का कहना है कि आजादी के 70 साल बाद 15 अगस्त को उनके गांव में केंद्रीय योजना के तहत बिजली पहुंची. इसलिए बिजली विभाग के साथ उन्होंने जश्न मनाया लेकिन प्रधनमंत्री ने गलती से किसी और गांव का नाम ले लिया.गांव के अरविन्द ,सुरेशचंद का कहना है कि हमें बताया गया था कि हमारे गांव का नाम प्रधानमंत्री लेंगे लेकिन जैसे ही नगला फतेला गांव का नाम आया, हम भी चौंक गए. यह जरूर किसी बिजली विभाग के अधिकारी की गलती है जिसने प्रधानमंत्री को गलत रिपोर्ट भेजी है.
इस गांव के लोगों को दुःख इस बात का है कि 3 साल पहले राज्य सरकार के बिजली विभाग का एक अधिकारी उनसे बिजली के कनेक्शन के नाम पर पैसे ले गया और बिना बिजली सप्लाई के इनके बिजली के बिल भी आ रहे थे. लेकिन खुशी या बात की है कि स्वतंत्रता दिवस के दिन न सिर्फ बिजली आई बल्कि गांव के नाम के विवाद से इनके गांव का नाम भी चर्चा में आ गया. कुछ ऐसी ही खुशी नागल फतेला गांव के लोगों को है, जहां बिजली भले ही न पहुंची हो लेकिन आज हर किसी की जुबान पर उन्हीं के गांव का नाम है.
दिल्ली से करीब 150 किलोमीटर दूर इस गांव में केंद्र सरकार की ओर से आठ माह पहले लगाए गए बिजली के खंभे हैं, खंभों पर बिजली के तार भी लगे हैं, ट्रांसफॉमर भी लगा है लेकिन प्रधानमंत्री के दावों से उलट यहां बिजली अभी तक नहीं पहुचीं है. गांव के प्रधान योगेश सिंह का कहना है कि आठ महीने से बिजली का इंतजार है लेकिन बिजली नहीं आई प्रधानमंत्री जो बोले वह गलत बोले हैं.
यह सच है कि करीब 3500 की आबादी वाले इस गांव में आजादी के बाद 8 महीने पहले तक बिजली की लाइन नहीं थी. लेकिन यहां के लोग करीब 20 साल से गांव के बाहर लगी सिंचाई की विघुत लाइन से कटिया डालकर लकड़ी के खंभों के जरिए अपनों घरों तक बिजली पंहुचा रहे हैं और बिजली विभाग उसका बिल भी भेजता है. हालांकि इस तरह के कनेक्शन कुछ ही घरों में हैं. अब इन लोगों को यह समझ नहीं आ रहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके गांव का नाम कैसे ले दिया. गांव के सत्यपाल सिंह कहते हैं कि हम मोदी जी के काम से खुश हैं उन्हीं की बदौलत गांव में कम से कम बिजली के खंभे, ट्रांसफार्मर और तार लगे हैं. प्रधानमंत्री ने जो गलत नाम लिया वह जरूर किसी अधिकारी की गलती रही होगी. जिसने गलती से इस गांव का नाम भेज दिया.
गांव में बिजली भले ही न पहुंची हो लेकिन प्रधानमंत्री के मुंह से इस गांव का नाम आते ही बिजली विभाग के अफसर गांव में बिजली सप्लाई करने के लिए पूरी ताकत झोंक रहे हैं. हालांकि उनका कहना है कि इस गांव में 25 साल पहले से ही कृषि के लिए दी जाने वाली बिजली की सप्लाई की जा रही है. यहां 7 ट्यूबवेल के कनेक्शन के अलावा 150 बिजली के कनेक्शन भी हैं. केंद्र सरकार ने बिजली सप्लाई की जो स्थाई लाइन डाली है उससे बिजली सप्लाई करने के लिए विघुत सुरक्षा निदेशालय से एनओसी नहीं मिली है.
प्रधानमंत्री के भाषण के बाद आल इंडिया रेडियो ने जिन तीन तस्वीरों को नगला फतेला गांव की तस्वीरें बताकर ट्वीट किया वे भी गलत निकलीं. इनमें से एक तस्वीर हाथरस के ही गढ़ी सिंघा गांव की है. इस गांव के लोगों का कहना है कि आजादी के 70 साल बाद 15 अगस्त को उनके गांव में केंद्रीय योजना के तहत बिजली पहुंची. इसलिए बिजली विभाग के साथ उन्होंने जश्न मनाया लेकिन प्रधनमंत्री ने गलती से किसी और गांव का नाम ले लिया.गांव के अरविन्द ,सुरेशचंद का कहना है कि हमें बताया गया था कि हमारे गांव का नाम प्रधानमंत्री लेंगे लेकिन जैसे ही नगला फतेला गांव का नाम आया, हम भी चौंक गए. यह जरूर किसी बिजली विभाग के अधिकारी की गलती है जिसने प्रधानमंत्री को गलत रिपोर्ट भेजी है.
इस गांव के लोगों को दुःख इस बात का है कि 3 साल पहले राज्य सरकार के बिजली विभाग का एक अधिकारी उनसे बिजली के कनेक्शन के नाम पर पैसे ले गया और बिना बिजली सप्लाई के इनके बिजली के बिल भी आ रहे थे. लेकिन खुशी या बात की है कि स्वतंत्रता दिवस के दिन न सिर्फ बिजली आई बल्कि गांव के नाम के विवाद से इनके गांव का नाम भी चर्चा में आ गया. कुछ ऐसी ही खुशी नागल फतेला गांव के लोगों को है, जहां बिजली भले ही न पहुंची हो लेकिन आज हर किसी की जुबान पर उन्हीं के गांव का नाम है.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं
हाथरस, नगला फतेला, बिजली, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उत्तरप्रदेश, Nagla Fatela, Power Supply, PM Narendra Modi, UP, Hathras